G.NEWS 24 : वक्फ एक्ट कोई धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक व्यवस्थात्मक सुधार है !

वक्फ एक्ट: कानून का सम्मान और समाज में एकता की ज़रूरत...

वक्फ एक्ट कोई धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक व्यवस्थात्मक सुधार है !

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ संविधान सर्वोच्च है और हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त हैं। जब संसद किसी कानून को पास करती है, तो वह न केवल संविधानिक प्रक्रिया से गुजरता है, बल्कि उसमें सभी समुदायों, वर्गों और हितधारकों की आवाज़ भी शामिल होती है। हाल ही में वक्फ एक्ट में हुए संशोधन या उसके कार्यान्वयन को लेकर कुछ राजनैतिक दलों और धार्मिक नेताओं की ओर से विरोध की आवाज़ें उठ रही हैं, जो चिंता का विषय है।

यह समझना आवश्यक है कि वक्फ संपत्ति एक विशेष धार्मिक ट्रस्ट के अंतर्गत आती है, जिसका प्रबंधन और उपयोग समाज की भलाई के लिए होना चाहिए। यदि किसी कानून के अंतर्गत इस व्यवस्था को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने की कोशिश की जाती है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।

परंतु दुर्भाग्यवश, कुछ राजनीतिक दलों के नेता और कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले मौलवी, इस विषय को धार्मिक रंग देकर मुस्लिम समुदाय को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर यह प्रचारित कर रहे हैं कि यह कानून विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ है, जबकि सच्चाई यह है कि यह कानून वक्फ संपत्ति के सही उपयोग, भ्रष्टाचार पर रोक और पारदर्शिता लाने के लिए बनाया गया है।

इस तरह की बयानबाज़ी न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि समाज में धार्मिक विद्वेष और अशांति फैलाने का प्रयास भी है। जब कोई व्यक्ति या समूह समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करता है, तो यह केवल नैतिक रूप से गलत नहीं, बल्कि एक कानूनी अपराध भी है। भारत के कानून में स्पष्ट प्रावधान हैं कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने या किसी समुदाय को भड़काने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि ऐसे तत्वों की पहचान करे और उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करे ताकि देश में कानून का राज बना रहे और आम जनता ऐसे भ्रामक प्रचार का शिकार न हो। इसके साथ ही, समाज के जागरूक नागरिकों, बुद्धिजीवियों और मुस्लिम समुदाय के जिम्मेदार नेताओं को आगे आकर सच्चाई को सामने लाना चाहिए और धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों से सावधान रहना चाहिए।

वक्फ एक्ट कोई धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक व्यवस्थात्मक सुधार है। जो लोग इसे राजनीति का साधन बनाकर समाज को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं, उनके खिलाफ कानून को सख्ती से अपना काम करना चाहिए। भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और उसकी कानून व्यवस्था को कोई भी ताक़त तोड़ नहीं सकती, जब तक देश के नागरिक जागरूक और एकजुट हैं। कोलकाता जैसे सांस्कृतिक शहर में बार-बार इस प्रकार की घटनाएं होना चिंता का विषय है। धर्म और त्योहार समाज को जोड़ने का कार्य करते हैं, न कि तोड़ने का। 

प्रशासन को निष्पक्ष और तत्पर रहना होगा, साथ ही समाज के हर वर्ग को शांति और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहिए। चुनाव हो या पर्व – देश की एकता और अखंडता सर्वोपरि होनी चाहिए। यहां बार-बार होने वाली हिंसा केवल किसी एक वर्ग या संस्था की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक सामूहिक विफलता है—राजनीतिक नेतृत्व की, प्रशासन की, और हमारी भी। ज़रूरत है कि सभी पक्ष आत्ममंथन करें और शहर को फिर से शांति, सौहार्द और संस्कृति की ओर लौटाएं।

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