सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला...
शराब नीति घोटाले में ,17 महीने से जेल में हैं बंद मनीष सिसोदिया को मिली जमानत !
नई दिल्ली। दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (9 अगस्त) को जमानत दे दी है. सिसोदिया को 10 लाख रुपए का बॉन्ड भरना होगा. सिसोदिया 17 महीने से तिहाड़ जेल में बंद हैं।.
वे आज जेल से बाहर आ सकते हैं. दिल्ली शराब नीति घोटाले में CBI ने सिसोदिया को पिछले साल 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था. इसके बाद ED ने 9 मार्च को उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया था. सिसोदिया को CBI और ED केस, दोनों मामलों में जमानत मिली है.
जेल में बंद पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को 10 लाख के बेल बॉन्ड और दो श्योरिटी जमा करनी होगी। इसके बाद उन्हें जेल से रिहा किया जाएगा। माना जा रहा है कि सिसोदिया जल्द ही तिहाड़ जेल से बाहर आ जाएंगे।
सिसोदिया को जमा कराना होगा अपना पासपोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने शर्त लगाते हुए सिसोदिया को निर्देश दिया कि वे अपना पासपोर्ट जमा कर दें और गवाहों को प्रभावित न करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल पूरा होने को लेकर ASG का बयान विरोधभासी है। सिसोदिया 18 महोने से जेल में बंद है। ट्रायल शुरू नहीं हो पाया है। स्पीडी ट्रायल का सिसोदिया के अधिकार का हनन हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट बेल देते हुए कही ये बातें
मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेल रुल है और जेल अपवाद है। ये नियम निचली अदालत और हाई कोर्ट को ध्यान में रखना चाहिए। हाई कोर्ट और निचली अदालत ने इन तथ्यों को अनदेखा किया। जहां तक मनीष सिसोदिया पर ट्रायल में देरी का आरोप है, उन पर अलग-अलग अर्जी दाखिल करने का आरोप है। उन्होंने सीबीआई केस में 13, ईडी में 14 अर्जी दाखिल की। सभी अर्जियों को ट्रायल कोर्ट ने मंजूरी दी। कोर्ट ने ये मानने से इंकार किया कि ट्रायल में देरी मनीष सिसोदिया की वजह से हुई।
जांच पूरी तो ट्रायल अभी तक क्यों नहीं शुरू हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने अपने आदेश में जो कहा था कि मनीष की अर्जियों की वजह से ट्रॉयल शुरू होने मैं देरी हुई वो सही नहीं है। हम इस बात से सहमत नहीं कि अर्जियों की वजह से ट्रॉयल में देरी हुई। इस मामले में 8 आरोपपत्र ईडी के द्वारा दाखिल किया गया है। ऐसे में जब जांच पूरी हो चुकी है जुलाई में तो ट्रॉयल क्यों नहीं शुरू हुआ है। निचली अदालत ने राइट टू स्पीडी ट्रॉयल को अनदेखा किया और मेरिट के आधार पर जमानत नहीं दी थी। देरी के आधार पर जमनात की बात हमने पिछले साल अक्टूबर के आदेश में कही थी।
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