अपने हितों के लिए प्रतिबद्ध है भारत...
रूस हो या अमेरिका, बड़ी ताकतों के दबाव नहीं आएगा भारत !
दुनिया के हालात फिलहाल ठीक नहीं चल रहे हैं,रूस -यूक्रेन युद्ध में भी भारत किसी के पक्ष में नहीं है. भारत ना तो रूस की ओर होकर यूक्रेन को नेस्तोनाबूद करने की बात कर रहा है और ना ही नाटो और यूक्रेन की ओर से रूस को बर्बाद करने की धमकी दे रहा है. आधी से अधिक दुनिया इस वक्त युद्ध में फंसी हुई है. चाहे वह रूस-यूक्रेन का ढाई साल से चल रहा है युद्ध हो या फिर हमास -इजरायल के बीच जारी जंग हो. इसी बीच नाटो देशों की बैठक होती है. तीन दिनों तक यह बैठक चलती है, उसके बाद नाटो देश ये फैसला करते हैं कि यूक्रेन को F-16 जैसे फाइटर विमान के साथ और अधिक सहायता भी दी जाएगी. यानी, कोई भी अपने कदम पीछे खींचने के लिए तैयार नहीं है. इसी बीच भारत के प्रधानमंत्री रूस की यात्रा करते हैं जिसमें अमेरिका की तल्खी भी देखने को मिली है. हालांकि, अमेरिका की चढ़ी भवों को भारत ने उतना ही भाव दिया है, जितना कोई अभिभावक किसी शोर मचाते बच्चे को देता है.
भारत की अपनी नीति सर्वोपरि
भारतीय प्रधानमंत्री की रूस की विजिट कोई सोचा समझा प्रयोग नहीं है. ये मात्र एक संयोग है. तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली विदेश यात्रा पर इटली गए थे. उसके बाद दूसरी यात्रा रूस की उन्होंने की. उसी समय नाटो देशों की मीटिंग हो रही थी. नाटो के मीटिंग में सबसे अहम मुद्दा यूक्रेन युद्ध का रहा. रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा था और इसी बीच पीएम मोदी ने रूस का दौरा किया, इससे निश्चित रूप से कई देशों को असहजता हुई होगी. यह बात अलग है कि भारत के पीएम मोदी की रूस की यात्रा ना तो रूस का समर्थन करने के लिए और ना ही अमेरिका को नाराज करने के लिए थी,ये यात्रा स्ट्र्रेटजी के लिए और वैल्यू और डिप्लोमेटिक संबंध को ध्यान में रखकर की गई थी.
भारत और रूस के संबंध आज कोई नये नहीं बल्कि कई दशक पुराने रहे हैं. रूस ने भारत की कठिन समय में सहायता की है, न्यूक्लीयर तकनीक से लेकर रक्षा प्रणाली में भारत का पार्टनर रूस रहा है. हाल के कुछ समय में रक्षा प्रणाली को लेकर अमेरिका और इजरायल सहित अन्य देश भी भारत के साथ जुड़े हैं. रूस से निर्भरता अब थोड़ी कम हुई है, इसके बावजूद भारत के लिए रूस एक अहम पार्टनर के रूप में है.
भारत किसी देश का पक्षकार नहीं
इसको लेकर यूएस की ओर से कई खबरें आ रही है. अमेरिका की ओर से कहा जा रहा है कि भारत के साथ अमेरिका का संबंध है तो वो उसका फायदा ना उठाये. अमेरिका के विदेश मंत्रालय की ओर से जो भी बयान आ रहे हों लेकिन भारत अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए ही काम करेगा. विश्व में कई घटनाएं हो रही है्ं, किसी के यहां घरेलू विद्रोह है तो कोई दूसरे मसलों में जूझ रहा है. इसको ध्यान में रखते हुए भारत को अपने हित पर काम करना है. भारत ने अमेरिका से रिश्ते बनाए हैं इसका मतलब ये नहीं है कि वो रूस से दूरी बना ले.
अमेरिका और रूस के अपने मामले और दुश्मनी है. वो आपस में देखेंगे लेकिन भारत इन दिनों के बीच में कभी एकतरफा़ व्यवहार नहीं करेगा. रूस -यूक्रेन में भी भारत ने दोनों की ओर से शांति बहाल करने की कोशिश की है. भारत ना तो रूस की ओर होकर यूक्रेन को नेस्तोनाबूद करने की बात कर रहा है और ना ही नाटो और यूक्रेन की ओर से रूस को बर्बाद करने की सोच रहा है. मोदी ने रूस-यात्रा की तो वहां भी ये बातें कहीं कि किसी भी हाल में युद्ध किसी मामले का हल नहीं है. भारत को रूस के साथ अपने रिश्ते को देखना है ना कि ये देखा जाए कि इससे यूएस क्या सोचता है.
