G News 24 : धार्मिक पहचान से जुड़े विवादों के निपटारे का अजित डोभाल ने दिया ब्लू प्रिंट !

 धार्मिक पहचान से जुड़े विवादों से बचने के लिए विचारों का स्वतंत्र प्रवाह होना बेहद जरूरी है...

धार्मिक पहचान से जुड़े विवादों के निपटारे का अजित डोभाल ने दिया ब्लू प्रिंट !

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ( NSA) अजीत डोभाल रविवार 2 फरवरी 2025 को दिल्ली में आयोजित हो रहे पुस्तक मेले में पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने  तुर्की-अमेरिकी विद्वान अहमद टी कुरु की पुस्तक  'इस्लाम, ऑथरिटेरियनिस्म एंड अंडर डेवलपमेंट' को लॉन्च किया. यह किताब खुसरो फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित की गई है. अजीत डोवाल ने मेले में धार्मिक पहचान से जुड़े विवादों पर बातचीत की.अजीत डोवाल दिल्ली के पुस्तक मेले में पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने धार्मिक पहचान से जुड़े विवादों पर बातचीत की और कहा कि धर्म और देश के प्रति निष्ठा से समझौता नहीं करना चाहिए.      

'धर्म और देश के प्रति निष्ठा से समझौता नहीं करना चाहिए...

NSA ने बुक लॉन्च के दौरान कहा कि धार्मिक पहचान से जुड़े विवादों से बचने के लिए विचारों का स्वतंत्र प्रवाह होना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि धर्म और देश के प्रति निष्ठा से समझौता नहीं करना चाहिए. NSA ने कहा कि धर्म और राज्य के बीच संबंध इस्लाम में कोई अनोखी घटना नहीं है. इतिहास के कई अलग-अलग चरणों में इसको लेकर अवधारणा बदली है, हालांकि अब्बासी शासनकाल में राज्यों और इमामों की भूमिका स्पष्ट थी. 

प्रिंटिंग प्रेस का उदाहरण 

हिंदू धर्म का जिक्र करते हुए NSA ने कहा कि हिंदू धर्म में लड़ाई-झगडों को शास्त्रार्थ और मेडिटेशन के जरिए सुलझाया जाता था. वहीं जो पीढ़ियां लीक से हटकर नहीं सोच पाईं वे स्थिर हो गईं. NSA अजीत डोवाल ने प्रिंटिंग प्रेस का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रिंटिंग प्रेस को अपनाने के लिए इमाम वर्ग की ओर से काफी विरोध हुआ था. उन्होंने सोचा था कि इसके आने से इस्लाम के वास्तविक अर्थ की सही ढंग से या उनकी मान्यता के हिसाब से व्याख्या नहीं हो पाएगी.  

बदलाव जरूरी है

अजीत डोभाल ने कहा कि धर्म और विचारधाराएं आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं करेंगी तो वे मुख्य रूप से जड़ हो जाएंगी. ये ठहराव का शिकार बनकर आखिर में नष्ट हो जाएंगी. वहीं जो पीढ़ियां कभी आउट ऑफ द बॉक्स नहीं सोच पाती थीं. वे अब स्थिर हो चुकी हैं. अगर हम कोई बदलाव या विकास चाहते हैं तो इस बात पर गौर करना जरूरी होगा कि कुछ समाज आखिर जड़ क्यों हो गए? जो समाज न ही लीक से हटकर देख सके और न ही नए विचार उत्पन्न कर सके.वे शायद एक वक्त पर बिल्कुल जड़ हो गए. 

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