एक मुस्लिम लड़की द्वारा एक मंत्री से हाथ मिलाने पर आपत्ति जताई थी...
'अपनी धार्मिक मान्यताएं दूसरों पर नहीं थोप सकते..', मौलवी अब्दुल पर, भड़की हाई कोर्ट !
कोच्ची। केरल हाई कोर्ट ने मौलवी अब्दुल नौशाद को उस मामले में कोई राहत नहीं दी, जिसमें उन्होंने एक मुस्लिम लड़की द्वारा एक मंत्री से हाथ मिलाने पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने नौशाद के खिलाफ केरल पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया। मामला 2016 का है, जब एक इंटरएक्टिव सत्र के दौरान एक लड़की ने मंच पर जाकर केरल के वित्त मंत्री टी.एम. थॉमस इसाक से हाथ मिलाया था। इसके बाद, मौलवी अब्दुल नौशाद ने सोशल मीडिया पर इस घटना की निंदा करते हुए इसे इस्लामी कानून का उल्लंघन बताया था।
उन्होंने इस हाथ मिलाने की घटना को 'हराम' और 'ज़िना' (व्याभिचार) करार दिया था, जिसके कारण लड़की और उसके परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची थी। इस घटना के बाद लड़की के परिवार ने अब्दुल नौशाद के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। मामले में अब्दुल नौशाद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाने) और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 119 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने) के तहत केस दर्ज किया गया। नौशाद ने कोर्ट से याचिका दायर कर इस कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति की धार्मिक मान्यताएँ व्यक्तिगत होती हैं और उन्हें दूसरों पर थोपने का अधिकार किसी को नहीं है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि सभी नागरिकों को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने और उनका प्रचार करने की स्वतंत्रता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे अपनी मान्यताओं को दूसरों पर थोप सकते हैं। कोर्ट ने कुरान की आयतों का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि इस्लाम में भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्व है। जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन की बेंच ने कहा कि हाथ मिलाना इस्लामी दृष्टिकोण से हराम हो सकता है, लेकिन यह व्यक्तिगत आस्था और चुनाव पर निर्भर करता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान और समाज का कर्तव्य है कि वे ऐसे मामलों में नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें। कोर्ट ने कहा कि इस लड़की ने अपने धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता का उपयोग किया है, और ऐसे में संविधान उसकी सुरक्षा करेगा। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ किया कि कोई भी धार्मिक कानून भारतीय संविधान से ऊपर नहीं है, और संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस प्रकार, कोर्ट ने अब्दुल नौशाद के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया और निचली अदालत को जल्द से जल्द सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया।
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