दिल्ली में खुद ही खत्म कर दी 'आम आदमी' की उम्मीद...
अर्श से फर्श पर आ गए पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल !!!
दिल्ली में आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा देश के राजनीतिक पंडित लगा रहे थे. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की बड़ी हार ने सभी को चौंकाया.. बिना किसी लाग लपेट यह कहा जाए कि अरविंद केजरीवाल ने खुद ही अपनी और आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. यह सब एक दिन में नहीं हुआ.. इसके पीछे की क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है. कैसे जनता ने खुद को ठगा पाया.उससे भी ज्यादा नई दिल्ली सीट के परिणाम ने चौंकाया.
सीधा और सपाट शब्दों में कहें तो हार के पीछे के कारणों को खंगाला जाए तो पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल खुद ही इसकी बड़ी वजह नजर हैं. आम आदमी की छवि गढ़कर राजनीति में कदम रखने वाले केजरीवाल का सफर शीशमहल तक पहुंचने के बाद उनकी सादगी वाली छवि को ध्वस्त कर गया. शराब नीति घोटाले जैसे आरोप, तानाशाहीपूर्ण नेतृत्व शैली और अड़ियल रवैये ने जनता का भरोसा तोड़ा. नतीजा सबके सामने है. सवाल है कि क्या आम आदमी पार्टी की राजनीति दिल्ली से खत्म हो रही है.. इसे समझना जरूरी है.
'आम आदमी' की छवि से 'शीशमहल' तक
दरअसल केजरीवाल ने राजनीति की शुरुआत आम आदमी की सादगी और ईमानदारी के प्रतीक के रूप में की थी. मेट्रो से सफर करना, सस्ती कार में चलना, सुरक्षा लेने से इनकार करना ये सभी बातें उन्हें जनता के बीच अलग बनाती थीं. लेकिन जल्द ही यह छवि धूमिल होने लगी. 40 करोड़ के सरकारी बंगले को लेकर उठे विवाद ने उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका दिया. जनता ने उन्हें अपने जैसा नेता समझकर चुना था लेकिनउनकी वीवीआईपी लाइफस्टाइल देखकर जनता ने खुद को ठगा पाया.
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से शराब घोटाले तक
याद करिए वो दिन जब कभी केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकले नेता थे लेकिन वह समय आ गया जब उनकी ही सरकार पर शराब नीति घोटाले के आरोप लगे. यह वही पार्टी थी जो पारदर्शिता और ईमानदारी की बात करती थी लेकिन जब खुद पर सवाल उठे, तो बचाव में ठोस जवाब देने के बजाय राजनीतिक विरोधियों पर दोष मढ़ने लगी. वे खुद ही सवालों के घेरे में आ गए.
एक-एक करके किनारे होते गए साथ.. तानाशाही रवैया
पार्टी के शुरुआती दिनों में योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और कुमार विश्वास जैसे नेताओं का होना इसे एक वैचारिक आंदोलन जैसी ताकत दे रहा था. लेकिन जैसे-जैसे पार्टी बढ़ी केजरीवाल पर तानाशाही रवैया अपनाने के आरोप लगने लगे. पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म होती गई और केजरीवाल हाइकमांड स्टाइल में फैसले लेने लगे. इससे पार्टी के कई संस्थापक नेता दूर हो गए और आम आदमी पार्टी सिर्फ एक व्यक्ति केंद्रित पार्टी बनकर रह गई.
सरकार की गाड़ी को फ्रीबीज की तरफ मोड़ दिया..
शुरुआत में केजरीवाल की राजनीति शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं पर केंद्रित थी. लेकिन धीरे-धीरे उनकी पूरी राजनीति मुफ्त योजनाओं फ्रीबीज पर केंद्रित हो गई. जनता को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली, पानी, बस यात्रा जैसी योजनाओं का सहारा लिया गया लेकिन इससे सरकार की वित्तीय स्थिति कमजोर होती चली गई. दिल्ली के मतदाता समझ चुके थे कि केवल मुफ्त योजनाएं ही किसी सरकार की सफलता की गारंटी नहीं होती.
जनता से भी बढ़ा ली दूरी..परिणाम सामने
शुरुआत में केजरीवाल जनता के बीच जाने वाले नेता माने जाते थे लेकिन समय के साथ उनकी कार्यशैली बदल गई. यह सब उनकी लोकप्रियता के लिए घातक साबित हुआ. केजरीवाल ने जिस ईमानदार और पारदर्शी राजनीति का वादा किया था, वह धीरे-धीरे सत्ता और संसाधनों के लालच में बदल गई. जनता ने उन्हें अर्श तक पहुंचाया था, लेकिन जब उन्होंने अपनी पहचान बदल ली, तो जनता ने उन्हें फर्श पर ला दिया. एक्सपर्ट्स का तर्क यह भी है कि AAP एक आंदोलन से निकली पार्टी है जिसका कोई ठोस कैडर नहीं है. अगर वह सत्ता से बाहर होती है तो उसका टिके रहना मुश्किल हो सकता है.
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