G News 24 : पब्लिक सेफ्टी सबसे पहले, अवैध मंदिर हो या दरगाह, उसे जाना ही होगा :SC

 हम सरकारी जमीन पर किसी भी अनधिकृत निर्माण की रक्षा करने नहीं जा रहे  है...

पब्लिक सेफ्टी सबसे पहले, अवैध मंदिर हो या दरगाह, उसे जाना ही होगा :SC 

देशभर में चल रहे बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दाखिल जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट साफ-साफ कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, इसलिए अगर अवैध निर्माण है, तो चाहे मंदिर हो या दरगाह उसे जाना ही होगा. देश में सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है. जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाते हुए कहा था कि सिर्फ सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रम को हटाने की ही छूट होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि नागरिक सुरक्षा सबसे पहले है. अवैध निर्माण फिर चाहे वो मंदिर हो या दरगाह उसे जाना ही होगा. उत्‍तर प्रदेश, मध्‍य प्रदेश और राजस्थान की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या दोषी करार देने पर भी किसी की संपत्ति तोड़ी जा सकती है? इस परर सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया- नहीं, यहां तक कि हत्या, रेप और आतंक के केस के आधार पर भी नहीं तोड़ी जानी चाहिए.सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, 'हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं.  

हम सब नागरिकों के लिए गाइडलाइन जारी करेंगे. अवैध निर्माण हिंदू, मुस्लिम कोई भी कर सकता है. हमारे निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय के हों. बेशक, अतिक्रमण के लिए हमने कहा है कि अगर यह सार्वजनिक सड़क या फुटपाथ या जल निकाय या रेलवे लाइन क्षेत्र पर है, तो उसे हटना ही होगा. अगर सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना है, चाहे वह गुरुद्वारा हो या दरगाह या मंदिर यह सार्वजनिक बाधा नहीं बन सकती.'मामले की सुनवाई के दौरान  जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, 'यदि  2 संरचनाओं में उल्लंघन हुआ है और केवल 1 के खिलाफ कार्रवाई की जाती है और आप पाते हैं कि पृष्ठभूमि में कोई अपराध है. 

यह समझौता करने योग्य या गैर समझौता करने योग्य अपराध हो सकता है. यदि आप शुरू में किसी व्यक्ति की जांच कर रहे हैं और आपको जल्द ही उसका आपराधिक इतिहास पता चलता है तो, दो गलतियां एक सही नहीं बनाती हैं? इस बारे में हमारी सहायता करें.एसजी तुषार मेहता ने कहा, 'हमने यूपी मामले में पहले ही हलफनामा दाखिल कर दिया था कि सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी मामले में आरोपी है, किसी संपत्ति को गिराने का आधार नहीं हो सकता. नगर निगम कानून, नगर नियोजन नियमों का उल्लंघन होने पर ही कार्रवाई की जानी चाहिए.  साथ ही कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. इसके लिए पहले नोटिस जारी किए जाने चाहिए. पक्षों की बात सुनी जानी चाहिए. हम यह स्पष्ट करते हैं कि सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी मामले में आरोपी है या यहां तक ​​कि बलात्कार, हत्या या आतंकवाद में भी दोषी है, उसे गिराने का आधार नहीं माना जा सकता. 

सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं. हम सभी के लिए कानून बनाएंगे, किसी खास धर्म के लिए नहीं. अवैध निर्माणों को सभी धर्मों से अलग किया जाना चाहिए. नोटिस की सही सर्विस होनी चाहिए. पंजीकृत ए.डी. के माध्यम से नोटिस हो. नोटिस चिपकाने की यह प्रक्रिया चले. डिजिटल रिकॉर्ड होना चाहिए. अधिकारी भी सुरक्षित रहेंगे. हमारे पास भारत से पर्याप्त विशेषज्ञ हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम ये साफ करेंगे कि सिर्फ किसी आपराधिक मामले में आरोपी या दोषी करार देना संपत्ति को तोड़ने का आधार नहीं होगा. इसके लिए निर्माण में किसी म्यूनिसिपल नियमों का उल्लंघन होना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ बुलडोजर के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा, 'ऐसे  मामले बहुत कम होंगे. ये मामले 2 फीसदी होंगे, लेकिन बिल्डरों से जुड़े इस तरह के मामले बहुत हैं. हिंदू-मुस्लिम की बात क्यों आती है? वे हमेशा अदालत में जा सकते हैं, इसमें भेदभाव कहां है?  

जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं. हमारे निर्देश पूरे भारत में लागू होंगे. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारा आदेश अतिक्रमणकारियों की मदद न करे.सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन अदालत की अवमानना ​​माना जाएगा. अगर तोड़फोड़ अवैध पाई गई, तो संपत्ति को वापस करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्‍शन मामले पर उन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा, जिनमें आरोप लगाया गया है कि आरोपियों की संपत्ति समेत अन्य संपत्तियां ध्वस्त की जा रही हैं. इससे पहले कोर्ट ने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि उसके आदेश से किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अतिक्रमण करने वालों को मदद न मिले.

सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश 

गुजरात के जावेद अली नाम के याचिकाकर्ता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. याचिकाकर्त्ता का कहना था कि परिवार के एक सदस्य के खिलाफ FIR होने के चलते उन्हें नगर निगम से घर गिराने का नोटिस भेज दिया है. परिवार की तीन पीढ़ियां करीब 20 सालों से इसघर में रह रही हैं.

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