G News 24 : सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ तो,काठमांडू के नागरिक निकाय ने पूर्व राजा पर लगाया जुर्माना !

 नेपाल में राजशाही समर्थकों का हिंसक आंदोलन,कारें फूंकी, घरों में की तोड़फोड़...

सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ तो,काठमांडू के नागरिक निकाय ने पूर्व राजा पर लगाया जुर्माना !

काठमांडू।नेपाल की राजधानी काठमांडू में शुक्रवार को राजशाही समर्थक उग्र हो गए और उन्‍होंने कई गाडि़यों को फूंक दिया, घरों में तोड़फोड़ की, कई जगह लूटपाट करने की भी खबर सामने आई हैं. पुलिस जब उग्र राजशाही समर्थकों को रोकने के लिए सड़कों पर उतरी, तो दोनों के बीच जमकर झड़प हुई. सुरक्षाकर्मियों और राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों (Nepal Protest) के बीच झड़प में एक टीवी कैमरामैन समेत दो लोगों की मौत हो गई और 110 अन्य लोग घायल हो गए. इसके बाद स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना को बुलाया गया. अब नेपाल सरकार इस हिंसक प्रदर्शन के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के खिलाफ एक्‍शन मोड में नजर आ रही है.  

 पूर्व राजा पर 7,93,000 नेपाली रुपये का जुर्माना

नेपाल की राजधानी में राजशाही समर्थक विरोध प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति और पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए काठमांडू के नागरिक निकाय ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर जुर्माना लगाया है. दरअसल, यह विरोध प्रदर्शन ज्ञानेंद्र शाह के आह्वान पर आयोजित किया गया था, जिससे काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी (केएमसी) ने काठमांडू के बाहरी इलाके महाराजगंज में उनके आवास पर एक पत्र भेजा. इस पत्र में केएमसी ने उनसे 7,93,000 नेपाली रुपये का मुआवजा देने को कहा. साथ ही, सरकार ने उनका पासपोर्ट भी रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. यह जुर्माना सड़कों और फुटपाथों पर कचरे के अनुचित निपटान, साथ ही भौतिक संरचनाओं को हुए नुकसान के लिए लगाया गया.

केएमसी ने शनिवार को कचरा प्रबंधन अधिनियम, 2020 और काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी फाइनेंस एक्ट, 2021 के उल्लंघन का हवाला देते हुए जुर्माना नोटिस जारी किया. रिपोर्ट के मुताबिक, काठमांडू के कई हिस्सों में शुक्रवार को तनावपूर्ण स्थिति देखी गई, जब राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया, एक राजनीतिक दल के कार्यालय पर हमला किया, वाहनों में आग लगा दी और काठमांडू के तिनकुनेबनेश्वर इलाके में दुकानों में लूटपाट की. इस हिंसक झड़प में एक टीवी कैमरामैन सहित दो लोगों की मौत हो गई और 110 अन्य घायल हो गए. ज्ञानेंद्र शाह को भेजे गए पत्र में (जिसकी प्रतियां मीडिया को भी दी गईं) केएमसी ने कहा, 'पूर्व सम्राट के आह्वान पर आयोजित विरोध प्रदर्शन ने महानगर की विभिन्न संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया और राजधानी शहर के पर्यावरण को प्रभावित किया.'

नेपाल में हिंसक आंदोलन के आयोजक दुर्गा प्रसाद ने एक दिन पहले ज्ञानेंद्र शाह से मुलाकात की थी और उन्हें राजशाही और हिंदू राज्य की बहाली की मांग को लेकर आंदोलन करने के निर्देश मिले थे. यह घटनाक्रम तब हुआ, जब फरवरी में लोकतंत्र दिवस के बाद से राजशाही समर्थक सक्रिय हो गए थे, जब ज्ञानेंद्र शाह ने कहा था, 'समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें.' इसके बाद, राजशाही समर्थक काठमांडू और देश के अन्य हिस्सों में रैलियां आयोजित कर रहे थे, जिसमें 2008 में समाप्त की गई 240 साल पुरानी राजशाही को बहाल करने की मांग की गई थी. इससे पहले, सोमवार, 24 मार्च को नेपाल में नागरिक समाज के नेताओं के एक समूह ने ज्ञानेंद्र शाह की 'राजशाही को बहाल करने के उद्देश्य से राजनीतिक रूप से सक्रिय होने' के लिए आलोचना की थी. आठ नागरिक समाज नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा था, 'ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों के राष्ट्र निर्माण के प्रयासों को विफल करता है और अपने पड़ोसियों और दुनिया के सामने देश को कमजोर करने का खतरा पैदा करता है.

राजतंत्र बनाम लोकतंत्र की जंग 

नेपाल के लोकतंत्र समर्थक चार दलों के समाजवादी मोर्चा के आंदोलन का विरोध किया है. विरोध करने वाले दलों में पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहाल प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र और पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी शामिल हैं. इनके अलावा इसमें कुछ छोटे दल और मधेश की राजनीति करने वाले दल शामिल हैं. प्रचंड के नेतृत्व में विपक्षी दलों के मोर्चा ने भी काठमांडू में एक अलग रैली की. इसमें शामिल लोगों ने 2015 में लागू किए गए धर्मनिरपेक्ष संघीय गणतंत्र संविधान की रक्षा करने की कसम खाई. इस मोर्चे का कहना है कि नेपाल के लोगों ने गणतंत्र के लिए संघर्ष किया है और बलिदान दिया है, वे राजशाही को बहाल नहीं होने देंगे. 

राजशाही समर्थकों ने संयुक्त जन आंदोलन समिति का गठन कर गुरुवार को घोषणा की थी कि यदि सरकार एक हफ्ते में उनसे समझौता नहीं करती, तो वे उग्र प्रदर्शन करेंगे. लेकिन समय सीमा खत्म होने का इंतजार किए बिना शुक्रवार को ही उग्र और हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस समिति ने सरकार ने 1991 के संविधान को बहाल करने की मांग की है. नेपाल का यह संविधान राजशाही के साथ-साथ बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र प्रणाली को मान्यता देता है. इस संविधान के मुताबिक नेपाल एक हिंदू राष्ट्र है और देश में फिर से राजशाही बहाल होनी चाहिए. 

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