भारत में अब तक 4 बार हुआ है परिसीमन !
परिसीमन के बाद इस राज्य में होगी सबसे अधिक लोकसभा सीटें !
देशभर में परिसीमन को लेकर बहस छिड़ी हुई है। 2026 में परिसीमन होने वाला है। जब साल 2001 में जनगणना हुई थी, तब परिसीमन 25 साल तक के लिए टाल दिया गया था। अगर उसे हिसाब से देखें तो 2026 तक परिसीमन पूरा हो जाना चाहिए। इस बीच दक्षिण भारतीय राज्य के राजनीतिक दल परिसीमन का विरोध कर रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि वह परिसीमन का विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि जिस आधार पर सरकार इसे करना चाहती है, वह इसका विरोध कर रहे हैं।
एमके स्टालिन ने जताई चिंता
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यहां तक कह दिया कि अगर परिसीमन मोदी सरकार ने लागू किया तो तमिलनाडु में आठ लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि अगर वर्तमान व्यवस्था के आधार पर परिसीमन हुआ तो किस राज्य में सबसे अधिक सीटें होगी। 1971 की जनगणना के बाद 1976 में परिसीमन होना था लेकिन इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान में संशोधन किया और इसे 25 साल तक टाल दिया। इसके बाद 2001 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार ने 2026 तक टाल दिया। अब 2026 आने वाला है और परिसीमन को लेकर मोदी सरकार का रुख स्पष्ट दिख रहा है।
किस आधार पर होगा परिसीमन
माना जा रहा है कि जनगणना में देश की जनसंख्या 150 करोड़ को पार कर जाएगी। ऐसे में 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट परिसीमन आयोग द्वारा तय की जा सकती है। अगर ऐसा होता है तो देश में 543 की जगह 753 लोकसभा सीटें हो जाएगी, लेकिन इससे दक्षिण और उत्तर भारत में सीट के अनुपात में बड़ा फर्क आएगा। इसी का डर दक्षिण भारतीय राज्यों के दलों को है। वर्तमान में 543 में से 129 लोकसभा सीटें दक्षिण भारतीय राज्यों में है। इन राज्यों में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं। यानी लोकसभा में 24 फीसदी सीटें दक्षिण भारतीय राज्यों से आती हैं। अब अगर 20 लाख की आबादी के हिसाब से परिसीमन होता है तो दक्षिण भारत की सीटें बढ़कर 144 हो जाएगी। लेकिन अगर हम 753 लोकसभा सीटों के हिसाब से देखेंगे तो यह 19 फीसदी होता है। यानी वर्तमान अनुपात से पांच फीसदी कम।
यूपी में सबसे अधिक सीटें
लेकिन यदि हम उत्तर भारत के कुछ राज्यों की सीटों पर नजर डाले और 20 लाख की आबादी के आधार पर परिसीमन हुआ तो यूपी में लोकसभा सीटें 80 से बढ़कर 128 हो जाएंगी। वहीं बिहार में लोकसभा सीटें 40 से बढ़कर 70 हो जाएंगी। जबकि मध्य प्रदेश में 29 से बढ़कर 47 हो जाएंगी जबकि राजस्थान की लोकसभा सीटें भी 44 हो जाएंगी। ऐसे में उत्तर भारतीय राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या में भारी वृद्धि होगी। इसी का डर दक्षिण भारत के राजनीतिक दलों को सता रहा है।परिसीमन का उद्देश्य होता है कि इसके जरिए संसद और विधानसभा की सीटों की संख्या में बराबरी रहे। इसका उद्देश्य होता है कि हर सीट पर मतदाता लगभग बराबर रहें, यानी किसी के साथ कोई भेदभाव ना हो।
भारत में अब तक 4 बार हुआ है परिसीमन !
भारत में अब तक चार बार परिसीमन हुआ है। 1951 की जनगणना के बाद 1952 में पहली बार परिसीमन हुआ था। इसके बाद 1961 की जनगणना हुई और 1963 में दूसरी बार परिसीमन हुआ। इस परिसीमन में लोकसभा के लिए 522 जबकि विधानसभा के लिए 3771 सीटें तय की गई। इसके बाद 1973 में तीसरी बार परिसीमन हुआ और लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई जबकि विधानसभा सीटों की संख्या 3997 हो गई। 2001 की जनगणना के बाद 2002 में चौथी बार परिसीमन हुआ लेकिन लोकसभा सीटों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई। केवल विधानसभा की सीटों की संख्या में वृद्धि हुई। 2002 में विधानसभा की सीटें बढ़कर 4123 हो गई और लोकसभा के लिए 25 साल तक परिसीमन टाल दिया गया।
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