अमेरिका और रूस दोनों से संबंध
भारत की एक तनी हुई रस्सी पर चलने की बात सही है कि वह रूस और अमेरिका दोनों के साथ रिश्तों को रखना चाहता है. दो देशों के साथ में व्यापार करना या वार्ता करना कहीं से उसके गुट में जाने की तरह से नहीं देखना चाहिए. ऐसा तो शीत युद्ध के समय होता था, उस समय भी भारत गुट निरपेक्ष का समर्थक था. हाल फिलहाल में चीन ने भारत का बिना नाम लिए कहा कि पंचशील एशिया की पैदाईश है और इसी पद्धति पर दुनिया को चलना चाहिए. ऐसी बातें चीन बोल रहा है तो भारत की तो ये कथनी और करनी भी है.
भारत अपने डिप्लोमेसी और वैल्यू को ध्यान में रखकर दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश करेगा. भारत ने ये कभी नहीं कहा कि वो अमेरिका के साथ आता है तो वो रूस के साथ रिश्तों को खत्म कर देंगे, बल्कि अमेरिका से ज्यादा पुराना भारत और रूस का संबंध रहा है. चीन पर काउंटर करने के लिए अमेरिका ने भारत से संबंध रखे हुए है इसको इस नजरिये से भी देखा जा सकता है, लेकिन रूस के साथ ऐसा नहीं है बल्कि रूस ने भारत की उस समय मदद की जब कोई साथ नहीं था. रूस के साथ भारत की सैन्य और पॉलिटिक्स के संबंध ही नहीं हैं, बल्कि साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अलावा अन्य चीजों को लेकर भी दोनों देश साझा कार्यक्रम करते हैं.
मोदी की रूस यात्रा को यूक्रेन युद्ध के नजरिये से नहीं,भारत के हितों को नजरिये से देखा जाना चाहिए.
अमेरिका और चीन के बीच में काफी तनातनी है, बावजूद इसके दोनों देशों में व्यापार खूब होता है. रूस के साथ भारत की घनिष्ठता है. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ संबंध ठीक नहीं है. ऐसे में भारत को रूस और अमेरिका दोनों की जरूरत पड़ सकती है, वो किसी एक देश के साथ रिश्तों को लेकर नहीं चल सकता है.भारत में आर्थिक क्षमताएं, तरक्की, सेना की बढ़ती ताकत आदि को ध्यान में रखकर कोई भी देश भारत से दूर जाने की कोशिश नहीं करेगा. इसलिए मोदी की यात्रा को यूक्रेन युद्ध के नजरिये से नहीं बल्कि भारत के हितों को नजरिये से देखा जाना चाहिए.
विकास के रास्ते भारत
यूरोप में कई जगहों पर विवाद है. पूर्वी क्षेत्रों में इजरायल और फिलिस्तीन का युद्ध चल रहा है. दक्षिण चीन सागर में भी तनाव बना हुआ है. भारत लंबे समय से युद्ध में नहीं गया है लेकिन तनाव तो चल रहा है. भारत की स्थिति आगे आने वाले दिनों में मजबूत ही होती रहेगी. भारत में आर्थिक स्थिरता, राजनीतिक स्थिरता, पॉपूलेशन आदि बनी हुई है. भारत अभी ग्रोथ के नजरिये से आगे बढ़ रहा है. इन सब से सभी को भारत के साथ अटैचमेंट बढ़ानी ही होगी. भारत में उभरती हुई अर्थव्यवस्था , मानव संसाधन के साथ वर्किंग वैल्यू भी दिखता है.
भारत की नीति आर्थिक, राजनीतिक और अन्य क्षेत्रों में भी किसी को धोखा देने वालों में नहीं है. अगर मंशा सही हो तो देश प्रगति की राह पर चलता ही है. चीन आजकल आर्थिक मंदी से जूझ रहा है उसकी छवि विश्व में ढलान पर है. चीन जैसी करनी वैसी भरनी की राह पर है. भारत की सफलता की दर काफी तेज है इसलिए भारत अगले दो दशक तक प्रगति की राह पर ही रहेगा.
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