कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर की रेप और हत्या के बाद...
बतौर CM पब्लिक और पार्टी के बाहर और भीतर भी घिरी ममता बनर्जी,भतीजा भी नाखुश !
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर की रेप के बाद हत्या का केस हिन्दुस्तान में शहर-दर-शहर फैल चुका है. आम लोग सड़कों पर हैं और डॉक्टर बेटी को जल्द से जल्द इंसाफ दिलाना चाहते हैं. अस्पताल के अंदर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या केस में सियासत भी भरपूर है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मां, माटी और मानुष पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. ममता सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी तो है ही बीजेपी भी सड़क पर उतर गई है. ममता बनर्जी को चुनौतियों का सामना सिर्फ राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर ही नहीं करना पड़ा रहा, बल्कि पार्टी के भीतर उनके लिए चुनौती बढ़ गई है. इस केस में आलोचना का सामना कर रहीं ममता बनर्जी से उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भी दूरी बनाते दिखाई दे रहे हैं. जनता और पार्टी के भीतर गुस्से के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या जिस तरह वाम दलों को बंगाल की सत्ता से बाहर होना पड़ा था, उसी तरह ममता बनर्जी और टीएमसी की भी सत्ता पलटने लगी है?
जनता के गुस्सा का ममता बनर्जी को मिला था फायदा
साल 2010-11 के दौरान 34 सालों से बंगाल की सत्ता पर काबिज वामपंथी सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था और तब ममता बनर्जी ने कानूनविहीन वामपंथी शासन को उखाड़ कर 2011 में सत्ता में आई थीं. अब 13 साल बाद इतिहास उसी मोड़ पर है और अब राज्य की अराजकता ही ममता बनर्जी की सत्ता पर पकड़ को खतरे में डाल रही है. लेडी डॉक्टर से रेप और उसकी हत्या ने ममता बनर्जी को कमजोर कर दिया है, जैसी वह पिछले 13 सालों में कभी नजर नहीं आईं.
अब ममता बनर्जी खुद झेल रहीं जनता का गुस्सा
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 साल की ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और फिर हत्या पहली बार नहीं है, जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) के 13 साल के शासन के दौरान महिलाओं के खिलाफ जघन्य हिंसा हुई हो. साल 2013 में कामदुनी में एक कॉलेज स्टूडेंट के साथ गैंगरेप किया गया और उसकी हत्या कर दी गई. इसके एक साल पहले 2012 में कुख्यात पार्क स्ट्रीट गैंगरेप को ममता बनर्जी ने शाजानो घोटोना यानी यानी एक नकली घटना कहकर टाल दिया था.
महिलाओं के खिलाफ इन अपराधों में से किसी ने भी ममता की लोकप्रियता को प्रभावित नहीं किया. उन्होंने 2016 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की 292 सीटों में से 211 सीटों के साथ आराम से जीत हासिल की. 2021 में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) की कड़ी चुनौती के बावजूद, टीएमसी ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर 215 कर ली. भाजपा ने केवल 77 सीटें जीतीं, जो धीरे-धीरे दलबदल और उपचुनावों में हार के कारण कम होती गईं. 2019 के लोकसभा चुनावों में एक झटका लगा, जब भाजपा ने पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 18 सीटें जीतीं, जिससे टीएमसी 22 सीटों पर सिमट गई. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी ने वापसी की और 29 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा को सिर्फ 12 सीटों पर समेट दिया.
ममता बनर्जी के खिलाफ महिलाओं का गुस्सा
पश्चिम बंगाल की जनता ने अब तक टीएमसी के कार्यकर्ताओं की हिंसा की निंदा की, लेकिन ममता बनर्जी की लोकप्रियता बरकरार रही. संदेशखाली हिंसा भी उनकी लोकप्रियता को कम नहीं कर पाई. लेकिन, आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में लेडी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या ने ममता की ढाल को भेद दिया है. पश्चिम बंगाल में महिलाएं ममता बनर्जी के लिए एक मजबूत चुनावी समर्थन आधार बनाती हैं. उन्होंने महिलाओं के लिए विशेष वित्तीय योजनाओं के साथ उस आधार को पोषित किया है. लेकिन, अब वही महिलाएं कोलकाता में हुई क्रूरता के बाद गुस्से में हैं. पश्चिम बंगाल के लोग, खासकर महिलाएं मानती हैं कि रेड लाइन क्रॉस हो गई है.
