ये समय पर्युषण (क्षमा) पर्व का है ...
इस कविता को यथार्थ में समझ लिया जाये तो इस पर्व मनाना निसंदेह सफल हो जायेगा !
मैं रूठा ,
तुम भी रूठ गए
फिर मनाएगा कौन ?
आज दरार है ,
कल खाई होगी
फिर भरेगा कौन ?
मैं चुप ,
तुम भी चुप**
इस चुप्पी को
फिर तोडे़गा कौन ?
छोटी बात को लगा लोगे दिल से ,
तो रिश्ता
फिर निभाएगा कौन ?
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर ,
सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?
न मैं राजी ,
न तुम राजी ,
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ?
डूब जाएगा यादों में दिल कभी ,
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?
एक अहम् मेरे ,
एक तेरे भीतर भी ,
इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?
फिर इन लम्हों में अकेला
रह जाएगा कौन ?
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन
एक ने आँखें. ...
तो कल इस बात पर फिर
पछतायेगा कौन ?
Respect Each Other
Ignore Mistakes
. Avoid Ego
क्षमायाचना के साथ उत्तम क्षमा
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