यहां आकर नये प्रयोग करते हैं चाहे वह सफल हो या असफल...
अधिकारियों ने ग्वालियर को प्रयोगशाला समझ रखा है !
ग्वालियर। पिछले कुछ सालों में ग्वालियर में आने वाले अधिकारियों ने ग्वालियर को प्रयोगशाला के रूप में स्थापित कर दिया है। अधिकारी यहां आकर नया प्रयोग करते हैं चाहे वह सफल हो या असफल इससे प्रशासनिक अधिकारियों को कोई लेना देना नहीं है। वहीं वह आने वाले को भी उसी लाइन को पकडा कर चले जाते हैं। पिछले कई सालों से लगातार देखने में आ रहा है कि ग्वालियर एक प्रयोगशाला नगरी बनकर रह गई है। लगातार बढते वाहन उनके लिए सडकें छोटी पडने के चलते जहां यातायात विभाग असफल साबित हुआ है वहीं यातायात कर्मी से लेकर स्मार्ट सिटी डेव्लपमेंट कारपोरेशन सिवाय चालानी कार्यवाही के कुछ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता है।
स्मार्ट सिटी के पास तो एक बडी स्क्रीन लगी है जिस पर पूरे महानगर के कैमरे लगातार दिखाई देते हैं लेकिन वहां पर बैठे कारिंदे कैमरों में जाम की स्थिति तो देख लेते हैं उसे यातायात पुलिस को बताते नहीं है कि उक्त स्थान पर जाम की स्थिति निर्मित हुई है कृपया जाकर उसे जाम को मुक्त करायें लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं कराते हैं। यह तो यातायात की बात हुई वहीं यहां कोई विकास के कार्य भी देखने को नहीं है। सडकों पर लगी एलईडी लाइटें बंद पडी है। वहीं सडकों पर गडढे ही गडढे। जो बरसात के बाद कुछ तो पेच रिपेयर हुये बाकी गडढे बडे बडे है। जिसमें वाहन गिर जाते है और वाहन चालकों को बडी और छोटी चोटें आती है। ऐसे में ना तो वरिष्ठ अधिकारी ही उस ओर ध्यान दे रहे हैं और ना ही अन्य अधिकारी।
इतना ही नहीं उसके बाद भी अधिकारी प्रयोगशाला के तौर पर यातायात को डायवर्ट करते रहते है और समस्या वहीं की वहीं खडी रहती है। वहीं यातायात विभाग के चार से पांच कर्मी एक स्थान पर खडे होकर बाहर से आने वाले वाहनों की चेकिंग के नाम पर उन्हे परेशान करते हैं और छोटी सी भी कमी दिखने पर लंबा चालान बनाने की धमकी देकर पैसों की वसूली कर रहे है। इतना ही नहीं अधिकारी नये नये प्रयोग करते हैं जिनसे लोगों को लाभ कम और परेशानियां ज्यादा हो रही है।
ऐसे ही ई रिक्शा पर नंबरिंग कर उन्हें व्यवस्थित कर चलाने का प्रयोग अधिकारियों ने किया लेकिन आज तक सभी ई रिक्शा पर नंबरिंग तक नहीं हो सकी है। ऐसे में उनकी यह योजन भी टांय टांय फिस्स नजर आ रही है। हां अधिकारी बिना वजह लोगों की जेबों पर डाका डाल रहे हैं वह महाराज बाडे से लेकर अन्य खाली पडी जमीनों को ठेकेदारों को बेच कर उनसे उगाही करवा रहे हैं। उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं है कि इससे जाम की स्थिति तो निर्मित नहीं होती है। ऐसा ही नजारा रोजाना चेंबर आफ कामर्स के सामने देखने को मिलता है। वहां पर लोग अपनी चार पहिया लगाकर भोजन करते हैं और बाद में अपने वाहन निकालते समय जाम लगाते हैं उसमें एम्बूलेंस तक फंसती नजर आती है।
वहीं सडकों पर दोनों तरफ जाम बना रहता है। ऐसे में कोई घनी घोरी नहीं जो जाम को खुलवाए जबकि उक्त सडक पर लगातार एम्बूलेंस का आना जाना रहता है। इसी प्रकार कई सडकें है जहां पर नये नये प्रयोग हो रहे हैं। अधिकरी हाथ ठेलों को हाकर्स जोन में आज तक नहीं भेज पाए है हां वह सडकों पर व्यापार करने वालों का सामान तो उठवा रहे हैं लेकिन उनकी व्यापार के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर पा रहे है। सब कुल मिलाकर ग्वालियर एक प्रयोगशाला बना है और इससे ग्वालियर की जनता परेशान है चाहे उसमें पुलिस हो या स्मार्ट सिटी या अन्य विभाग।
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