दोनों का उद्देश्य होता है,जनता कोमूर्ख बनाकर उनसे लाभ प्राप्त करना...
नेता और मदारी में एकरूपता केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि आज के समय में यह एक कटु सत्य है !
नेताजी के भाषणों और वादों से जनता सोचती है कि नेताजी उसके हितों के बारे में सोचते हैं उसके लिए कार्य करते हैं जबकि होता ठीक इसके विपरीत है नेताजी जो काम जनता के लिए कराए जाने का दिखावा करते हैं उन कामों से जनता को तो कम नेताजी को उन कामों से कई गुना लाभ मिलता है। ये बात आज के दौर में किसी से छिपी नहीं है। लेकिन जनता फिर भी भ्रमित और मूर्ख बनी रहती है।
मदारी का सबसे बड़ा गुण होता है उसकी भीड़ खींचने की क्षमता। वह अपने हुनर, ढोल और जानवरों के करतबों से लोगों को लुभाता है। इसी तरह, नेता भी चुनाव के समय वादों, नारों और भाषणों के ज़रिए जनता को अपनी ओर खींचता है।
2. दिखावे पर ज़ोर...
मदारी का खेल अधिकतर दिखावे पर आधारित होता है — कभी बंदर को टोपी पहनाकर नचाना, तो कभी साँप दिखाकर डराना। इसी प्रकार, कई नेता जनता को दिखावे के प्रलोभनों से भ्रमित करते हैं — जैसे बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणाएँ, लेकिन अमल ज़मीनी स्तर पर नहीं होता।
3. तालियों की भूख...
मदारी अपने करतब दिखा कर तालियों और पैसों की अपेक्षा करता है। नेता भी भाषणों में जनता की तालियाँ, समर्थन और अंततः वोट चाहता है।
4. सच्चाई से दूरी...
मदारी के खेल में जो दिखता है, वह अक्सर होता नहीं — जैसे ज़हर वाले साँप, या बिच्छू का जादू। कुछ नेताओं की राजनीति भी इसी तरह दिखावटी होती है — वादे तो बहुत होते हैं, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदलता।
5. नियंत्रण और नाटक...
मदारी अपने पालतू जानवरों को प्रशिक्षित करके उन्हें अपने इशारों पर नचाता है। ठीक वैसे ही, कुछ नेता अपनी राजनीति में लोगों की भावनाओं, जातियों, धर्मों और वर्गों को एक ‘खेल’ की तरह इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे चुनावी लाभ उठा सकें।
दोनों का उद्देश्य होता है,जनता को प्रभावित करना और उनसे लाभ प्राप्त करना
नेता और मदारी में एकरूपता केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि आज के समय में यह एक कटु सत्य बनती जा रही है। दोनों का उद्देश्य होता है — जनता को प्रभावित करना और उनसे लाभ प्राप्त करना। फर्क बस इतना है कि मदारी अपनी कला से रोज़गार कमाता है, जबकि नेता राजनीति से सत्ता प्राप्त करता है। यह लेख किसी विशेष व्यक्ति पर नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर व्यंग्य है, जहाँ राजनीति एक खेल बन चुकी है, और जनता दर्शक।
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