माता कुंती हरसिद्धि मंदिर में पूजा किया करती थी...
कुंतलपुर गांव एवं पांडवों की मां कुंती को जहां वरदान में मिला था कर्ण, वो स्थान उथ्थान के लिए तरसा !
मुरैना जिले के के अंतर्गत आने वाला कुंतलपुर गांव जिसे माता कुंती के गांव या कुतलपुर या कुतवार के नाम से भी जाना जाता है। लोगों के अनुसार इस गांव के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस गांव का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है ऐसी किरदंती है कि यही वह स्थान है जहां पांच पांडवों की माता कुंती को भगवान सूर्य देव के आशीर्वाद से उनके ज्येष्ठ पुत्र कर्ण की प्राप्ति हुई थी।
ऐसी मान्यता है कि माता कुंती को कुछ अलौकिक वरदान प्राप्त थे, उन्ही वरदानों में से एक वरदान की सत्यता जांचने के लिए, माता कुंती ने सुबह के स्नान के समय इसी नदी के किनारे सूर्य देव का आह्वान किया था, और उनसे पुत्र प्राप्ति की कामना की उनके आह्वान पर भगवान सूर्य देव अपने रथ पर अरुण होकर माता कुंती के सामने प्रकट हुए और उन्होंने उनकी कामना के अनुसार उन्हें एक पुत्र प्रदान किया। उसके बादआगे क्या हुआ था आप और हम सभी भली-भांति जानते हैं, फिलहाल बात करते हैं हम इस स्थान की।
इस स्थान के बारे में स्थानीय लोगों ने जानकारी देते हुए बताया कि यह वही कुंडलपुर गांव है जहां कुंती अपने परिजनों के साथ निवासी करती थी और सुबह के समय इसी नदी में आकर के स्नान ध्यान किया करती थी । स्नान ध्यान के बाद पास ही में स्थित माता हरसिद्धि के मंदिर में पूजा किया करती थी।
यह स्थान इतिहास में दर्ज महाभारत की घटनाओं से संबंध रखता है, इस गांव का प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व भी है । फिर भी इसकी देखभाल जिस तरीके से होनी चाहिए, जिस प्रकार इसका संरक्षण होना चाहिए, नहीं हो रहा है। यहां के हालात देखकर तो ऐसा ही लगता है।इस बात की चिंता शासन प्रशासन या सरकारों को बिल्कुल ही नहीं है।
यहां बने खस्ताहाल प्रवेश द्वार और अन्य सुविधाओं को देखकर तो यही लगता है। मंदिर की स्थिति भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं है कुछ स्थानीय लोगों के सहयोग से यहां कुछ रिपेयरिंग के कार्य समय-समय पर करवाए जाते रहे हैं । नदी अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खोती जा रही है जो नदी कभी कल कल करते हुए अपने पूर्ण वेग के साथ बहा करती थी, अब दम तोड़ती नजर आ रही है।
यह नदी छोटा सा दरिया बनकर रह गई है। लोगों की मान्यता के अनुसार इसी नदी के तट पर स्वयं सूर्य देव ने प्रकट होकर माता कुंती को वरदान स्वरुप करण की प्राप्ति कराई थी। इस बात की गवाही नदी के तट पर मौजूद भगवान सूर्य देव के रथ को खींचने वाले घोड़े के पैरों के निशान हैं जो आज भी मौजूद हैं। लेकिन यह निशान और कितने दिन तक मौजूद रहेंगे कहा नहीं जा सकता, क्योंकि यह निशान भी धीरे-धीरे मिटते जा रहे हैं । इसलिए इन निशानों को और इन यादों को सहेजने की माहिती आवश्यकता है।
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