लंबी बीमारी के बाद, शनिवार देर रात नटवर सिंह का 93 वर्ष की आयु में निधन...
नहीं रहा,सोनिया का वो सबसे खास वो सिपाही, जो बागी हो गया था !
पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह का शनिवार रात निधन हो गया है. 93 वर्ष के नटवर सिंह एक समय पर गांधी परिवार के बेहद ही करीबी और वफादार थे. हालांकि साल 2008 में नटवर सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी और बगावत पर उतर आए थे. नटवर सिंह की बगावत उनकी किताब 'वन लाइफ इज नॉट इनफ : एन आटोबायोग्राफी' में खुलकर नजर आई. जिसमें उन्होंने गांधी परिवार को लेकर कई बड़े खुलासे किए.
राजस्थान के भरतपुर जिले में जन्मे नटवर सिंह पढ़ाई में बहुत तेज थे. सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ाई के बाद नटवर इंग्लैंड चले गए और कैंब्रिज में दाखिल ले लिया. नेहरू गांधी के करीबी कृष्णा मेनन ने नटवर सिंह को सिविल सर्विसेस एग्जाम से जुड़ी टिप्स दी थी. नटवर सिंह ने सिविल सर्विसेस का एग्जाम क्लियर करके IFS (भारतीय विदेश सेवा) अधिकारी के तौर पर कई सालों तक सेवाएं दी.
नटवर सिंह का राजनीतिक सफ़र
कुछ सालों बाद नटवर सिंह भारत वापस आए गए और उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू गांधी के दफ्तर में काम करना शुरू कर दिया. इस दौरान उन्हें ताकतवर नौकरशाह पीएन हक्सर के साथ काम करने का मौका भी मिला. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं उस दौरान नटवर सिंह को राजनीति में आने का मौका मिला. कहा जाता है कि नटवर सिंह ने ही इंदिरा गांधी के सामने राजनीति में आने की इच्छा जाहिर की थी. जिसे इंदिरा गांधी ने स्वीकार कर लिया था. इंदिरा गांधी ने नटवर सिंह को राज्यसभा से लाने का सोचा. लेकिन कांग्रेस से जुड़े कुछ लोगों को ये पसंद नहीं आया और उन्होंने नटवर सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात रखी. साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद नटवर सिंह ने भरतपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
सोनिया गांधी के बनें वफादार
राजीव गांधी के मंत्रिपरिषद में नटवर सिंह को राज्यमंत्री बनाया गया और यहां से ही नटवर सिंह का राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई. राजीव गांधी की हत्या के बाद पार्टी का सारा भार सोनिया गांधी पर आ गया. इस दौरान नटवर सिंह ने सोनिया गांधी की काफी मदद की. साल 1991 में नटवर सिंह की सलाह पर ही सोनिया गांधी पीएन हक्सर से मिली और पीएम किसको बनाया जाए, ये सलाह ली... पीएन हक्सर ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का नाम आगे किया. लेकिन शंकरदयाल शर्मा ने पीएम बनने से मना कर दिया. इसके बाद पीएन हक्सर ने नरसिम्हा राव का नाम सुझाया और उन्हें पीएम बनाया गया. हालांकि बाद में नरसिम्हा राव और सोनिया गांधी के बीच कई मुद्दों पर विवाद हुआ.
नटवर सिंह 2004-05 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में विदेश मंत्री थे. उन्होंने पाकिस्तान में भारत के राजदूत के रूप में भी सेवाएं दी थीं और 1966 से 1971 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से जुड़े हुए थे. नटवर सिंह सोनिया गांधी के सियासी गुरु बनें और उन्होंने सोनिया गांधी की हिंदी सुधारी. साथ ही राजनीति में उनकी पकड़ मजबूत कराई. उस दौरान सोनिया गांधी नटवर सिंह पर काफी भरोसा करती थी और एक-एक बात उनसे शेयर करती थी.
इस वजह से छोड़ी कांग्रेस
यूपीए-1 में नटवर सिंह विदेश मंत्री बनें. लेकिन ईरान से तेल के बदले अनाज कांड सामने आने के बाद उन्हें कैबिनेट से बाहर कर दिया गया. इसके बाद वो बागी हो गए और उन्हें अपनी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' में गांधी परिवार से जुड़े कई खुलासे किए. जिसमें सोनिया गांधी की कड़ी आलोचना की. उन्होंने ये दावा भी किया कि किताब के प्रकाशन से पहले सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी उनसे मिलने आई थी. लेकिन उन्होंने किताब से कोई हिस्सा नहीं हटाया.
राहुल नहीं चाहते थे सोनिया पीएम बनें
नटवर ने अपनी किताब में दावा किया था कि राहुल गांधी किसी भी कीमत पर नहीं चाहते थे कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बने. राहुल को डर था कि उनकी मां की भी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की तरह हत्या कर दी जाएगी. अपनी किताब में उन्होंने ये भी दावा किया था कि पार्टी पर सोनिया गांधी का नियंत्रण इंदिरा गांधी से ज्यादा था. नटवर ने कहा था कि राजीव गांधी होते, तो मेरे साथ वह नहीं होता, जो सोनिया ने किया... मैंने मनमोहन सिंह को 'बिना रीढ़ का' कहकर सही किया था. सरकारी फाइलें निरीक्षण के लिए सोनिया गांधी के पास जाती थी.
नटवर सिंह को राष्ट्र के प्रति सेवा के लिए 1984 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उन्होंने विदेश मामलों सहित अन्य विषयों पर कई चर्चित किताबें भी लिखीं, जिनमें 'द लिगेसी ऑफ नेहरू : अ मेमोरियल ट्रिब्यूट' और 'माई चाइना डायरी 1956-88' शामिल हैं.
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