गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप से चल रही है गड़बड़ियों की जांच...
आईडीए से गायब हो गई सी-21 बिजनेस पार्क की एनओसी की फाइल !
इंदौर। फर्जी तरीके से तृष्णा गृह निर्माण संस्था द्वारा जमीन खरीदकर बने सी-21 बिजनेस पार्क की एनओसी की फाइल ही इंदौर विकास प्राधिकरण से गायब है। गृह मंत्रालय के निर्देश पर शुरू हुई जांच में इस जमीन को लेकर कई खुलासे हो रहे हैं। सहकारिता विभाग पहले ही इस जमीन के सौदे को गलत करार देकर जांच कर रहा है, अब दूसरे विभाग भी जांच में जुटे हैं।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ महीने पहले गृह मंत्रालय के निर्देश पर सहकारिता विभाग ने तृष्णा गृह निर्माण संस्था की जमीन पर बसे सी-21 बिजनेस पार्क के मामले में जांच शुरू की थी। इसमें पूरा सौदा ही फर्जी पाया गया था। जिस संस्था ने जमीन बेची, उसका पंजीयन ही निरस्त हो चुका था। सहकारिता विभाग ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस देकर जवाब मांगा था। इस मामले में इंदौर विकास प्राधिकरण, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से लकर नगर निगम तक की भूमिका संदेह के घेरे में है।
आवक-जावक में एंट्री ही नहीं
सूत्र बताते हैं कि आईडीए से सी-21 बिजनेस पार्क की एनओसी ही गायब है। यहां तक कि आवक-जावक में भी इसकी एंट्री नहीं है। इस पूरे मामले में इंदौर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों और पिंटू छाबड़ा की सांठगांठ सामने आ रही है। जिस एनओसी का जिक्र जमीन की रजिस्ट्री में की गई है और नंबर भी दिए गए हैं, उसका आईडीए से गायब होना बहुत बड़ी गड़बड़ी है। अगर लोकायुक्त में इसकी शिकायत होगी तो कई अधिकारी नपेंगे। कहीं ऐसा तो नहीं कि फर्जी एनओसी पर ही बिल्डिंग तान दी गई।
आखिर कैसे दे दी कमर्शियल की परमिशन
सी-21 मॉल बिजनेस पार्क की जमीन कृषि भूमि थी, जिसे तृष्णा गृह निर्माण संस्था से खरीदा गया। उस समय टीएनसीपी में तृष्णा और कनकेश्वरी गृह निर्माण संस्था ने आपत्ति भी ली थी, इसके बाद भी कृषि भूमि पर कमर्शियल नक्शा पास कर दिया गया। जब कि आज भी 94 पार्ट-2 और आसपास कहीं भी कमर्शियल परमिशन नहीं दी जा रही है। यह भी जांच का विषय है। रजिस्ट्री में भी मेंशन है कि संस्था की जमीन है। इसमें भी कुछ अधिकारियों की संलिप्तता आ रही है। इसको लेकर आगे लोकायुक्त में शिकायत भी होगी।
स्कीम 53 के खसरे पर बना है बिजनेस पार्क
जिस 28/2 खसरे पर यह बिजनेस पार्क बना है, वह आईडीए की स्कीम 53 का हिस्सा है। इस स्कीम को छोड़ने की अनुमति आईडीए ने अभी तक शासन से नहीं ली है। शासन के पास डिनोटिफिकेशन की कोई फाइल भी नहीं भेजी गई। आईडीए के पास अपने स्तर पर कोई स्कीम छोड़ने का अधिकार भी नहीं है, ऐसे में स्कीम की जमीन पर अनुमति मिलना जांच का विषय है।
इन मुद्दों पर जांच हो तो कई विभाग फंसेंगे
प्रशासन को इस मामले में कई मुद्दों पर जांच करनी चाहिए। पहला कि गृह निर्माण संस्था की जमीन पर कमर्शियल निर्माण कैसे हो गया, क्योंकि यह तो सदस्यों के आवास की जमीन होती है। दूसरा जब कृषि की जमीन का सौदा हुआ तो टीएनसीपी ने नक्शा कैसे पास होने दिया। जिस सड़क पर यह बिजनेस पार्क बना है, वह कमर्शियल भी नहीं है। अभी तक शहर में सिर्फ सपना-संगीता रोड और एबी रोड ही कमर्शियल घोषित हैं। इसकी भी जांच होनी चाहिए।
चाय व्यापारियों की जमीन फ्री होल्ड कराने की कोशिश
पिंटू छाबड़ा ने एबी रोड पर फर्जी तरीके से चाय व्यापारियों के प्लॉट को जोड़कर सी-21 मॉल बना रखा है। इसकी कई बार शिकायत हुई, लेकिन छाबड़ा के जादू में सारे विभाग मौन हो जाते हैं। आईडीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब छाबडा कोशिश कर रहे हैं कि आईडीए चाय व्यापारियों की इस जमीन को फ्री होल्ड कर दे।
पिंटू छाबड़ा विकास प्राधिकरण
इंदौर विकास प्राधिकरण में जिस तरह पिंटू छाबड़ा की पैठ, उसे पिंटू छाबड़ा विकास प्राधिकरण भी कहा जाने लगा है। इसका कारण छाबड़ा जैसा चाहते हैं, आईडीए वैसा ही कर देता है। पहले चाय व्यापारियों के प्लॉट का मामला हुआ, फिर तृष्णा गृह निर्माण संस्था की जमीन का। इसके अलावा भी कई और मामले हैं।
निर्माण में भी भारी गड़बड़ी
सूत्र बताते हैं कि इस बिल्डिंग के निर्माण में भी भारी गड़बड़ी हुई है। स्वीकृत नक्शे से काफी ज्यादा निर्माण किया गया है। पूरी बिल्डिंग में ही नक्शे के विपरित निर्माण किया गया है। अगर नगर निगम इसकी जांच करे तो गड़बड़ियों का खुलासा हो।
टीएनसीपी की भूमिका संदिग्ध
इस पूरे मामले में टीएनसीपी के अधिकारियों की भूमिका काफी संदिग्ध रही है। ताज्जुब तो इस बात पर होता है कि टीएनसीपी जब इस बिल्डिंग का नक्शा पास कर रहा था, तब प्रदेश सरकार भूमाफियाओं पर कार्रवाई कर रही थी। ऐसे में बड़ा सवाल यह भी है कि इस तरह की गड़बड़ियों पर सरकार ने उस समय जो कार्रवाई की क्या वह गलत थी? अगर नहीं तो फिर इस बिल्डिंग को सारी अनुमति कैसे मिल गई।
रजिस्ट्री की सेल डीड पर सिद्ध के हस्ताक्षर
रजिस्ट्री की सेल डीड पर उसी राजेश सिद्ध के हस्ताक्षर हैं, जो न्याय नगर के मामले में पकड़ा गया था। लेकिन, तृष्णा गृह निर्माण संस्था के मामले में सिद्ध पर कार्रवाई इसलिए नहीं हुई, क्योंकि उसने पिंटू छाबड़ा को जमीन बेची।
लीपापोती कराने में जुटे मंत्री और अफसर
गृह मंत्रालय के आदेश पर सहकारिता विभाग में जांच तो शुरू हो गई है, लेकिन बताया जाता है कि एक मंत्री ने पिंटू छाबड़ा के पक्ष में मैदान संभाल रखा है। भोपाल में पदस्थ सहकारिता विभाग के एक बड़े अफसर नहीं चाहते कि इसकी जांच हो। इसलिए इतनी सारी गड़बड़ियां मिलने के बाद भी लीपापोती की कोशिश जारी है।
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