'साइकिल' नाम के पीछे भी दिल छू लेने वाली 6 साल के अनाथ की दास्तां ...
₹50 के बिस्कुट खरीदकर बेचने से लेकर ₹7000 करोड़ की कंपनी वाला सफर !
अगर आपमें कुछ कर गुजरे का जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा हल हो जाती है, रास्ते खुद ब खुद बनने लग जाते हैं. 6 साल के एन रंगा राव (N Ranga Rao) पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा था. पिता का साया उठने के बाद घर की जिम्मेदारी उस बच्चे पर आ गई थी, जो खुद अपनी जिम्मेदारी तक नहीं उठा सकता था, लेकिन हिम्मत हारने के बजाए उन्होंने कोशिश जारी रखी और सिर्फ 50 रुपये के निवेश से 7000 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी. ये कहानी है साइकिल अगरबत्ती के फाउंडर
6 साल में हो गया अनाथ
साइकिल प्योर अगरबत्ती, जो आज हर घर की पहचान बन चुका है, उसकी नींव एक ऐसे शख्स ने रखी, जिसके सिर से पिता का साया उस वक्त उठ गया था, जब वो मात्र 6 साल का था. साल 1912 में सामान्य परिवार में जन्मे एन रंगा राव के पिता टीचर थे. जब वो 6 साल के थे कि उनके पिता की मौत हो गई. घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. पढ़ाई में मन लगता था, लेकिन पैसे नहीं थे. उन्होंने हार मानकर पढ़ाई छोड़ने के बजाए नया तरीका निकाला.
बिस्कुल बेचकर कमाई
स्कूल के बाहर की बिस्किट बेचने लगे. स्कूल शुरू होने से पहले गेट के बाहर बिस्किट बेचते थे. शाम को मिठाई के थोक विक्रेता से मिठाई खरीदकर थोड़े से मुनाफे पर उसे गांव और बाजार में बेचा करते थे. जो कमाई होती उससे घर और पढ़ाई का खर्चा उठाते थे.
अखबार पढ़कर की कमाई
कमाई बढ़ाने के लिए वो अपने से कम उम्र के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे. खुद के ट्यूशन के पैसे नहीं थे, इसलिए टीचर से वादा किया वो फीस के बदले उन्हें और बच्चों का दाखिला करवा कर देंगे. गांव के बुजुर्गों को अखबार पढ़ कर भी सुनाते थे, इन सबसे जो थोड़ी-बहुत कमाई होती उससे घर चल जाता. साल 1930 में उनकी शादी सीता से हुई, जिसके बाद वो तमिलनाडु के अरुवंकाडु चले गए.
50 रुपये में शुरू की कंपनी
शादी के बाद उन्हें वहीं एक फैक्ट्री में क्लर्क की नौकरी मिल गई. यहां उन्होंने 1939 से 1944 तक काम किया, लेकिन उनका मन नहीं लग रहा था. साल 1948 में उन्होंने नौकरी छोड़कर अगरबत्ती बनाने का काम शुरू किया और सिर्फ 50 रुपये से अपना कारोबार शुरू किया. अगरबत्ती बनाने के बारे में उन्हें बहुत पता नहीं था, इसलिए उन्होंने घूम घूम कर पहले ज्ञान हासिल किया और फिर छोटे से निवेश से काम शुरू कर दिया. खर्च बचाने के लिए साधारण पैकेजिंग रखी. खुद साइकिल से बाजार में अगरबत्ती बेचने जाते थे.
साइकिल नाम के पीछे किस्सा
उन्होंने अपनी अगरबत्ती का नाम रखा ‘साइकिल’ रखा, क्योंकि उनका मानना था कि ये नाम बहुत ही कॉमन था, जिसे हर कोई समझ सकता था. वो खुद साइकिल से अगरबत्तियों का बंडल बेचने जाते थे इसलिए नाम भी साइकिल रखा. 1 आने में 25 अगरबत्तियों का पैकेट कुछ ही दिनों में लोगों को पसंद आने लगा. कंपनी बढ़ने लगी तो रोजगार लके अवसर पैदा हुए. 1978 के बाद उन्होंने बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार पर रखना शुरू किया. साल 20225-06 में मशीनों से अगरबत्तियां बननी शुरू हो गई.
65 देशों में है कंपनी का कारोबार
अगरबत्ती का कारोबार शुरू होने के बाद साल 2005-06 के बाद उन्होंने एनआर ग्रुप की नींव रखी. उनके सात बेटों ने भी कारोबार में हाथ बंटाना शुरू किया. साल 1978 तक वो कंपनी की कमान संभलाते रहे. 1980 में उनकी मौत के बाद कमान बेटों के हाथ में आ गई.आज कंपनी की कमान रंगा राव के परिवार की तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. आज कंपनी का कारोबार 65 देशों में है. कंपनी का मार्केट वैल्यूएशन 7,000 करोड़ रुपये के पार जा चुका है. अमिताभ बच्चन, रमेश अरविंद और सौरभ गांगुली जैसे सेलेब्स कंपनी का विज्ञापन करते हैं.
0 Comments