गौधन दीवाली पोस्टर का किया गया विमोचन ...
भारतीय ग्राम्य जीवन शैली में वास्तविक आनंद के दर्शन होते हैं: प्रहलाद पटेल
पंचायत, ग्रामीण विकास एवं श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि पाश्चात्य सभ्यता में माना जाता है कि मन की उत्तेजना आनंद की ओर ले जाती है। पर भारतीय संस्कृति ने इस विचार को कभी स्वीकार नहीं किया। भारतीय ग्राम्य जीवन शैली में वास्तविक आनंद के दर्शन होते हैं। यही वजह है जब बात आनंद की चलती है तो सम्पूर्ण विश्व भारतीय ग्राम्य जीवन की तरफ देखता है।
मंत्री श्री पटेल ग्वालियर में राष्ट्रगाथा एवं भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में “संस्कृति-ग्राम्य पर्यटन-पर्यावरण” विषय पर आयोजित हुए दो दिवसीय मंथन कार्यक्रम के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। आईआईटीटीएम (भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान) में आयोजित हुए मंथन कार्यक्रम के समापन सत्र में हरियाणा के पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी, राज्य सूचना आयुक्त उमाशंकर पचौरी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के पूर्व कुलपति डॉ. प्रकाश बरतोनिया व पूर्व निदेशक भारतीय जन संचार संस्थान डॉ. संजय द्विवेदी मंचासीन थे।
मंत्री श्री पटेल ने मंथन कार्यक्रम में मौजूद युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि चिंतन करना हमारी अपनी जिम्मेदारी होती है। इसलिए युवा भविष्य के बारे में चिंतन करें, क्योंकि उन्हें आगे का अपना सम्पूर्ण जीवन भविष्य में ही गुजारना है। उन्होंने कहा कि पर्यटन हमें प्रकृति एवं जीवन के बारे में सिखाता है। इसीलिए हमारे पुरखे तीर्थाटन के रूप में पर्यटन करते थे। हमारे पुरखे प्रकृति संरक्षण के प्रति भी विशेष रूप से जागरूक थे। इसलिए हम सभी प्रकृति और ग्राम्य जीवन शैली के संरक्षण को लेकर सजग रहें, तभी हम अपनी सांस्कृतिक पहचान व मूल्य को बचाकर रख पायेंगे। उन्होंने युवाओं से कहा कि ग्राम्य पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये ग्रामीण जीवन शैली को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें, तभी आप अतिथि भाव का आनंद ले पायेंगे।
पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि भारत गाँवों का देश है, इसलिए चाहे जितना शहरीकरण हो जाए, पर विकसित भारत का सपना तभी पूरा होगा, जब हमारे गाँव समृद्ध होंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति ने पूरे विश्व को चरित्र की शिक्षा दी है। इसलिए हम सबका दायित्व है कि संस्कृति हमारे व्यवहार में दिखे। उन्होंने कहा हमारी संस्कृति में “धर्म” जीवन पद्धति है। पृथ्वी को माँ मानने की कल्पना भारत की देन है। साथ ही पूरी दुनिया को भारत ने ही वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दिया है।
प्रदेश के सूचना आयुक्त उमाशंकर पचौरी ने भोग और त्याग के माध्यम से भारतीय संस्कृति का विश्लेषण करते हुए कहा कि भारतीय समाज में जिसने भोगमय जीवन बिताया वह कभी सम्माननीय नहीं रहा। वहीं जिसने त्याग किया वह सदैव के लिए पूजनीय बन गया। भगवान राम व भरत के चरित्र इसके सजीव उदाहरण हैं। त्याग की यह परंपरा भारतीय जनमानस खासकर ग्राम्य जीवन में आज भी गहरे तक समाहित है।
कार्यक्रम में डॉ. प्रकाश बरतोनिया व डॉ. संजय द्विवेदी, संस्कार भारती के श्री दिनेश चंद दुबे एवं अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। स्वागत उदबोधन भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान के निदेशक डॉ. आलोक शर्मा ने दिए। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रगाथा संस्था की पदाधिकारी सुश्री मोनिका ने किया और अंत में सौरभ दीक्षित ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा राष्ट्रगाथा संस्था के गौधन दीवाली पोस्टर का विमोचन भी किया गया।
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