चीन के चंगुल में बांग्लादेश की सभी इस्लामी पार्टी, हिंदू विरोधी हिंसा के बीच बढ़ी भारत की चिंता !
बांग्लादेश के हिंदू विरोधी कट्टर इस्लामी समूहों तक चीन की पहुंच,भारत के लिए चिंता का विषय !
देश के पूर्व में स्थित मुस्लिम बहुल पड़ोसी देश,बांग्लादेश के कट्टर इस्लामवादी समूहों तक चीन की पहुंच और हिंदुओं के खिलाफ लगातार बढ़ती हिंसा स्वाभाविक तौर पर भारत के लिए चिंता का विषय बनकर उभरा है. क्योंकि ड्रैगन का किसी भी देश की सत्ता में बैठे लोगों से जुड़ने का पैंतरा पक्के तौर पर उसकी विस्तारवादी पॉलिसी से संचालित होता है.
क्योंकि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक खासकर हिंदुओं पर लगातार बढ़ते अत्याचारों और नहीं थम रही हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले एक प्रमुख संत चिन्मय कृष्ण प्रभु को 25 नवंबर (सोमवार) को ढाका पुलिस ने देशद्रोह के फर्जी मामले में एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद, बांग्लादेश में उनके एक वकील की हत्या और दूसरे वकील पर जानलेवा हमले की खबर भी सामने आई.
हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बीच चीन के नए पैंतरे
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बीच इस्कॉन से जुड़े चिन्मय कृष्ण प्रभु की गिरफ्तारी के बाद भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाली एक और सूचना सामने आई. चिन्मय कृष्ण प्रभु की गिरफ्तारी वाले दिन, बांग्लादेश की राजधानी ढाका में चीनी के दूतावास ने बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी, हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश, खिलाफत मजलिस, बांग्लादेश खिलाफत आंदोलन और निजाम-ए-इस्लाम पार्टी के प्रतिनिधियों सहित इस्लामवादी राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए एक स्वागत समारोह आयोजित किया था.
ढाका में सबसे सक्रिय विदेशी राजनयिक बने चीनी राजदूत
चीन के दूतावास में बांग्लादेश के कट्टर इस्लामी सियासी दलों के स्वागत समारोह में जमात-ए-इस्लामी का सरगना शफीकुर रहमान मुख्य आकर्षण के तौर पर शामिल था. इस कार्यक्रम में ढाका के सबसे सक्रिय विदेशी राजनयिक के रूप में चर्चित चीनी राजदूत याओ वेन ने कहा, "घरेलू या क्षेत्रीय परिस्थितियों में बदलाव के बावजूद, चीन-बांग्लादेश संबंध स्थिर रहे हैं और सही दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं. यह स्थिर साझेदारी क्षेत्रीय शांति और समृद्धि का एक स्तंभ बन गई है. चीन और बांग्लादेश की दोस्ती काफी गहरी है और दोनों देशों को लाभान्वित करती है.
बीएनपी प्रतिनिधिमंडल के चीन दौरे के बाद अब ढाका में भव्य समारोह
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के चीन दौरे के एक पखवाड़े से भी कम समय बाद अब कट्टर इस्लामी राजनीतिक नेताओं के प्रतिनिधिमंडल की चीन के राजनयिकों से गुफ्तगु हुई थी. चीन के दौरे पर गए बीएनपी के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व इसके उपाध्यक्ष असदुज्जमां रिपन कर रहे थे. बीएनपी के संयुक्त महासचिव हबीबुन-नबी खान सोहेल, आयोजन सचिव अनिंद्य इस्लाम अमित और मीडिया सेल के सदस्य और जातीयतावादी कृषक दल के संयुक्त सचिव महमूदा हबीबा प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.
बीएनपी प्रतिनिधिमंडल ने 7 से 16 नवंबर तक किया बीजिंग का दौरा
बीएनपी प्रतिनिधिमंडल ने 7 से 16 नवंबर तक चीन के बीजिंग में राजनीतिक पार्टी प्लस सहयोग कार्यक्रम में भाग लिया, जिसमें दक्षिण-पूर्व और दक्षिण एशियाई देशों के राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि एक साथ आए थे. चीन पहले ऐसे कार्यक्रमों में अवामी लीग की मेजबानी करता था, लेकिन उन्होंने 5 अगस्त के बाद बांग्लादेश की पूर्व सत्तारूढ़ पार्टी के साथ खुले तौर पर संपर्क करना बंद कर दिया. चीन सत्ता में बैठे लोगों के साथ जुड़ने में विश्वास करता है.
