G News 24 : एक ऐसा अद्भुत शिवलिंग,जिसे हटाने के लिए जब इस पर छेनी-हथोड़े चले तो निकलने लगा था खून !

 इस अचलनाथ धाम की एक समय कै.माधव महाराज और राजमाता ने भी की थी पूजा अर्चना ...

 एक ऐसा अद्भुत शिवलिंग,जिसे हटाने के लिए जब इस पर छेनी-हथोड़े चले तो निकलने लगा था खून !

ग्वालियर। प्राचीन भारत के महान शासकों में छत्रपति शिवाजी का नाम एक अति उल्लेखनीय नाम है। वर्ष 1674 से 1680 में महाराष्ट्र में मराठा शासन का दबदबा कायम रखने वाले शिवाजी महाराज की कीर्ति चहुंओर तेजी से फैल रही थी। विदेशी आक्रांताओं की आंखों की किरकिरी बने शिवाजी महाराज को मिटाने के लिए कई कोशिशे की गई लेकिन हार को भी हराने वाले छत्रपति शिवाजी ने राष्ट्रसेवा के संकल्प के साथ हर बार पहले से अधिक जोश से सिंहगर्जना कर दुश्मनों को अपनी ताकत से परीचित कराया। शिवाजी के देहांत के पश्चात पेशवा ने राजकार्य की बांगडोर को संभाला। 

एक विशाल साम्राज्य की रक्षा हेतु निरंतर युद्ध व अन्य प्रमुख राजकीय कार्यों में व्यस्त रहने के कारण पेशवा की व्यक्तिगत सेवाओं के लिए रानो जी राव शिंदे को नियुक्त किया गया। यही रानो जी राव शिंदे कालांतर में सिंधिया राजवंश के पूर्वज और प्रथम राजपुरूष कहलाएं। रानो जी राव शिंदे की कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी व सेवाभावना से प्रसन्न होकर पेशवा ने उन्हें एक विशाल जागीर प्रदान की। इसी जागीर पर मध्यप्रदेश के उज्जैन में वर्ष 1713 में सिंधिया राजवंश का उदय हुआ। उसके पश्चात रानो जी राव शिंदे के वंशज सिंधिया कहलाएं।

अपनी जागीर के ग्वालियर क्षेत्र में बसने वाले सिंधिया राजवंश ने ग्वालियर में कई ईमारतों, महाविद्यालयों, सड़कों व धर्मस्थलों का निर्माण कराया। सिंधिया राजमहल से शहर के मुख्य मार्गों को जोड़ने वाली सड़क के निर्माण व चौड़ीकरण के दौरान जंगल में मार्गबाधा के रूप में अचलेश्वर महादेव का शिवलिंग था, जिसे राजपरिवार द्वारा किसी स्थान पर वैदिक मान्यतानुसार स्थापित करने का निर्णय लिया गया, जिससे कि सड़कमार्ग का निर्माणकार्ये निर्बाध चल सके व इस शिवलिंग को किसी भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित किया जा सके। 

इसी कार्य को सिद्ध करने के लिए विधि-विधान से पूजन-अर्चन के पश्चात शिवलिंग को अन्यत्र स्थानांतरित करने लिए इस शिवलिंग के आसपास कई मजदूरों द्वारा कई दिनों तक लगातार गहरी खुदाई की गई लेकिन इस खुदाई की गई। इसे हटाने के लिए जब इस पर मजदूरों ने छेनी-हथोड़े से इसे हटाने का प्रयास किया तो इससे खून निकलने लगा था ! कई दिनों की मेहनत के बाद भी श्रमिकों को शिवलिंग के दूसरे छोर के दर्शनमात्र भी नहीं हो पाए। इस चमत्कार को देखकर इस शिवलिंग की गहराई का आंकलन या कल्पना मात्र भी करना किसी भी मानव के लिए असंभव था। जिसके चलते सिंधिया राजवंश भी इस चमत्कार के आगे नतमस्तक हुआ और उन्होंने शिवलिंग को अन्यत्र स्थापित करने का विचार त्याग दिया और उसी स्थान पर भव्य शिवमंदिर निर्माण का संकल्प लिया।

'धरा से पाताल तक' अपने 'सूक्ष्म से विराट स्वरूप' में विराजे देवाधिदेव अचलेश्वर महादेव का आदि तो है पर अंत नहीं है। सृष्टि के विकास और विनाश के बीच मौजूद शिवतत्व आज भी जगत में ईश्वरीय शक्ति की मौजूदगी का साक्षात प्रमाण है। दर्शनमात्र से भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने वाल शिव का यह रूप युगों-युगों तक भक्तवत्सल भगवान के धरा पर स्वप्राकट्य का साक्षी रहेगा। अपने चमत्कार, पौराणिक महत्व व सुंदर स्वरूप वाले अचलेश्वर महादेव आज एक भव्य मंदिर में भक्तों को लिंगरूप में दर्शन दे रहे हैं। 

जन-जन के सहयोग से सुंदरता और भव्यता के उच्च शिखरों को छूता अचलेश्वर महादेव मंदिर ग्वालियर में भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास लगे पीतल के विशाल घंटे से कंपित ध्वनि माहौल में आध्यात्मिकता के रंग घोलते हुए मन में एक असीम शांति का अहसास कराती है। 40 किलोग्राम रजत की सुंदर नक्काशी से तराशी गई इस शिवलिंग की जिलहरी अचलेश्वर महादेव के सौंदर्य को बहुगुणित करती है। अचलेश्वर महादेव का श्रृंगारित स्वरूप भक्त और भगवान के बीच संवाद स्थापित करता है।

वर्तमान में धार्मिक कार्यों में रूचि लेने वाले कई धर्मावलंबियों ने मिलकर एक न्यास का गठन किया गया था। जिसके द्वारा संचालित किए जाने वाले इस मंदिर में दर्शनार्थियों हेतु कई सुविधाएं प्रदान की गई है। देवदर्शनों के शुभेच्छु दर्शनार्थियों हेतु अचलेश्वर मंदिर परिसर में राम दरबार, राधा-कृष्ण, दुर्गा देवी, हनुमान व गणेश आदि देवी-देवताओं की नयनाभिराम प्रतिमाओं से सुसज्जित मंदिर है, जो मंदिर परिसर को पूर्णता प्रदान करते हैं। 

मंदिर न्यास द्वारा शिवरात्रि, जन्माष्टमी, रामनवमी, नवरात्रि, हनुमान जयंती आदि कई अवसरों पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी के साथ ही सामाजिक सरोकारों की दिशा में पहल करते हुए निशक्त व निर्धनजनों के कल्याणार्थ सामूहिक विवाह व अन्य कल्याणकारी आयोजन किए जाते हैं। यह अचलेश्वर महादेव की कृपा ही है कि इस दरबार में आने वाला कोई भी भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता है। वह अपने साथ ले जाता है इस जन्म के पुण्य कर्मों में स्वयंभू अचलेश्वर महादेव के दर्शन व ऋषि गालव की तप भूमि की रज कण को स्पर्श करने का सौभाग्य, जो उसके मानव जीवन के प्रयोजन को सार्थकता प्रदान करता है।

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