नई शिक्षा नीति से भारत की शिक्षा पद्धति काफी विकसित होगी...
जीवाजी विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ
ग्वालियर। भारतीय ज्ञान परंपरा एक अजीब शक्ति के रूप में कार्य करती रहती है।हम डूबते डूबते भी प्रखर तेज के साथ खड़े हो गए।हमारी सुदृढ़ संस्कृति रही है। हमारे सारे ग्रंथों को आधार मानकर नई तकनीकी की बात करें तो ज्यादा सफल हो सकते हैं। पुस्तकालय हमें तकनीकी से जोड़ते हैं। वह संस्कृति को सहेज कर रखते हैं। साहित्य की बात करें तो भरतनाट्यम भी स्वीकार किया गया है जो प्रदर्शनात्मक कलाओं के लिए आवश्यक है। हम अपने सनातन को ध्यान में रखकर आगे बढ़ेंगे। हम निश्चित ही विकसित भारत की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आदर्श के लिए जिएं हम आदर्श के लिए मरे हम।एक निरंतर प्रवाह बना रहा जिससे भारतीय ज्ञान परंपरा को बनाए रखने में मदद मिली। हमारे ग्रंथ हैं जो हमें समय-समय पर ज्ञान देते रहे हैं। हमारे चारों वेद हमारी संस्कृति को बनाए रखने के लिए हमें प्रेरित करते हैं। नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के माध्यम से भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना है।प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान परम्परा के तहत नीति तैयार की गई।
तक्षशिला,नालंदा,विक्रमशिला और वल्लभी जैसे प्राचीन भारत के विश्व स्तरीय संस्थानों ने अध्ययन के विविध क्षेत्रो में शिक्षण और शोध के ऊंचे प्रतिमान स्थापित किए थे। इसी शिक्षा व्यवस्था ने चरक, सुश्रुत आर्यभट, वराहमिहिर भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, चाणक्य, माधव, पाणिनी पतंजलि, नागार्जुन, गौतम, गार्गी, जैसे अनेकों महान विद्वानों को जन्म दिया।यह बात शनिवार को संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की कुलगुरू डॉ. स्मिता सहस्त्रबुद्धे ने जेयू के गालव सभागार में ज्ञान प्रणाली और पुस्तकालयों में नई प्रौद्योगिकियां विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि कही। विशिष्ट अतिथि के रूप में समाजसेवी व म.प्र. शासन में सूचना आयुक्त डॉ.उमाशंकर पचौरी उपस्थित रहे। मुख्य वक्ता के रूप में उवा वेलासा विश्वविद्यालय श्रीलंका के लाइब्रेरियन डॉ.टी.प्रथीपन मौजूद रहे।वहीं अध्यक्षता जेयू के कुलगुरू प्रो. राजकुमार आचार्य ने की।प्रो.हेमंत शर्मा के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यक्रम के दौरान सभी अतिथियों को शॉल श्रीफल देकर सम्मानित किया गया।
साथ ही स्मारिका का विमोचन किया गया।इसी क्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ.उमाशंकर पचौरी ने कहा कि जिस देश की लाइब्रेरी इतनी समृद्ध होती थी जिसमें देश दुनिया के लोग ज्ञान अर्जित करने आते थे। पूरी योजनाबद्ध तरीके से हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा को नष्ट किया गया है। हम दिन प्रतिदिन नई तकनीकी को सीखने का प्रयास करें। ऋषियों ने जो तपस्या की है, उस तपस्या का कोई मुकाबला नहीं है। एआई से रिसर्च पेपर लिखने की परंपरा नहीं है भारत में पुस्तकालय में जाकर पढ़ने लगे भारत का विद्यार्थी तो निश्चित ही भारत की ज्ञान परंपरा समृद्ध होगी। गीता और रामायण के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा को समझाया। नई तकनीकी में रामायण और महाभारत को पुस्तकालय में पढ़ सकते हैं। इसमें नई डिवाइस विकसित की जा सकती है। ज्ञान आपको पुस्तकालय में मिलेगा लेना नई तकनीकी से है। लक्ष्य बहुत स्पष्ट है। पुस्तकालय दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जितना ज्यादा दिमाग का प्रयोग करोगे, वह उतना ही विकसित होगा। सारे विकास और निर्माण इसी से हुए हैं।
पुस्तकालय को नए विकल्प तलाशने की आवश्यकता है। एक विचार पूरे राष्ट्र को बदल सकता है। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ.टी.प्रथीपन ने कहा कि ज्ञान प्रणालियों और पुस्तकालयों में नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग सूचना तक पहुंच,संगठन और उपयोग में सुधार करने में मदद करता है, जिससे पुस्तकालयों को अधिक प्रासंगिक और प्रभावी बनाया जा सकता।सूचना को डिजिटल रूप में संग्रहीत और व्यवस्थित करना, जिससे दूरस्थ उपयोगकर्ताओं के लिए भी सूचना तक पहुंचना आसान हो जाता है।पुस्तकालयों के संसाधनों को ऑनलाइन उपलब्ध कराकर, उपयोगकर्ताओं को आसानी से सामग्री खोजने में मदद मिलती है।