भारत की चिंता बढ़ाने वाली हरकतों को बढ़ा रहा ड्रैगन
बांग्लादेश या कहीं और चीन का कोई राजनीतिक दल या नेता पसंदीदा नहीं हैं. वहीं, भारत के ऐतिहासिक कारणों और अन्य कारणों से अवामी लीग और शेख हसीना के साथ विशेष संबंध रहे हैं. बांग्लादेश में गैर-अवामी लीग दलों के साथ भारत का संपर्क न्यूनतम बताया जाता है. वहीं, चीन जिस गति से बांग्लादेश में तेजी से विकसित हो रही राजनीतिक स्थिति के साथ तालमेल बिठा रहा है, वह पूरे राजनीतिक स्पेक्ट्रम में संचार की लाइनें बनाए रखते हुए भारत के बिल्कुल उलट और चिंता बढ़ाने वाला है.
बीएनपी और कट्टर इस्लामी सियासी पार्टियों तक पहुंच रहा चीन
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार के हटने के बाद बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में शक्तिशाली खिलाड़ी के रूप में उभरी बीएनपी और बाकी कट्टर इस्लामवादी पॉलिटिकल पार्टियों तक भारत की पहुंच कम रही है. शेख हसीना 5 अगस्त से ही दिल्ली में शरण लिए हुए हैं. उस दिन वह छात्र आंदोलन से उपजे व्यापक जन-आंदोलन के कारण बांग्लादेश से गुप्त रूप से भागकर भारत आ गई थीं. उनके मंत्रियों सहित कई पूर्व अवामी लीग नेताओं ने भी भारत में शरण ली है.
ड्रैगन ने शुरू की अपने डैनों की जकड़ बढ़ाने की चालें
ढाका में सक्रिय रहे पत्रकार और लेखक सुबीर भौमिक के मुताबिक, शेख हसीना की भारत में लगातार मौजूदगी ने बांग्लादेश में मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और तमाम कट्टर इस्लामवादी पार्टियों को परेशान कर दिया है. इस मौके को लपकते हुए ड्रैगन ने बांगलादेश में अपने डैनों की जकड़ मजबूत करने की चालें चलनी शुरू कर दी हैं. इसी बीच, यूनुस और उनके सलाहकारों ने जुलाई-अगस्त के दौरान हुए आंदोलन में कथित सामूहिक हत्याओं में शामिल होने के आरोप में मुकदमा चलाने के लिए शेख हसीना को भारत से प्रत्यर्पित करने की मांग की है.
1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में चीन ने किया था पाकिस्तान का समर्थन
बांग्लादेश में चीनी राजदूत याओ वेन पहले ही कह चुके हैं कि बीजिंग 2025 में राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ को "लोगों के बीच आदान-प्रदान के वर्ष" के रूप में उपयोग करने का इरादा रखता है ताकि संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, खेल और युवा आदान-प्रदान में द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत किया जा सके.
चीन ने अमेरिका की तरह ही 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था और 1975 में ही अवामी लीग सरकार के हटने और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की खूनी सैन्य तख्तापलट में हत्या के बाद नव निर्मित देश के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए थे. उसके बाद से ढाका में जो भी सत्ता में होता है, बीजिंग उसके साथ जुड़ा हुआ रहता है.
चीन के दूतावास में बांग्लादेश के इस्लामी नेताओं का स्वागत
चीन के दूतावास ने 22 नवंबर को एक भव्य सांस्कृतिक रात्रि का आयोजन किया, जहां बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने "बांग्लादेश के विकास में चीन के दीर्घकालिक समर्थन और योगदान के लिए काफी प्रशंसा" की. उन्होंने चीन की "बांग्लादेश के लिए एक भरोसेमंद और ईमानदार भागीदार" के रूप में जमकर तारीफ की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान चीन-बांग्लादेश संबंधों की आधारशिला और प्रेरक शक्ति है. उन्होंने बांग्लादेश के परिवर्तन के "इस महत्वपूर्ण दौर" के दौरान सभी क्षेत्रों में गहन सहयोग का भी आह्वान किया.
बांग्लादेश की कट्टर इस्लामी सियासी पार्टियों से चीन ने फौरन संपर्क साधा
शेख हसीना के बाद बांग्लादेश में उभरते राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, चीन ने वहां की कट्टर इस्लामी सियासी पार्टियों से तुरंत संपर्क साधा. शेख हसीना के निष्कासन के ठीक एक महीने बाद, याओ वेन ने ढाका में जमात ए इस्लामी पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में शफीकुर रहमान से मुलाकात की. इसके साथ ही याओ वेन 15 वर्षों में जमात-ए-इस्लामी के कार्यालय का दौरा करने वाले पहले महत्वपूर्ण विदेशी राजनयिकों में से एक बन गए.
इस पार्टी ने अवामी लीग के शासन के दौरान चुनाव आयोग के साथ अपना राजनीतिक पंजीकरण गंवा दिया था. बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्टों ने याओ वेन के हवाले से जमात-ए-इस्लामी को एक "सुसंगठित" और "अनुशासित" राजनीतिक पार्टी बताया.
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