G News 24 : जब तक हिंदू जातियों और समाजों में बंटा रहेगा,तब तक असुरक्षित ही रहेगा !

 देश का शीर्ष नेतृत्व योगी मोदी हिंदुओं को एक करने का कर रहे हैं तक प्रयास लेकिन... 

जब तक हिंदू जातियों और समाजों में बंटा रहेगा,तब तक असुरक्षित ही रहेगा !

हिंदुत्व की राजनीति करने वाले देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश के हिंदुओं को एक करने का जो संकल्प लिया है वह तो सराहनीय है लेकिन क्या कभी देश का हिंदू एक होगा यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि हिंदू समाज ही एक ऐसा समाज है जो विभिन्न समाजों जैन, बौद्ध, सिख, सिंधी मराठा आदि समाजों एवं राजपूत, ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया, यादव,जाटव, गुर्जर,गडरिया,नाई,कोली, कुम्हार,धोबी, गडरिया बाल्मिक आदिऔर न जाने कितने समाजों में बटां हुआ है। इसके अलावा भाषाओं और रीति रिवाज के आधार पर भी बंटा हुआ है, यह एक कड़वी सच्चाई है जिससे सभी वाकिफ हैं लेकिन कोई स्वीकारने को तैयार नहीं है। 

जबकि इसके विपरीत जिन्हें हमारी मीडिया जिन्हें शांति दूत कहती है उनमें भी तमाम जातियां और समाज हैं तो लेकिन वे धर्म एवं कर्मकांड के नाम पर हमेशा एक रहते हैं। इसके बावजूद भी हिंदू समाज सबक नहीं ले रहा है। कि जब‍ वे धर्म के नाम पर एक हैं तो फिर हिंदू एक क्यों नहीं हो रहा है। सोशल मीडिया टीवी और अखबारों में हिंदूओं की एकता के लिए कई हिंदूवादी नेता समाजसेवी लगातार अथक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि हिंदू एकता के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने वाले कुछ एक समाजसेवी और नेताओं को अपवाद मान लिया जाए तो अधिकतर समाजसेवी और नेता भी इस समाज को बांटने वाली बीमारी से अछूते नहीं है। क्योंकि जिन समाजों का ये लोग नेतृत्व करते हैं उनमें भी जाति भाषा एवं समाज के नाम पर ऊंच नीच का भेदभाव देखने को मिलता है। 

हिंदू समाज को इस हद तक बांट दिया गया है कि उसने मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के लिए जाने वाले पवित्र मृत शरीरों के अंतिम संस्कार स्थलों को भी संप्रदायों के नाम पर बांट लिया है। इसका जीता जागता उदाहरण है ग्वालियर का लक्ष्मीगंज मुक्तिधाम जहां अलग-अलग समाजों के अलग-अलग मुक्ति धाम बने हुए हैं। कुछ संप्रदाय के लोग अलग-अलग अंतिम संस्कार की क्रिया इन मुक्ति धर्मों में करते हैं। मरने (अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ने के बाद)के बाद भी समाजों के आधार पर इस तरह का बंटवारा समाज में विघटन की एक लकीर नहीं खींचता है ! इस पर विचार करना चाहिए! क्योंकि मुक्ति धाम में इस प्रकार की व्यवस्था चीख-चीख कर इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हिंदू धर्म एक तब तक नहीं होगा, जब तक कि अंतिम संस्कार जैसे इस पवित्र कर्मकांड तक में लोग समाजों के नाम पर बंटे रहेंगे, तो फिर जिंदा इंसान अर्थात हिंदुओं का एक होना असंभव सा लगता है। 

इतना ही नहीं कुछ लालची किस्म के हिंदू जो सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए तमाम तरह की देशद्रोही, समाज द्रोही गतिविधियों में लिप्त होते हैं और इस प्रकार की गतिविधियों लिफ्त रहने वालों के साथ देकर उनका सपोर्ट करते हैं, इनको कैसे सुधारेंगें, इस पर भी गौर करना होगा। क्योंकि हिंदुओं की एकता में यह सबसे बड़ा रोड़ा हैं। जब तक देश में इस प्रकार के लोग रहेंगे और इस प्रकार की व्यवस्थाएं रहेगी, तब तक हिंदुओं का एक होना संभव नहीं है। टीवी, मीडिया और सोशल मीडिया या अखबारों में जितना मर्जी एक होने का दंभ भरा जाए, लेकिन वास्तविकता यही है कि वर्तमान परिस्थितियों में एक परिवार के लोग एक साथ, एक बात पर सहमत नहीं हो पाते, फिर इस देश का हिंदू तो तमाम जातियों और समाजों में बंटा हुआ है। इन्हें एक करना इतना आसान नहीं है। लेकिन फिर भी जो प्रयास किया जा रहे हैं वे सराहनीय हैं। इसलिए मेरा  मानना है कि जब तक हिंदू संप्रदाय और जातियों में बंटा रहेगा तब तक वह सुरक्षित हो ही नहीं सकता। यदि उसे अपना भविष्य सुरक्षित करना है तो उसे उच्च-नीच वर्ण,जाति, संप्रदाय की दीवार को तोड़कर एक जुट होकर एक संप्रदाय यानी कि हिंदुत्व को अपनाना होगा तभी वह सुरक्षित रहेगा।

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