G News 24 : दिल्ली विश्वविद्यालय में LLB के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर DU में मचा बवाल !

 मनुस्मृति अक्सर चर्चा में रहती है,इसे जानने का करते हैं प्रयास ...

दिल्ली विश्वविद्यालय में LLB के छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर DU में मचा बवाल !

मनुस्मृति एक बार फिर सुर्खियों में है. हालांकि इस बार मनुस्मृति की चर्चा जेएनयू के बजाए दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) में हो रही है. क्योंकि डीयू (DU) प्रशासन ने लॉ फैकिलिटी का वो प्रस्ताव खारिज कर दिया है, जिसमें कानूनी पाठ्यक्रम के तहत मनुस्मृति पढ़ाने की बात कही गई थी. इसे लेकर DU में कई दिनों से बवाल मचा था. दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के एलएलबी छात्रों को 'मनुस्मृति' पढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी के लिए रखे जाने की खबरों के बाद कुलपति योगेश सिंह ने भी दो टूक कह दिया कि सुझाव को खारिज किया जाता है. 

मनुस्मृति पर इसलिए है विवाद !

भारत लोकतांत्रिक देश है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जिसके मन में जो कुछ आता है वो कह देता है. इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अधिकांश मामलों में किसी विषय पर स्वस्थ्य चर्चा करने के बजाए आम लोग हों या खास या फिर वैचारिक संगठन (थिंक टैंक) सभी अपनी-अपनी सुविधा और नफे-नुकसान के हिसाब से मुद्दे उठाते हैं. इसी प्रॉसेस में वो किसी चीज का विरोध करते हैं तो किसी को सर आंखों पर बिठाते हैं. ये बात कहीं और लागू होती हो या ना हो लेकिन मनुस्मृति पर जरूर लागू होती है. वहीं शिक्षण संस्थाओं में जब सेलेक्टिव इंटॉलरेंस का मामला सामने आता है तो बात और भी गंभीर हो जाता है.

इसी वजह से डीयू में मनुस्मृति पढ़ाने के सुझाव को लेकर शिक्षक मोर्चा ने भी फौरन ये फरमान सुना दिया कि छात्रों को कानून या किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति का अध्ययन कराना 'संविधान के खिलाफ' है. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पहले जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी जेएनयू और हैदराबाद यूनिवर्सिटी में भी मनुस्मृति को जलाने और विरोध करने की कई घटनाएं घट चुकी हैं. कुछ समय पहले जेएनयू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने जेंडर इक्वैलिटी को लेकर प्राचीन संस्कृत पाठ मनुस्मृति की आलोचना की थी.

'जन्मना जायते शूद्र:' अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं :मनुस्मृति 

हिंदू धर्म के कई धर्मशास्त्रों में से कई कानूनी ग्रंथों और संविधानों में से एक मनुस्मृति है. इस पाठ को मानव-धर्मशास्त्र या मनु के कानून के रूप में भी जाना जाता है. मनुस्मृति हिंदू धर्म का एक प्राचीन कानूनी पाठ या 'धर्मशास्त्र' है. इसमें आर्यों के समय की सामाजिक व्यवस्था का वर्णन है. यह सदियों से हिंदू कानून का आधार रहा है और आज भी हिंदू धर्म में इसका महत्व बना हुआ है. हालांकि, मनुस्मृति में कुछ विवादास्पद विषय भी शामिल हैं, जैसे जाति व्यवस्था और महिलाओं की स्थिति जैसे विषयों पर अक्सर बहस होती रहती है.

मनुस्मृति को मनु ऋषि द्वारा लिखा गया माना जाता है, जो हिंदू धर्म में मानवजाति के प्रथम पुरुष और भगवान श्री हरि विष्णु का अवतार माने जाते हैं. इस महान ग्रंथ में कुल 12 अध्याय और 2684 श्लोक हैं. हालांकि मनुस्मृति के कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 बताई जाती है. मनुस्मृति का हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव रहा है.

मनु कहते हैं- 'जन्मना जायते शूद्र:' अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं. बाद में योग्यता के आधार पर ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र बनता है. मनु की व्यवस्था के अनुसार कहा जाता है कि अगर ब्राह्मण की संतान यदि अयोग्य है तो वह अपनी योग्यता के अनुसार चतुर्थ श्रेणी या शूद्र बन जाती है.

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था को इस तरह कि एक वर्ग विशेष का दबदबा बना रहे !

कई इतिहासकारों और भारतीय संस्कृति और परंपरा के विरोधियों ने मनुस्मृति का विद्रूप चित्रण किया है. उनका कहना है कि इसी की थीम पर भारत में एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था तैयार की गई जो ये सुनिश्चित करती कि वर्ग विशेष का दबदबा बना रहे. कुछ लोग ही शीर्ष पर रहें. वही सारी संपत्ति के मालिक रहें और सारी शक्ति उनके आधीन हो. उन्होंने मनुष्यों को चार वर्णों में बांट दिया जिन्हें जातियां कहा जाता था. जातियों के आधार पर लोगों को उनके कर्तव्य और दायित्व सौंप दिए गए. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक कैटिगिरी बनीं. 

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इस देश में बहुत समय पहले एक उन्नत सभ्यता और संस्कृति थी, जो 3500 ईसा पूर्व, यहां तक कि 6000 या 8000 ईसा पूर्व तक की थी. उस महान सभ्यता के लोग शांतिप्रिय थे, मुख्यतः कृषि और व्यापार में व्यस्त थे. जिन्हें कुछ बाहरी लोगों ने अपना शिकार बना लिया.

बहुत से लोग मनुस्मृति का विरोध ये कहकर करते हैं कि ये किताब लोगों में भेद करती है. इसी किताब से जातियों का निर्धारण हुआ. इसी हिसाब से पूजापाठ, अध्यन और अध्यापन जैसे कार्य ब्राह्मणों के जिम्मे आए. क्षत्रियों को भूमि और लोगों की सुरक्षा का काम सौंपा गया. वहीं वैश्यों को भूमि जोतकर भोजन पैदा करना था और जानवरों और पेड़-पौधों की देखभाल करनी थी. इन्हीं लोगों को फसल यानी उपज का व्यापार भी करना होता था. वहीं शूद्रों को अन्य सेवा कार्य सौंपे गए.

श्रेष्ठता और कनिष्ठता यानी सर्वण और बहुजन का कॉन्सेप्ट आया. उस समय जो जाति का वर्गीकरण हुआ तब अलग-अलग जातियों में विवाह की अनुमति नहीं थी. न ही वे एक साथ भोजन कर सकते थे. ऐसे कई आरोप लगाकर मनुस्मृति को बिना पूरी तरह से पढ़े बगैर उस ग्रंथ को आग लगाकर फूंक दिया जाता है. 

डिस्क्लेमर: (यहां प्रकाशित की गई जानकारी धार्मिक पुस्तकों आदि एवं अन्य सूत्रों से ली गई है.)

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