G News 24 : जो संविधान और कानून को मानता है कार्वाही का डंडा भी उसी को पड़ता है !

भारत में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है, लेकिन कुछ मामलों में हो सकती है कार्रवाही !

जो संविधान और कानून को मानता है कार्वाही का डंडा भी उसी को पड़ता है !

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी की है, जो विवाद का विषय है. ऐसे में जान लेते हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर समीक्षा चल रही है. लेकिन बीते शनिवार को न्यायपालिका को लेकर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने जो टिप्पणी की है, वह विवाद का विषय बनी हुई है. जो विवाद कर रहे और जिनके लिए विपक्ष ये विवाद करके सुप्रीम कोर्ट को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं क्या वे सविधान और कानून का कितना सम्मान करते हैं ? सुप्रीम कोर्ट को इस पर भी गौर करना चाहिए। 

बात वफ्फ बिल की जाये, जिसके कारण ये सब बखेड़ा खड़ा हुआ है। तो देश भर में जो लूट,मार-काट मचा रहे हैं उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कोई एक्शन लेना उचित क्यों नहीं समझा ? जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो फिर ये दंगाई आम आम हिन्दुओं को क्यों प्रताड़ित कर रहे हैं, प्रोटेस्ट और सभाएं क्यों हो रही हैं ? क्या ये संविधान और कानून और कोर्ट का अपमान नहीं है। बिल सरकार ने पास किया है तो उसकी सजा आम हिन्दुओं को क्यों दी जा रही है ? क्या सुप्रीम कोर्ट को हिन्दुओं का पलायन और चीखें दिखाई और सुनाई नहीं देती ?

निशिकांत दुबे ने कहा सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जाकर फैसले सुना रहा है. वह देश की संसद को दरकिनार कर रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि देश की अदालत का एक ही उद्देश्य है कि चेहरा दिखाओ, कानून बताऊंगा. अगर सभी मामलों में फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही देना है तब संसद और विधानसभाओं को बंद ही कर देना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने और भी कई बातें कही हैं. ऐसे केसेज में यह जानना जरूरी हो जाता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जाती है तो ऐसे केस में सजा कैसे मिल सकती है. तो उन्होंने इसमें ऐसा क्या गलत कह दिया ! जो उनके खिलाफ कारवाही की मांग विपक्ष उठा रहा है। विपक्ष पहले अपने गिरेवां में झांके। 

वफ्फ मामले को लेकर जब हिन्दू पक्ष के वकील सुप्रीम कोर्ट जाते हैं तो उन्हें पहले हाईकोर्ट जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा जाता है और जब इसी मामले में नए वफ्फ का विरोध करने वाले सुप्रीम कोर्ट पहुंचते है तो बिना किसी रोक-टोक के सीधे मामले की सुनवाही करते हुए बिल को लटका देते हैं। यहां इन्हे हाईकोर्ट जाने को क्यों नहीं कहा जाता है ? ये तो सीधा-सीधा पक्षपात है और ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की इसी क्रिया प्रणाली का परिणाम है !  

हद में रहकर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी

इसका जवाब है हां, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है, लेकिन इसको लेकर कुछ सीमाए हैं. संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है, लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्णं रूप से नहीं है. जैसे कि भड़काऊ भाषण या अपमानजनक बयानबाजी नहीं की जा सकती है. यह कानूनी रूप से प्रतिबंधित है और इसको लेकर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. भारत का संविधान लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर बयानबाजी भी शामिल है.

हो सकती है कानूनी कार्रवाई

हालांकि लोगों को यह स्वतंत्रता पूर्णं रूप से नहीं मिलती है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 19(2) में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं. अगर कोई शख्स सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करता है या फिर सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालता है या फिर किसी समुदाय विशेष के खिलाफ लोगों को भड़काता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपमानजनक बयान देने पर भी कार्रवाई की जा सकती है. खासतौर से तब जब अदालत की अवमानना हो रही हो या फिर जजों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा हो.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करना लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन आलोचना उचित और रचनात्मक होनी चाहिए. अगर वह आलोचना अपमानजनक, झूठी या फिर भड़काऊ है तो इसके लिए सजा मिल सकती है.

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