G News 24 : पैसा जनता का,काम स्मार्ट सिटी का और कम पर छाप राजघराने की, गज़ब व्यवस्था है!

 हमारी जमीन पर पुल बना है हमें चाहिए 7 करोड़ लेकिन सरकारी निर्माण कार्यों में हमारी छाप लगेगी...

पैसा जनता का,काम स्मार्ट सिटी का और कम पर छाप राजघराने की, गज़ब व्यवस्था है!

देश की 100 स्मार्ट सिटीज में से एक स्मार्ट सिटी के रूप में शामिल, ग्वालियर में  कराये जा रहे विकास कार्य में जो पैसा लगाया जा रहा है वह पैसा भारत सरकार व प्रदेश शासन  के द्वारा जनता से विभिन्न प्रकार के टैक्सों के रूप में वसूला गया पैसा है। इसी पैसे से यह विकास कार्य सरकार करवा रही है। विकास कार्यों का गुणवत्ता और उपयोगिता को लेकर पहले ही तमाम भ्रांतियां हैं जनता के बीच इस प्रकार के बगैर किसी प्लानिंग के होने वाले कार्यों को लेकर पहले से ही रोष व्याप्त है पिछले 10 सालों में ग्वालियर स्मार्ट सिटी में एक भी कार्य पूर्ण रूप से ऐसा संपन्न नहीं हो पाया है जिसका जनता को सीधा लाभ मिला हो या इस नाम के अनुरूप कोई भी सुविधा स्मार्ट हुई हो। 

चाहे ट्रैफिक व्यवस्था हो, अमृत योजना के माध्यम से वाटर सप्लाई की व्यवस्था,सीवर, सड़क, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, विद्युत व्यवस्था आदि तमाम ऐसी सेवाएं जिन्हें सबसे पहले व्यवस्थित करके स्मार्ट किया जाना चाहिए था जो कि नहीं हुआ है। 

तो फिर ग्वालियर में प्रश्न यह उठता है कि स्मार्ट हुआ क्या है स्मार्ट सिटी ने काम क्या किया है तो स्मार्ट सिटी ने जो शहर में काम किया है वह है महाराज बड़ा स्थित ग्वालियर की रियासत कालीन इमारतों रिनोवेशन और इस रिनोवेशन कार्य में जनता से टैक्स के रूप में वसूले गए पैसे का ही इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन जिस प्रकार से कार्य किया जा रहे हैं उन कार्यों में झलक रियासत काल के दौर की ही दिखाई दे रही है।

पैसा तो  जनता का लग रहा है लेकिन इन कार्यों  के संपादन में तत्कालीन रियासत से जुड़े लोगों के परिजनों की दखलअंदाजी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है तभी तो अच्छे -खासे  चौराहे कि रोटरीज को बार-बार तोड़कर इन लोगों की पसंद के अनुसार रियासत कालीन प्रतीक चिन्हों को इन रोट्रिज में लगने वाले पत्थरों में जलियां में अंकित किया जा रहा है। अब प्रश्न यहां यह उठता है कि अब ना तो रियासत रही ना राजा महाराजा का शासन है तो फिर सरकारी कामों में रियासत के प्रतीक चिन्ह क्यों ?  जब पैसा सरकार का है तो रोटरी में लगने वाली जालियों में राजशाही प्रतीक चिन्ह क्यों ? आखिरकार यह प्रतीक चिन्ह किसके आदेश से और क्यों रोटरीज में लगाऐ जा रहे हैं ? क्या यह रोटरियां रियासत की संपत्ति हैं?

जब ग्वालियर स्टेट से जुड़े हुए ट्रस्ट के लोग ने एजी ऑफिस पुल जो सार्वजनिक संपत्ति है अपनी जमीन पर निर्मित किए जाने के एवज में सरकार से 7 करोड रुपए वसूल किया तो फिर सरकार इन लोगों पर इतनी मेहरबान क्यों है? स्मार्ट सिटी द्वारा करवाए जा रहे कार्यों में स्टेट के समय के प्रतीक चिन्ह वर्तमान के निर्माण में क्यों शामिल किए जा रहे हैं ?  क्या स्मार्ट सिटी यह दिखाने का प्रयास कर रही है कि यह सभी कार्य स्टेट के समय के हैं ? शहर की जनता सरकार और उसकी एजेंसियों से ये जानना चाहती है।

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