G News 24 : स्मार्ट सिटी मिशन की 10 साल बाद भी अधूरी कहानी !

 50 फीसदी से ज्यादा पैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी योजनाओं में खर्च...

स्मार्ट सिटी मिशन की  10 साल बाद भी अधूरी कहानी !

25 जून 2015 को भारत सरकार ने बड़े जोश और उम्मीदों के साथ 'स्मार्ट सिटी मिशन' की शुरुआत की थी. इसका मकसद था देश के शहरों को आधुनिक तकनीक और टिकाऊ विकास के जरिए विश्वस्तरीय बनाना. लेकिन अब, लगभग 10 साल बाद, इस योजना की नई समय सीमा 31 मार्च 2025 को खत्म होने जा रही है. इस दौरान शहरों को 'स्मार्ट' बनाने का सपना कुछ हद तक अधूरा ही रह गया है. आंकड़े बताते हैं कि इस परियोजना का ज्यादातर हिस्सा बुनियादी ढांचे को ठीक करने में खर्च हुआ है, न कि उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने में. इस मिशन का 52.71% बजट ट्रांसपोर्ट, पानी की आपूर्ति, सफाई व्यवस्था और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में लगा है। यह सवाल उठता है कि क्या स्मार्ट सिटी का असली मकसद सिर्फ बुनियादी जरूरतों को पूरा करना रह गया है?

योजना की शुरुआत और उम्मीदें

स्मार्ट सिटी मिशन को लॉन्च करते वक्त सरकार ने इसे शहरी विकास के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम बताया था. इसका लक्ष्य था 100 शहरों को ऐसा बनाना जो न केवल नागरिकों को बेहतर जीवन स्तर दे सकें, बल्कि टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल भी हों. इसमें स्मार्ट तकनीक का इस्तेमाल, जैसे ट्रैफिक प्रबंधन, ऊर्जा संरक्षण और डिजिटल प्रशासन, प्रमुख था. लेकिन बीते एक दशक में यह साफ हो गया है कि ज्यादातर शहर अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पुणे जैसे शहर, जो इस मिशन का हिस्सा हैं, आज भी स्वच्छ पानी की कमी से जूझ रहे हैं. हाल ही में वहां दूषित पानी के कारण गुलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) जैसी बीमारी फैलने की खबरें सामने आईं, जो इस योजना की प्रगति पर सवाल उठाती हैं.

 बजट का बंटवारा और परियोजनाएं

शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कुल 1,59,407 करोड़ रुपये की लागत वाली 8,004 बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं चल रही हैं. इनमें से 37,304 करोड़ रुपये की लागत वाले 1,741 प्रोजेक्ट शहरों में आवागमन को बेहतर करने के लिए हैं. इसके अलावा, 46,728 करोड़ रुपये की 1,546 परियोजनाएं पानी की आपूर्ति और स्वच्छता से जुड़ी हैं. कुल मिलाकर, 65,063 करोड़ रुपये की 5,533 परियोजनाएं और 21,000 करोड़ रुपये की 921 परियोजनाएं भी प्रगति पर हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि मिशन का एक बड़ा हिस्सा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर केंद्रित रहा है.  कुल बजट का 52.71% हिस्सा इन बुनियादी जरूरतों पर खर्च हुआ है, जो यह संकेत देता है कि स्मार्ट तकनीक और नवाचार को लागू करने की दिशा में प्रगति धीमी रही है.

पिछले साल, यानी 2024 में, इस योजना की समय सीमा दो बार बढ़ाई जा चुकी है. पहले इसे 2023 में पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन देरी के चलते इसे आगे बढ़ाया गया. अब, मार्च 2025 की समय सीमा नजदीक आते हुए भी विशेषज्ञों का मानना है कि मिशन को पूरी तरह लागू करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है. कई शहरों में परियोजनाएं या तो अधूरी हैं या फिर उनकी गति इतनी धीमी है कि स्मार्ट सिटी का सपना दूर की कौड़ी लगता है.

वर्ल्ड बैंक की चेतावनी और भविष्य की जरूरतें

वर्ल्ड बैंक की एक हालिया रिपोर्ट ने भारत के शहरी ढांचे को लेकर गंभीर चेतावनी दी है. रिपोर्ट के अनुसार, अगले 15 सालों में भारत को अपने शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए 69.7 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. इसका मतलब है कि हर साल औसतन 4.6 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. यह अनुमान देश में तेजी से बढ़ती शहरी आबादी को ध्यान में रखकर लगाया गया है. वर्ल्ड बैंक का कहना है कि जैसे-जैसे शहरों में लोग बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे पानी, बिजली, सड़क और स्वच्छता जैसी सुविधाओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है. अगर मौजूदा स्थिति को देखें, तो स्मार्ट सिटी मिशन इन चुनौतियों से निपटने में अभी पीछे चल रहा है.

