इनोसेंट जनता से कुछ नेता "छद्म सेकुलरिज्म" और दोगलेपन की राजनीति का खेल रहे हैं...
दोगलेपन की राजनीति और सेकुलरिज्म वाले मुखोटे की सच्चाई अब जनता को समझना चाहिए !
भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती इसकी विविधता में है यहाँ अलग-अलग भाषा, संस्कृति, धर्म और विचारधाराओं को बराबरी का हक मिला है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इसी विविधता को अपना ढाल बनाकर कुछ नेता "छद्म सेकुलरिज्म" और दोगलेपन की राजनीति का खेल खेलते आ रहे हैं।
दोगले नेता कौन हैं ?
दोगले नेता वे हैं जो सत्ता की कुर्सी के लिए हर रंग का झंडा ओढ़ लेते हैं। जब जिस वर्ग से वोट चाहिए, उसी के मुताबिक विचारधारा बदल लेते हैं। ये लोग न तो किसी धर्म के सच्चे हितैषी होते हैं और न ही संविधान के। एक दिन हिंदू हितैषी बनने का ढोंग, और दूसरे दिन अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की खुली राजनीति—यही इनका असली चेहरा है।
छद्म सेकुलरिज्म: धर्मनिरपेक्षता का अपमान !
भारत का संविधान 'सेकुलर' यानी धर्मनिरपेक्ष है, लेकिन यह धर्मनिरपेक्षता का मतलब किसी खास धर्म के खिलाफ खड़े होना नहीं है। छद्म सेकुलर नेता धर्मनिरपेक्षता की आड़ में एक खास तबके को खुश करने की राजनीति करते हैं, ताकि वोटबैंक बना रहे। ये वही लोग हैं जो बहुसंख्यक समाज की बात आते ही चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन तुष्टिकरण के मौके पर सबसे आगे खड़े मिलते हैं।
कैसे पहचानें ऐसे नेताओं को...
- 1. वक्त के साथ बदलती ज़ुबान: आज जो नारा लगाते हैं, कल उसी का विरोध करते हैं।
- 2. वोटबैंक की पूजा: नीति नहीं, केवल चुनावी गणित इनके फैसलों को तय करता है।
- 3. सांप्रदायिकता के खिलाफSelective आवाज़: जब एक समुदाय के साथ अन्याय होता है तो ये मौन रहते हैं, लेकिन दूसरे समुदाय के साथ ज़रा सा विवाद हो जाए तो तुरंत मोर्चा खोल देते हैं।
- 4. धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक इस्तेमाल: चुनाव आते ही मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे के दर्शन शुरू हो जाते हैं।
कैसे करें इनका पर्दाफाश और मुकाबला...
- 1. सोशल मीडिया पर इनकी पुरानी और नई बातों को उजागर करें- वीडियो, पोस्ट, ट्वीट्स—इनका अतीत और वर्तमान सामने रखिए।
- 2. तथ्यों के साथ जवाब दें, भावनाओं में नहीं बहें। हर आरोप का तथ्यात्मक उत्तर दीजिए ताकि लोग भटकें नहीं।
- 3. लोकतांत्रिक रूप से सज़ा दें—वोट के ज़रिए। ऐसे नेताओं को फिर से चुनकर लाना, सिर्फ अपने भविष्य से खिलवाड़ है।
- 4. जन जागरूकता अभियान चलाएं। मोहल्लों, कस्बों, सोशल ग्रुप्स में संवाद शुरू करें कि असली सेकुलर कौन है और नकली कौन।
कब तक झूठे सेकुलरिज्म और दोगली राजनीति के शिकार बनते रहोगे !!!
हर चुनाव से पहले
- – कोई मंदिर जाता है, कोई मस्जिद।
- – कोई टोपी पहनता है, कोई तिलक लगाता है।
- – कोई "सबका साथ" की बात करता है, पर साथ सिर्फ वोटबैंक का देता है।
ये नेता न हिंदू के हैं, न मुसलमान के, ये सिर्फ कुर्सी के हैं...
- जो हर बार आपकी भावनाओं से खेलें,
- जो एक धर्म की बात करते हुए दूसरे को नीचा दिखाएं,
- जो बहुसंख्यकों की बात आते ही मौन हो जाएं –
- समझ लो, वो सेकुलर नहीं, सत्ता-भूखे नौटंकीबाज़ हैं।
अब इनका झूठ उजागर करना है –
- – इनकी बातें शेयर नहीं, एक्सपोज़ करो।
- – इनकी पुरानी क्लिप्स दिखाओ, दोहरे मापदंड बताओ।
- – और सबसे अहम, वोट से सबक सिखाओ।
वक्त है अब नेता नहीं, देश चुनने का...
अंत में एक सवाल हम सब से कब तक हम जात-पात और धर्म की अफीम में उलझकर इन्हीं चेहरों को मौका देते रहेंगे ? वक्त आ गया है जब हम नारा नहीं, नीयत देखेंगे। वादा नहीं, व्यवहार देखेंगे। धर्म की दुकान नहीं, राष्ट्र की भलाई देखेंगे। तभी लोकतंत्र बचेगा, तभी संविधान सुरक्षित रहेगा।
भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती इसकी विविधता में है—यहाँ अलग-अलग भाषा, संस्कृति,धर्म और विचारधाराओं को बराबरी का हक मिला है। लेकिन दुर्भाग्यवश, इसी विविधता को अपना ढाल बनाकर कुछ नेता "छद्म सेकुलरिज्म" और दोगलेपन की राजनीति का खेल खेलते आ रहे हैं।
दोगली राजनीति खत्म करो,छद्म सेकुलरिज्म बेहिसाब .....!!!
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