ग्वालियर में भी हुआ है लैंड जिहाद, लेकिन इस लैंड जिहाद में शामिल है...
ग्वालियर में सुनियोजित तरीके से राज-नेताओं एवं ब्यूरोक्रेट्स की मिली भगत से हुआ लैंड जिहाद!
देश में इन दोनों लैंड जिहाद की चर्चा बड़े जोर शोर से होती है और इस लैंड जिहाद के लिए एक धर्म विशेष को जिम्मेदार माना जाता रहा है। लेकिन हम जिस लैंड देहात की बात कर रहे हैं उसमें किसी धर्म विशेष या समूह के लोग शामिल नहीं है बल्कि यह लैंड जिहाद राज-नेताओं एवं ब्यूरोक्रेट्स के आपसी गठजोड़ से विगत कई वर्षों से मिलकर के किया जा रहा है। आयरलैंड जिहाद के कारण ग्वालियर जैसे शहर की विशेष संरचनाओं को भी बदलने से परहेज नहीं किया गया। उसके विकास के लिए जो स्ट्रक्चर स्टेट के समय मैं खड़ा किया गया था, उसे भी तहस-नहस किया जाता रहा है।
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो ग्वालियर के वाटर लेवल को सुव्यवस्थित तो बनाए रखने के लिए शहर के बीचो-बीच लगभग 13 किलोमीटर की एक नदी बनाई गई थी जिसमें आसपास बने बांधों का पानी बहता था यह नदी स्वर्णरेखा नदी के नाम से जानी जाती रही है। इस नदी को स्वार्थी एवं लालची किस्म के राजनीतिज्ञों एवं भ्रष्ट अधिकारियों ने मिलकर नाले के रूप में परिवर्तित होने दिया। इन राजनीतिज्ञों योग के गुर्गों ने भ्रष्ट अधिकारियों से मिलकर नदी के आसपास अतिक्रमण करके कहीं मैरिज गार्डन तो कहीं माल्टियां खड़ी कर दी गई है, यह सिलसिला अभी भी बदस्तूर जारी है। यही कारण है की नदी एक नाला बन गई और अब वह नाल एक नाली के रूप में परिवर्तित हो चुका है कहीं-कहीं तो इस नाली को भी खत्म करके पाइपों के जरिए पानी को शहर से बाहर निकल जाने की व्यवस्था की जा रही है।
इन लोगों ने अपने फायदे के लिए नदी के पानी को शहर से बाहर निकाल करके शहर के वाटर लेवल का सत्यानाश कर दिया है क्योंकि यह नदी वाटर लेवल को रिचार्ज करने का काम करती थी और इन लोगों ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए इस नदी के तल को पहले पक्का किया और अब एलिवेटेड रोड के नाम पर इसे पूरी तरह से खत्म सा ही कर दिया गया है। स्वर्णरेखा की इस स्थिति मैं पहुंचने के कारण शहर का वाटर लेवल तो गिरना तय है। इसके अलावा जब बरसात होगी तो उसके द्वारा शहर का पानी कहां जाएगा इस बारे में किसी ने नहीं सोचा। अभी 1 घंटे अगर लगातार बारिश हो जाती है तो पूरा शहर जलमग्न हो जाता है आगे चलकर क्या होने वाला है इस शहर का इसकी फिक्र शायद किसी को नहीं है।
शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए शहर को एलिवेटेड रोड की जरूर तो थी लेकिन यह एलिवेटेड रोड स्वर्णरेखा के ऊपर ही क्यों बनाया जाना जरूरी समझ गया इस पर किसी पर्यावरण विद् ने क्यों कर कोई उंगली नहीं उठाई। यातायात को सुचारू रखने के लिए और भी कई विकल्प शहर के बीचो-बीच मौजूद हैं लेकिन उन विकल्पों पर गौर ही नहीं किया गया।
इस एलिवेटेड रोड के लिए सबसे अच्छा विकल्प शहर के अंदर मौजूद नेरोगेज रेलवे (छोटी लाइन) की जमीन हो सकती थी, लेकिन रेलवे की यह जमीन ग्वालियर स्टेशन से गोला का मंदिर दीनदयाल नगर महाराजपुरा इधर स्टेशन से जय विलास पैलेस नाका चंद्रवदनी आमखो गोल कंपू पहाड़िया से होते हुए लक्ष्मीगंज ए.बी. से पुरानी छावनी तक एवं स्टेशन से खेड़ापति हनुमान मंदिर गोपाचल पर्वत शिन्दे की छावनी लक्ष्मण तलैया होकर जोन घोसीपुरा से होकर पुरानी छावनी तक एक बेहतरीन एलिवेटेड कॉरिडोर रेलवे की इस जमीन पर बनाया जा सकता था। जिसके सभी जगह स्टॉपेज भी आसानी से उपलब्ध हो सकते थे। लेकिन शहर के कर्ण धारों ने इस विषय में कभी सोचा ही नहीं ! सोचते भी कैसे ?
क्योंकि ग्वालियर स्टेशन से गोला का मंदिर दीनदयाल नगर महाराजपुरा इधर स्टेशन से जय विलास पैलेस नाका चंद्रवदनी आमखो गोल कंपू पहाड़िया से होते हुए लक्ष्मीगंज ए.बी. से पुरानी छावनी तक की जमीन पर तो इन कर्ण धारों ने भू माफिया के साथ मिलकर लैंड जिहाद करके सारी जमीन पर आवासीय एवं कमर्शियल कंपलेक्स खड़े कर दिए गए। अब इन लैंड जिहादियों की नजर अभी हाल ही में ग्वालियर से श्योपुर के लिए चलने वाली नेरोगेज के बंद आने के बाद ब्रॉड गेज रेल सेवा शुरू की गई है इसके बाद से नेहरू गेज का यह ट्रैक बामोर तक बेकार पड़ा है यही कारण है कि इंग्लैंड जिहादियों की नजर इस ट्रैक पर है। जिसके लिए यह मौके की तलाश में हैं कि कम मौका लगे और इस जमीन को भी हड़प लें।
इसलिए मेरा मानना है कि स्वर्ण रेखा नदी के वजाय रेलवे ट्रैक की जो जमीन खाली हुई है,उसी जमीन पर या तो रिंग रोड बना बना दी जाती या फिर जो एलिवेटेड रोड रेखा नदी पर बनाई जा रही है उसे रेलवे ट्रैक की जमीन पर बना करके भी यातायात को सुव्यवस्थित किया जा सकता था! इससे एलिवेटेड की लागत भी काम हो जाती,सरकार का पैसा भी बचता और जमीन भी सुरक्षित रहती। क्योंकि अभी भी तो फूलबाग से रामदास घाटी मेंटल हॉस्पिटल चौराहा एवं उरवाई गेट तक एलिवेटेड बनाने की योजना है।
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