पुणे का उदाहरण इस समस्या को साफ तौर पर उजागर करता है. इस शहर में पानी की आपूर्ति को बेहतर करने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की गईं, लेकिन हाल के दिनों में वहां दूषित पानी की वजह से स्वास्थ्य संकट पैदा हो गया. इसी तरह, कई अन्य शहरों में भी सड़कों की मरम्मत, सीवरेज सिस्टम और सार्वजनिक परिवहन जैसी बुनियादी समस्याएं अभी तक हल नहीं हुई हैं. यह सवाल उठता है कि क्या स्मार्ट सिटी मिशन का मकसद सिर्फ इन कमियों को पूरा करना रह गया है, या फिर यह वाकई में भविष्य के शहरों का निर्माण कर पाएगा?

स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य और ढांचा

स्मार्ट सिटी मिशन का मूल उद्देश्य ऐसे शहरों का निर्माण करना है जो अपने नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करें, बेहतर जीवन स्तर दें और स्वच्छ व टिकाऊ पर्यावरण को बढ़ावा दें. इसके साथ ही, स्मार्ट तकनीक का इस्तेमाल करके शहरी जीवन को आसान और कुशल बनाना भी इसका लक्ष्य है. मिशन में टिकाऊ और समावेशी विकास पर जोर दिया गया है, ताकि यह एक ऐसा मॉडल बन सके जिसे देश के अन्य शहर भी अपना सकें. यह योजना न केवल स्मार्ट सिटी के भीतर बल्कि बाहर भी प्रेरणा का स्रोत बनने के लिए शुरू की गई थी.

इसके तहत तीन मुख्य ढांचे शामिल हैं. पहला है मौजूदा शहरी इलाकों का नवीनीकरण, जैसे मुंबई के भिंडी बाजार का पुनर्विकास. दूसरा है रेट्रफिटिंग, यानी मौजूदा ढांचे को बेहतर बनाना, जैसा कि अहमदाबाद में स्थानीय स्तर पर किया गया. तीसरा है ग्रीनफील्ड परियोजनाएं, जिसमें स्मार्ट तकनीक के जरिए नए शहरी इलाके बसाए जा रहे हैं, जैसे कोलकाता का न्यू टाउन और नया रायपुर में गिफ्ट सिटी. इन सभी का मकसद शहरों को आधुनिक और नागरिक-केंद्रित बनाना है.

प्रगति और चुनौतियां

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कुल 1,64,368 करोड़ रुपये की लागत वाली 8,058 परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें से 93% पूरी हो चुकी हैं. यह एक सकारात्मक पहलू है, लेकिन इसके बावजूद कई शहरों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव साफ दिखता है. वित्तीय वर्ष 2025 के लिए इस योजना के लिए 2,400 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन अभी तक यह फंड जारी नहीं हुआ है. यह देरी परियोजनाओं की रफ्तार को और धीमा कर सकती है.

कई शहरों में तेजी से काम हुआ है. उदाहरण के लिए, न्यू टाउन कोलकाता में ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स में प्रगति दिखती है. लेकिन दूसरी तरफ, पुणे या लखनऊ जैसे शहरों में अभी भी पानी, बिजली और सड़कों जैसी समस्याएं बरकरार हैं. यह विडंबना है कि एक तरफ मिशन स्मार्ट तकनीक की बात करता है, वहीं दूसरी तरफ ज्यादातर बजट पुरानी समस्याओं को ठीक करने में खर्च हो रहा है.

कौन-कौन से शहर शामिल..;

स्मार्ट सिटी मिशन में देश भर के 100 शहरों को चुना गया था. इनमें लखनऊ (उत्तर प्रदेश), वारंगल (तेलंगाना), धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश), चंडीगढ़, रायपुर (छत्तीसगढ़), न्यू टाउन कोलकाता (पश्चिम बंगाल), भागलपुर (बिहार), पणजी (गोवा), पोर्ट ब्लेयर (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) और इंफाल (मणिपुर) जैसे शहर शामिल हैं. उत्तर प्रदेश से अयोध्या, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, गोरखपुर, मथुरा, मेरठ और शाहजहांपुर इस योजना का हिस्सा हैं. हर शहर की अपनी चुनौतियां और प्राथमिकताएं हैं, लेकिन ज्यादातर में प्रगति धीमी रही है.

स्मार्ट सिटी मिशन ने कई शहरों में बदलाव की शुरुआत की है, लेकिन यह साफ है कि यह योजना अभी अपने मूल लक्ष्य से काफी पीछे है. अगर मौजूदा रफ्तार जारी रही, तो स्मार्ट सिटी का सपना हकीकत बनने में अभी कई साल लग सकते हैं. सरकार को न केवल फंडिंग बढ़ानी होगी, बल्कि परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए सख्त निगरानी और जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी. क्या यह मिशन वाकई में भारत के शहरों को भविष्य के लिए तैयार कर पाएगा, या फिर यह सिर्फ कागजों पर एक महत्वाकांक्षी योजना बनकर रह जाएगा?


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