पृथ्वी का सबसे ठंडा स्थान माना जाने वाले...
अंटार्कटिका में तेजी से फैल रही हरियाली, चिंता का विषय !
दुनिया तेजी से बदल रही है। इस बदलती दुनिया में पर्यावरण को खासा नुकसान हो रहा है। भारत समेत कई अन्य देशों में ग्लोबल वार्मिंग का इफेक्ट साफ दिखाई दे रहा है। बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र का जलस्तर भी बढ़ रहा है। बेमौसम बरसात हो रही है। भूस्खलन और प्रॉकृतिक आपदाओं की घटनाएं रोज का रोज बढ़ रहीं हैं। ऐसी ही एक और आपदा ने संकेत देने शुरू कर दिए हैं। ये नाम है अंटार्कटिका, जिसे पृथ्वी का सबसे ठंडा स्थान माना जाता है। इसे बर्फीला रेगिस्तान भी कहा जाता है। अब यहां रिकॉर्डतोड़ गर्मी हो रही है। पिछली गर्मियों में महाद्वीप के कुछ हिस्सों में जुलाई के मध्य में तापमान औसत से 50 डिग्री फारेनहाइट (10 डिग्री सेल्सियस) अधिक हो गया था। मार्च 2022 में इस क्षेत्र में और भी अधिक चौंकाने वाला तापमान वृद्धि दर्ज किया गया था। अंटार्कटिका के कुछ क्षेत्रों में तापमान सामान्य से 70 डिग्री फारेनहाइट (21 डिग्री सेल्सियस) अधिक हो गया था। जो इस हिस्से में अब तक का सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया था।
अंटार्कटिका पृथ्वी के दक्षिण हिस्से में मौजूद महाद्वीप है। अंटार्कटिका दक्षिणी गोलार्ध में एक ठंडा और दूरस्थ क्षेत्र है। अंटार्कटिका दक्षिणी गोलार्ध के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है। अंटार्कटिका को लेकर नेचर जियोसाइंस पत्रिका में एक चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट से पता चला कि बर्फीले महाद्वीप अंटार्कटिका में अब हरित क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। पिछले तीन दशकों की तुलना में हाल के सालों में हरित क्षेत्र में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नेचर जियोसाइंस पत्रिका के अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि अंटार्कटिका प्रायद्वीप में साल 1986 से 2021 के बीच वनस्पतिकीय क्षेत्र में 10 गुना वृद्धि हुई है। यह एक वर्ग किलोमीटर से भी कम क्षेत्र से बढ़कर लगभग 12 वर्ग किलोमीटर हो गया है। अध्ययनकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के तहत अंटार्कटिक प्रायद्वीप में 'हरितक्षेत्र' की दर का अनुमान लगाने के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग किया है।
इन अध्ययनकर्ताओं में ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता भी शामिल हैं। यह अध्ययन 'नेचर जियोसाइंस' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि वनस्पतिकीय क्षेत्र (2016-2021) में परिवर्तन की दर में यह हालिया तेजी इसी अवधि में अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ के विस्तार में उल्लेखनीय कमी के साथ मेल खाती है। उन्होंने कहा कि अध्ययन से यह साक्ष्य मिलता है कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप में 'हरित क्षेत्र' की व्यापक प्रवृत्ति है। इसमें तेजी आ रही है। यह पाया गया कि अंटार्कटिक वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। वहां अत्यधिक गर्मी की घटनाएं आम होती जा रही हैं।
अध्ययन में शामिल एक्सेटर विश्वविद्यालय के थॉमस रोलैंड ने कहा कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर पाए जाने वाले पौधे (जिनमें ज्यादातर काई हैं) संभवतः पृथ्वी पर सबसे कठिन परिस्थितियों में उगते हैं। रोलैंड ने कहा कि यद्यपि अभी भी बर्फ और बर्फीली चट्टानों से भरे हुए इस स्थान के केवल एक छोटे से भाग में पेड़-पौधें (वनस्पति) उग रही हैं, लेकिन यह छोटा सा भाग अप्रत्याशित रूप से विकसित हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि यह विशाल और पृथक 'जंगल' भी मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है। रोलैंड ने कहा, 'अंटार्कटिका को बचाने के लिए हमें इन परिवर्तनों को समझना होगा तथा यह पता लगाना होगा कि इनके कारण क्या हैं?' अंटार्कटिका में बढ़ता हुआ हरित क्षेत्र चिंता का विषय है, क्योंकि यह पृथ्वी के सबसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक पर मानव-चालित जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण प्रभावों को उजागर करता है। अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर वनस्पति का प्रसार विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि इससे अधिक मिट्टी का निर्माण हो सकता है।
इस विकास से गैर-देशी प्रजातियों द्वारा उपनिवेशीकरण का जोखिम बढ़ सकता है। हर्टफोर्डशायर विश्वविद्यालय के डॉक्टर ओली बार्टलेट ने द इंडिपेंडेंट को बताया, 'इस अधिक वातावरण में उगने वाले कई पौधे नंगे चट्टानी सतहों पर बसने में सक्षम हैं। वनस्पति में वृद्धि से नई मिट्टी बन सकती है, जो आक्रामक प्रजातियों को स्थापित होने का माध्यम प्रदान करती है।' उन्होंने कहा कि एक और चिंता क्षेत्र के अल्बेडो प्रभाव में कमी है। सौर विकिरण को प्रतिबिंबित करने की क्षमता वनस्पतियों की गहरी सतहें अधिक गर्मी को अवशोषित करती हैं, जिससे वार्मिंग प्रक्रिया में तेजी आ सकती है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र और भी अस्थिर हो सकता है। इस तरह के बदलावों से जैव विविधता का नुकसान हो सकता है, क्योंकि गैर-देशी प्रजातियां देशी पौधों को पछाड़ देती हैं। इसके अलावा, इस बात की भी चिंता है कि गैर-देशी प्रजातियां पारिस्थितिकी-पर्यटकों और वैज्ञानिकों के माध्यम से महाद्वीप में प्रवेश कर सकती हैं।
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