पार्टी के भीतर भी ममता बनर्जी कर रहीं चुनौती का सामना
आरजी कर अस्पताल में हुए बलात्कार और हत्या के मामले के बाद अभिषेक बनर्जी ने ममता बनर्जी से दूरी बना ली है. इस मामले पर पहली प्रतिक्रिया में उन्होंने आरोपी का एनकाउंटर करने की बात कही थी, वहीं वो ममता बनर्जी की ओर से निकाली गई रैली में भी शामिल नहीं हुए. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अभिषेक बनर्जी इस मामले में प्रशासन की विफलता पर नाराजगी जाहिर करना चाहते थे. इसके साथ ही आरजीकर हॉस्पिटल से हटाए गए प्रिंसिपल की दूसरे अस्पताल में पोस्टिंग पर भी नाराज हैं. इसके अलावा आरजी कर मेडिकल कॉलेज में भीड़ के हमले को रोकने में विफल रही पुलिस से भी अभिषेक बनर्जी की नाराजगी है.
तृणमूल कांग्रेस (TMC) के अंदर मतभेद इस वजह से भी ज्यादा बढ़ गए, क्योंकि इस केस को संभालने के तरीके पर सवाल उठाने वाले पार्टी के अन्य नेताओं पर कार्रवाई की गई है. पूर्व राज्यसभा सांसद शांतनु सेन को प्रवक्ता पद से हटा दिया गया है, जबकि मौजूदा राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रॉय को कोलकाता पुलिस से गलत सूचना फैलाने के लिए नोटिस मिला है. इसके खिलाफ वो कलकत्ता हाईकोर्ट पहुंच गए हैं. पार्टी नेता आरजी कर हॉस्पिटल के प्रिंसिपल को ट्रांसफर कर कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज का प्रमुख बनाने का विरोध कर रहे हैं और उनकी नाराजगी खुलकर सामने आ चुकी है. भीड़ के हमले और तोड़फोड़ की घटना से भी कई टीएमसी नेताओं में नाराजगी है.
ममता बनर्जी के सामने वामपंथी शासन जैसी चुनौती
वामपंथियों ने साल 2011 में पाया कि राजनीति में एक ऐसा मोड़ आता है, जब धारा पलट जाती है. 13 साल पहले धारा वामपंथियों के खिलाफ हो गई थी. क्या अब यह धारा टीएमसी और ममता बनर्जी के खिलाफ होने लगी है? 2011 से टीएमसी का शासन वामपंथियों के शासन से भी ज्यादा खूनी रहा है, जिसने उद्योग को राज्य से दूर कर दिया था. पश्चिम बंगाल अभी भी पिछड़ेपन से उबर नहीं पाया है. भ्रष्टाचार और राजनीतिक हिंसा की वजह से ही पश्चिम बंगाल पिछड़ा हुआ है. 2022-23 में इसका सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) 17.13 लाख करोड़ रुपये था, जबकि लगभग समान आबादी (पश्चिम बंगाल के 103 मिलियन के मुकाबले 128 मिलियन) वाले महाराष्ट्र का जीएसडीपी लगभग तिगुना 40.44 लाख करोड़ रुपये था.
टीएमसी के पास संसद में 42 सीटें (लोकसभा में 29 सीटें और राज्यसभा में 13 सीटें) है, जो विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी है. इसके बाद समाजवादी पार्टी (SP) के पास 41 सीटें (लोकसभा में 37 और राज्यसभा में चार) है और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के पास 32 सीटें (लोकसभा में 22 और राज्यसभा में 10) हैं. विपक्ष को 2029 में केंद्र की सत्ता हासिल करने के लिए टीएमसी के रूप में एक मजबूत साथी की जरूरत है, लेकिन अभी जनता के गुस्से का असर टीएमसी की भविष्य की चुनावी गिरावट के रूप में दिख सकता है.
सालों तक CBI को भाजपा का तोता बताने वाली ममता द्वारा सीबीआई को केस सोपना पड़ गया भारी
कई सालों तक केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को भाजपा के पिंजरे में बंद तोते के रूप में खारिज करने के बाद ममता बनर्जी ने कोलकाता के आरडी कर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर से रेप और उसकी हत्या के मामले को सीबीआई को सौंपने में जल्दबाजी की. ताकि खुद को और टीएमसी को सार्वजनिक रूप से होने वाले नुकसान से दूर रखा जा सके.
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