स्मार्ट सिटी ग्वालियर एक इल्यूजन है...
सिटी तो स्मार्ट नहीं हुई, लेकिन शहर की हालत से पता चलता है कि,जिम्मेदार जरूर स्मार्ट हो गए होंगे !
ग्वालियर । 2015 में जब देश की प्रधानमंत्री ने स्मार्ट सिटी योजना की घोषणा की थी तब वास्तव में एक ऐसी सुखद अनुभूति होती थी कि हम शायद कुछ सालों बाद ऐसे शहर में रहेंगे जहां न तो सीवर की समस्या होगी न सड़कों की और ना पेयजल की। जिसमें सभी सर्विसेज स्मार्ट तरीके से लोगों को मिलने लगेंगी । साफ़ सुथरी धुल रहित सुंदर सडके, सड़कों पर चमचमाती रोशनी, सुगम यातायात, बिजली पानी की बेहतरीन व्यवस्था, निर्वाध रूप से चलता हुआ यातायात, सार्वजनिक यातायात के बेहतरीन साधन बगैरा बगैरा ये तमाम दृश्य मन मस्तिष्क में कौंध जाते थे,और जब हमारा शहर, ग्वालियर स्मार्ट सिटी योजना में शामिल हुआ, तो लगा ऐसा ही कुछ होगा, लेकिन पिछले 10 सालों में शहर कितना स्मार्ट हुआ यह सभी के सामने है। अगर ऐसी ही स्मार्ट सिटी बनना थी,तो स्मार्ट सिटी की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि इससे अच्छा कार्य तो ग्वालियर नगर निगम ही करवा रही थी। स्मार्ट सिटी के नाम पर केंद्र सरकार ने बेवजह करोड़ों रुपए खर्च कर डाले।
स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन द्वारा पुरानी बिल्डिंगों को खरोंच कर नया दिखाने का प्रयास,अच्छे-भले चौराहों को बार-बार तोड़कर नया बनाए जाने का दिखावा करना, अच्छी-भली शहर की वाटर सप्लाई व्यवस्था को 24 घंटे पानी देने के लिए अमृत योजना के नाम पर ध्वस्त करके रख देना। और उसके बाद ब-मुश्किल एक दिन छोड़कर पानी की सप्लाई होना। बार-बार अमृत योजना की लाइनों का फटना। इतना सब होने के बाद भी लोग टेंकरों से पानी खरीदने को मजबूर हैं।स्मार्ट सिटी में शामिल हुए शहर को 10 साल होने को आए लेकिन कई क्षेत्रों में अभी भी पेयजल की उपलब्धता ठीक नहीं है।कई स्थानों पर तो 3 साल पहले डाली गई फेज वन अमृत योजना की पाइप लाइनों में पानी की सप्लाई अभी तक नहीं हो पाई है। पूरे शहर में 1 घंटे की बारिश होने पर जल भराव हो जाता है।
करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद यहां भी बड़े बड़े प्रोजेक्ट बनाकर ऐसा माहौल बनाया गया कि स्मार्ट सिटी का सपना साकार होने ही वाला है। लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है। शहर की सड़कों के किनारे मुख्य स्थलों पर नि: शुल्क उपलब्ध होने वाले पब्लिक वॉशरूम की भी हालत बेहद दयनीय है। इनमें में पानी तक उपलब्ध नहीं है। जो पेड वॉशरूम हैं उनकी स्थिति थोड़ी ठीक है। ऐसी स्मार्ट सिटी किस काम की जिसमें लोगों को मूलभूत सुविधा तक नहीं मिल पाये, और यदि कभी कोई इंस्पेक्शन होता है तो इन लूप पोल्स को छुपाने के लिए ऊपर से रंग रोगन करके ही पुराने स्ट्रक्चर को नया दिखाने का प्रयास कैसे किया जाता है यह स्मार्ट सिटी के कारिंदे अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन इन कारनामों को उजागर करना भगवान को भी अच्छी तरह आता है और बारिश होते ही स्मार्ट सिटी ग्वालियर की ये स्मार्टनेस की हकीकत इस बरसात में सामने आ गई।
ग्वालियर सिटी में स्मार्ट सिटी का के काम सिंधिया महल के सामने कटोरा ताल वाली सड़क पर दिखाई देता है इस रोड को थीम रोड के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद गांधी रोड पर मानसिंह चौराहे से लेकर कलेक्टर बंगले तक सड़क के दोनों तरफ कुछ निर्माण किए जा रहे हैं। इसके अलावा महाराज बाड़ा क्षेत्र में ऐतिहासिक बिल्डिंगों पर किया गया रिनोवेशन का कार्य हुआ है। शहर के प्रवेश द्वारों का निर्माण कराया जाना,बस स्टेण्ड और शिक्षा नगर में स्कूल का नए सिरे से निर्माण कार्य स्मार्ट सिटी द्वारा किए गए कार्यों में सराहनीय है।
लेकिन इस सबके बावजूद भी ग्वालियर में स्मार्ट सिटी के द्वारा ऐसा कोई भी कार्य अभी तक नहीं कराया गया है जिससे कि ग्वालियर शहर के आमजन को इसकी स्मार्टनेस का अनुभव हो। शहर की आंतरिक सड़कों की स्थिति ठीक नहीं है। ट्रैफिक की स्थिति बेहद खराब है। लेफ्ट टर्न भी क्लियर नहीं रहते हैं। डिवाइडर भी ठीक तरीके से नहीं बनाए गए हैं। इन डिवाइडर की वजह से लोग रॉन्ग साइड चलने को मजबूर हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है शिंदे की छावनी से लेकर रामदास घाटी तक केवल एक कट वाला डिवाइड है। जबकि इस डिवाइडर के कारण जैन मंदिर वाली गली,खल्लासीपुरा,डोगरपुरा,लक्ष्मण तलैया,रामबाग कॉलोनी,तोमर बाड़ा आदि क्षेत्रों में आने-जाने के लिए यहां के लोग (दो पहिया वाहन चालक) न चाहते हुए भी रॉन्ग साइट चलने को मजबूर हैं।
शहर की सड़कों पर निराश्रित पशुओं की भरमार है। सड़कों पर रेडी ठेले वालों और मैकेनिकों का अतिक्रमण है। इस वजह से वाहन चालकों को और पैदल चलने वालों को बेहद परेशानी होती है इसके अलावा यही अतिक्रमण एक्सीडेंट का कारण भी बनता है। स्ट्रीट लाइटों की भी हालत भी संतोष जनक नहीं है। सार्वजनिक यातायात के लिए उपलब्ध विक्रम टेंपो ऑटो और टमटम वाले मनमर्जी से किराया वसूलते हैं इन पर किसी भी तरह की निगरानी का अभाव है। यहां वहां कहीं भी ये वाहन सवारियां लेने के चक्कर में वाहन खड़ा कर देते है। खासकर चौराहे और मुख्य सड़कों पर इनकी वजह से ट्रेफिक बेहद बिगड़ता है।
शहर की यह हालत देखकर तो लगता है कि ये तो ठीक वैसा ही है जैसा की ऊपरी कंगूरे बनाकर ऊपरी सजावट दिखाकर रंग रोगन कर स्मार्ट सिटी का सपना साकार होने के शब्द बाग दिखाए गए जा रहे हैं। शहर स्मार्ट बनने के बजाय शायद इससे जुड़े लोग स्मार्ट हो गए हैं इसीलिए बार-बार स्मार्ट सिटी कारपोरेशन को एक्सटेंशन लेकर कार्य करने का मौका मिल रहा है।
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