पुस्तकालयों को ई-पुस्तकों और अन्य डिजिटल संसाधनों को उपलब्ध कराकर, उपयोगकर्ताओं को अधिक विकल्प प्रदान कर सकते हैं। एआई का उपयोग पुस्तकालयों को उपयोगकर्ताओं की जरूरतों को बेहतर ढंग से समझने और उन्हें प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने में मदद कर सकता है।पुस्तकालयों को प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बिठाना होगा और उपयोगकर्ताओं की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए नए तरीकों से काम करना होगा।नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग पुस्तकालयों को अधिक प्रासंगिक और प्रभावी बनाने में मदद करता है।पुस्तकालय के क्षेत्र में नई तकनीकी के प्रयोग से काफी बदलाव आएगा। खासकर एआई के प्रयोग ने इस तकनीकी को और भी आसान बना दिया है।
प्राचीन काल से ही भारत की शिक्षा पद्धति काफी समृद्ध रही है। वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन से काफी मदद मिलेगी। पुस्तकालय को भारतीय ज्ञान एवं परंपरा से जोड़ना होगा।अंत में उन्होंने कहा कि पुस्तकालय पारंपरिक ज्ञान के लिए एक स्तंभ का काम करता है। टीचिंग लर्निंग रिसर्च मुख्य तीन स्तंभ हैं।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जेयू के कुलगुरू प्रो.राजकुमार आचार्य ने कहा कि प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से उत्कृष्ट थी लेकिन कालान्तर में भारतीय शिक्षा व्यवस्था का ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहां की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया जिस अनुपात में होना चाहिए था।भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियां व समस्याएं हमारे सामने हैं।जीवन में शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्तमान सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में व्यापक बदलावों के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दी है।
यह शिक्षा नीति शिक्षा क्षेत्र में नवीन और सर्वांगीण परिवर्तनों की आधारशिला रखेगी। उन्होंने कहा कि किसी भी देश के विकास में पुस्तकालय का महत्वपूर्ण योगदान होता है। पुस्तकालय से विद्यार्थी जीवन में निश्चित ही मस्तिष्क का विकास होता है। पुस्तकालयों के लिए भारत प्राचीन काल से ही समृद्ध था। पुस्तकालय में किताबों को पढ़ना चाहिए और उससे अर्जित ज्ञान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।हर किताब का अपना पाठक होता है जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि पुस्तकालय विज्ञान में हम क्या नया कर सकते हैं, यह सोचने का विषय है। पाठक का समय बचाएं,अध्ययन के प्रति एकाग्रता होनी चाहिए। पुस्तकालय बढ़ता हुआ जीव है बस किताबों को पढ़ने की रुचि होनी चाहिए। हमें किताबों को डिजिटल फॉर्म में करना होगा जिससे छात्र आसानी से पढ़ सकें। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय ज्ञान परंपरा को जोड़ना होगा। छात्रों को नई तकनीकी से जोड़कर उनके ज्ञान को बढ़ाने में अपना योगदान देना होगा। इसी क्रम में सभी अतिथियों ने पुस्तकालय में स्थित इलेक्ट्रॉनिक संसाधन केंद्र को देखा।
कार्यक्रम के दौरान 15 तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें सुभाष वास्कले,अनिल जैन,राकेश खरे, सुनंदा राणा,वायपीएस सेंगर, हेमंत शर्मा,रेणुका,उमेश नाइक, सुशीला, सरिता वर्मा,हृदयकांत श्रीवास्तव, गणेश बाबू शर्मा,ऋचा, राजीव मिश्रा, अनीता सिंह,आरपी बाजपेई,रजनी सिंह,जीतेन्द्र श्रीवास्तव,गौरव मिश्रा,सुमित गुप्ता, जे.एन. गौतम, नीरजा,मनीषा रानी, मानवी नरवरिया,ऋतुराज पाराशर, अंजना शर्मा ने शोध पत्र पढ़े।कार्यक्रम का संचालन रजनी रामपुरे व आभार प्रो.जेएन गौतम ने व्यक्त किया।इस अवसर पर प्रो.एसएन मोहापात्रा, प्रो.एसके श्रीवास्तव, प्रो.एसके सिंह,डॉ.स्वर्णा परमार,प्रो. संजय गुप्ता, डॉ. सतेंद्र सिंह सिकरवार, डॉ. शैलेन्द्र पटेरिया,प्रो. आईके पात्रो,प्रो. एमके गुप्ता, प्रो.शांतिदेव सिसौदिया, डॉ.पीके जैन, डॉ. मनोज शर्मा,डॉ. केशव पांडे, डॉ. विमलेंद्र सिंह राठौर, डॉ. शेलेन्द्र पटेरिया,पूर्व कार्य परिषद सदस्य प्रदीप कुमार शर्मा, संजय यादव, शकील कुरैशी, संजय जादौन,सहित शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।
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