G.NEWQ 24 : उमर की पार्टी ने शंकराचार्य पर्वत को बताया 'तख्त-ए-सुलेमान' !

कश्मीरी हिंदुओं की पहचान को खत्म करने के प्रयास...

उमर की पार्टी ने शंकराचार्य पर्वत को बताया 'तख्त-ए-सुलेमान' !

माना जाता है की शंकर भगवान अक्सर ऊंची पहाड़ियों पर बस्ते हैं. श्रीनगर शहर के बीचों-बीच में भी बसा है, उनका एक निवास स्थान- शंकराचार्य मंदिर. यह पहाड़ी की चोटी पर मुख्य शहर की सतह से 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. कश्मीर में शंकराचार्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे कश्मीर घाटी में पूजा के लिए सबसे पुराना मंदिर माना जाता है. कश्मीर के चुनावी माहौल में अब इस पर सियासत हो रही है. दरासल, नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में शंकराचार्य पर्वत का ज़िक्र 'तख्त-ए-सुलेमान' से किया है. इसे लेकर अब ना सिर्फ़ राजनीतिक पार्टियों में, बल्कि कश्मीरी पंडितों के बीच भी बयान बाज़ी हो रही है. 

कुछ कश्मीरी हिंदुओं का कहना है कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस विस्थापित कश्मीरियों को वापिस कश्मीर घाटी में लाने का दावा बेशक करती हो, लेकिन उसके इस कदम से  उसकी भावनाओं को ठेस पहुंची है. कश्मीरी पंडितों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के इस रुख पर फारूक अब्दुल्ला को सीधा पत्र भी लिखा है. जानकारी ये भी है कि कश्मीर पंडित कॉन्फ्रेंस ने चुनाव आयोग को भी पत्र लिखा है और मांग उठाई है कि कश्मीरी हिंदुओं की पहचान को खत्म करने के प्रयास को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठा जाएं.  ये ही नहीं कुछ कश्मीरी पंडितों की संस्थानों का कहना है कि कुछ जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल उनकी सभ्यता के तमाम निशान मिटाना चाहती है और कुछ कट्टरवादी तत्व पहले से इस प्रोपेगेंडा पर काम कर रहे हैं और लैलेश्वरी को लैला अरिफा और श्रीनगर को शहर-ए-खास बताने का प्रयास हो रहा है.

दरअसल, कश्‍मीर में धर्म के नाम पर राजनीति कोई नई बात नई नहीं. वैसे इस मसले को लेकर बीजेपी भी हमलावर हो गई है और पार्टी ने कहा है कि मुस्लिम सेंटीमेंट को उभारकर वोट हासिल करने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस धर्म की राजनीति कर रही है. बीजेपी के प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने इस मसले पर कहा, ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस के मेनिफेस्टो में शंकराचार्य की जगह तख्त-ए-सुलेमान का नाम लिखना दिखाता है कि पार्टी ने रिलिजियस सेंटीमेंट्स के साथ खेला है. शंकराचार्य का मंदिर एक ऐतिहासिक जगह है और यह सोची समझी साजिश है. नेशनल कांफ्रेंस की कोशिश है कि वह कश्मीर के मुसलमान को बहला कर चुनाव में उनका वोट हासिल कर सके क्योंकि कश्मीर क्षेत्र में 98 फीसदी मुस्लिम वोट हैं.'

वहीं, मेनिफेस्टो पर उठ रहे सवालों पर नेशनल कांफ्रेंस के सीनियर नेता नासिर असलम वानी ने कहा, ‘यह सवाल बिल्कुल गलत है. हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है. जो लोग सवाल उठा रहे हैं उन्हें इतिहास के बारे में जानना चाहिए. हमने कोई नाम नहीं बदला है. हमारी पार्टी का नारा है हिंदू, मुस्लिम, सिख इत्तिहाद. हमारी पार्टी इसी वजूद पर बनी है. हम धर्म की राजनीति नहीं करते हैं और न ही कभी करेंगे. हम सभी धर्म को साथ लेकर चलते हैं. हमने हमेशा कश्मीरी पंडितों की वापसी की सबसे ज्यादा कोशिश की है.'

शंकराचार्य मंदिर का इतिहास 

शंकराचार्य मंदिर के साथ कई कहानियां और इतिहास जुड़ा हुआ है. यह मंदिर कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है. यह ज़बरवान पर्वतमाला पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. वैसे ये मंदिर न सिर्फ़ धर्म, बल्कि एक आर्किटेक्चरल मार्वल के रूप में भी इसकी अलग ही पहचान है. कुछ बुजुर्गों का कहना है कि यह मंदिर ज्येष्ठेश्वर मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. माना ये जाता है कि राजा गोपादत्य ने 371 ईसा पहले में मंदिर को बनाया था, इसे गोपाद्री नाम दिया था. महान शंकराचार्य जब सनातन धर्म को फिर से ज़िंदा करने कश्मीर आए थे, तब वे यहां रहा करते थे.  मंदिर लगभग 30 फ़ीट ऊंचा बना है और मंदिर में भगवान शिव का लिंगम है. 

श्रीनगर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता गोपाद्री पहाड़ी पर स्थित है. शिव को समर्पित यह मंदिर मूल रूप से यशेश्वर को समर्पित है. ASI के मुताबिक़, महान अद्वैतवाद के प्रचारक के नाम पर पहाड़ी को लोकप्रिय रूप से शंकराचार्य कहा जाता है. अष्टकोणीय ऊंचा चबूतरा, जिस पर मंदिर खड़ा है और उस तक जाने वाली सीढ़ियां पहले की हैं और संभवतः यह इमारत का हिस्सा रही होंगी, जिसे पारंपरिक रूप से राजा गोआदित्य से जोड़ा जाता है. अधिसंरचना बाद की तिथि की है. मंदिर में एक कक्ष है. अंदर से गोलाकार और बाहर से चौकोर, जिसके दोनों ओर दो उभरे हुए पहलू हैं. उत्तर की ओर निचले स्तर पर एक कक्ष और दक्षिण-पूर्व की ओर एक तालाब भी है. गर्भगृह में एक लिंग है. दो पार्श्व दीवारों से घिरी सीढ़ियों पर मूल रूप से दो फ़ारसी शिलालेख हैं, जिनमें से एक पर ए.एच. 1069 (ए.डी. 1659) की तिथि अंकित है. स्तंभ पर मिले एक शिलालेख के अनुसार, छत और स्तंभ शाहजहां द्वारा हिजरी 1054 (1644 ई.) में बनवाए गए प्रतीत होते हैं. छत गुंबद के आकार की है और कंजूर पत्थर की क्षैतिज पट्टियों से बनी है. शैलीगत दृष्टि से, मंदिर संभवतः छठी-सातवीं शताब्दी ई. का है.

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