आगरा में शुरू किया नकली घी का कारोबार, पुलिस तलाश में जुटी...
नकली घी का कारोबार करने वाले रामनाथ और उसके बेटे रासुका के बाद भी नहीं सुधरे !
ग्वालियर। नकली देशी घी बनाकर चर्चित हुए मैनावाली गली के रामनाथ अग्रवाल और उनके पुत्र रासुका लगाए जाने के बाद भी नहीं सुधरे। लगभग चैदह वर्ष पहले तत्कालीन जिलाधीश आकाश त्रिपाठी ने नकली घी कारोबारियों के खिलाफ न सिर्फ ताबड़तोड़ कार्रवाई की थी बल्कि आधा दर्जन व्यापारियों के खिलाफ रासुका तक लगाई थी। जेल से छूटकर यह कारोबारी भूमिगत हो गए तब ऐसा लगा कि नकली घी कारोबार रुक गया है, लेकिन हाल ही में आगरा पुलिस ने अमूल घी के संचालकों की शिकायत पर ताजगंज क्षेत्र में छापा मारकर कई ब्रांडेड कंपनियों का नकली घी बनता पकड़ा था। खास बात यह है कि इस फैक्ट्री का संचालन ग्वालियर के वही कारोबारी कर रहे थे जो ग्वालियर से पलायन कर चुके।
इस मामले में आगरा की कोंच पुलिस ने दाल बाजार में दबिश दी। वह शिवाजी पार्क तेजेन्द्र नाथ की गली में कुशाग्र इंटरप्राइजेज के संचालक पवन गुप्ता पुत्र रामस्वरूप गुप्ता को तलाशने आई थी। उनके नहीं मिलने पर व्यापार समिति से संपर्क किया गया। वहीं कोंच पुलिस ने ग्वालियर कोतवाली पुलिस के साथ मैनावाली गली में रामनाथ के यहां भी दविश दी, लेकिन सभी गायब मिले तब एक रिश्तेदार राधे को उठा कर कोतवाली थाना ले गए । जहां पूछताछ के दौरान दाल बाजार व्यापार समिति के पदाधिकारियों की दखल के बाद उसे छोड़ दिया गया।
दरअसल आगरा के ताजगंज इलाके में अमूल, पतंजलि, कृष्णा, नोवा सहित डेढ़ दर्जन ब्रांड के नकली घी पैककर कई राज्यों में सप्लाई किया जा रहा था। जिसमें ग्वालियर में रजिस्टर्ड प्योर इट और रियल गोल्ड नाम की फर्मों का उपयोग किया गया। पुलिस ने प्रबंधक राजेश भारद्वाज सहित पांच लोगों को गिरफ्तार कर प्राथमिकी दर्ज की है। प्रबंधक ने पूछताछ में राज उगला कि इसके संचालक ग्वालियर की मैनावाली गली के नीरज अग्रवाल, पंकज अग्रवाल व बृजेश अग्रवाल हैं। इनके साथ ग्वालियर के और भी लोग शामिल हैं जो पहले भी इस काले कारोबार में लिप्त रहे थे। पुलिस को यह भी पता लगा कि ग्वालियर में बैठे नीरज अग्रवाल और ब्रजेश अग्रवाल मोबाइल के जरिये पूरा कारोबार संचालित करते थे। इस मामले में राजेश भारद्वाज, शिवचरण, भास्कर गौतम, रवि मांझी, धर्मेंद्र सिंह को जेल भेजा गया है।
पुलिस को बिल्टियों की जांच में पता चला कि नकली देसी घी को राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, असम व बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश के दो सा दर्जन से ज्यादा शहरों के फास्ट फूड इ बाजारों में सीधे बेचा जाता था। इसी घी से रेस्टोरेंट और होटलों में व्यंजन बनाए जाते थे। लेकिन ग्राहकों को नहीं पता कि इस काले कारोबार में पुराने खाद्य तेल, वनस्पति और एसेंस का इस्तेमाल किया जा रहा था हो जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानि कारक है। यह लोग बाजार से सस्ते मूल्य पर रिफाइंड, वनस्पति घी, पाम आयल खरीदते थे। इसमें एसेंस के साथ थोड़ा-सा असली घी मिलाकर नकली देसी घी तैयार करते थे। देशी घी जैसी खुश्बू के कारण खरीदार को शक नहीं होता था। बाजार से यह माल पूजा के लिए घी बनाने के नाम पर खरीदा जाता था। जिससे इसकी लागत मात्र 150 रुपये प्रति किलोग्राम आती थी फिर इसे 500 रुपए किलो में बेच दिया जाता था।
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