धार्मिक शिक्षा दिए जाने के संदेह के आधार पर...
लगातार हो रही कार्रवाई से मप्र में मदरसों पर लटक रही तलवार !
लंबे समय से खाली पड़े मप्र मदरसा बोर्ड में नियुक्तियों को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। प्रदेश में वैध-अवैध मदरसों की हलचल के बीच यह गठन जरूरी माना जा रहा है। लगातार हो रही कार्रवाई से मप्र में मदरसों पर तलवार लटक रही है। मदरसों से धार्मिक शिक्षा दिए जाने के संदेह के आधार पर सरकार ने एक साथ सैकड़ों मदरसों को बंद करने की स्थिति पैदा कर दी है। वहीं दूसरी तरफ इन मदरसों के संचालन के लिए बोर्ड बनाने की कवायद तेज हो गई है।
बोर्ड के गठन की सुगबुगाहट ने प्रदेश के अल्पसंख्यक नेताओं के अरमानों को जगा दिया है। ताजपोशी की चाहत में इन नेताओं ने अपने आकाओं की चौखट पर धक्के खाने भी शुरू कर दिए हैं। वर्ष 1998 में कांग्रेस शासन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मप्र मदरसा बोर्ड की नींव रखी थी। इसके लिए तय बायलॉज के अनुसार शिक्षा जगत से जुड़े प्रोफेसर हलीम खान को इस बोर्ड का पहला अध्यक्ष बनाया गया था। तब से लेकर अब तक इस बोर्ड को भाजपा सरकार द्वारा लगातार अध्यक्ष दिए जाते रहे हैं। एसके मुद्दीन, गनी अंसारी, राशिद खान इसके अध्यक्ष बने।
बोर्ड के अंतिम अध्यक्ष की भूमिका बुरहानपुर निवासी प्रोफेसर सैयद इमादुद्दीन ने निभाई थी। वर्ष 2018 में प्रदेश में बनी कांग्रेस सरकार के दौरान प्रोफेसर इमाद पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सत्ता परिवर्तन के चलते नैतिक आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से लेकर अब तक इस बोर्ड में कोई कार्यकारिणी गठित नहीं हुई है। अब उनकी कोशिशें तेज हो रही हैं मप्र मदरसा बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष प्रोफेसर सैयद इमादुद्दीन ने अपने कार्यकाल में संभाग और जिला अध्यक्षों की टीम गठित की थी।
हालांकि बोर्ड संविधान के प्रावधानों में इस तरह की नियुक्ति की मान्यता नहीं है। लेकिन, मदरसा बोर्ड की गतिविधियों को जिलों से छोटे गांवों तक ले जाने की मंशा से यह प्रक्रिया की गई थी। सूत्रों का कहना है कि उस समय गठित समितियों के पदाधिकारी अब बोर्ड अध्यक्ष के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इनमें से अधिकांश पदाधिकारी अब अपनी दावेदारी लेकर भाजपा नेताओं के पास पहुंच रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि लंबे समय से रिक्त चल रहे मप्र मदरसा बोर्ड में नियुक्ति की सुगबुगाहट है। प्रदेश में वैध-अवैध मदरसों की उठापटक के बीच इस गठन को जरूरी माना जा रहा है।
स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन आने वाले इस बोर्ड के गठन के लिए शिक्षा से जुड़े किसी अल्पसंख्यक भाजपा नेता की तलाश की जा रही है। जानकारी के मुताबिक पूरे प्रदेश में मप्र वक्फ बोर्ड से पंजीकृत करीब साढ़े छह हजार मदरसे संचालित हैं। इनमें छात्रों की संख्या 6 लाख से ज्यादा बताई जा रही है। जानकारी के मुताबिक इनमें से करीब 2 हजार मदरसे सरकार की ओर से अनुदानित हैं। यह अनुदान केंद्र और राज्य सरकार मिलकर जारी करती है। हालांकि पिछले कुछ सालों से मदरसों की यह अनुदान राशि बंद कर दी गई है। इसके चलते बड़ी संख्या में मदरसे बंद भी हो गए हैं। साथ ही पिछले दिनों चलाए गए सरकारी अभियान ने भी बड़ी संख्या में अपंजीकृत मदरसों पर ताला जड़ दिया है।
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