भागने की गुंजाइश के चलते सभी टोल प्लाजाओ के फुटेज खंगाले जा रहे हैं...
बाबा को खोजने के लिए अलग से 40 पुलिसकर्मियों की टीम गठित
हाथरस में हादसे के बाद बाबा नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के फरार होने को होकर कॉल डिटेल के आधार पर पुलिस की सूचना से जो जानकारी निकलकर आ रही है उसके मुताबिक मंगलवार को बाबा के पास 2:48 पर आयोजक और मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर का पहली बार कॉल आया और घटना की जानकारी दी गई. 2 मिनट 17 सेकंड बात हुई थी. उसके बाद बाबा की फोन लोकेशन 3 बजे से 4:35 तक मैनपुरी के आश्रम में मिली जिस दौरान तीन अन्य नंबरों पर बाबा ने बात की.
पहला नंबर महेश चंद्र का था जिससे बाबा की 3 मिनट की बात हुई. दूसरा नंबर संजू यादव का था जिससे केवल 40 सेकंड बात हुई है. तीसरा नंबर देव प्रकाश की पत्नी का था जिससे बाबा की बात करीब 11 मिनट 33 सेकंड की हुई. कहा जा रहा है कि आयोजक देव प्रकाश ने पत्नी के फोन से संभवतया बाबा से बात की. इसके अलावा अन्य दो नंबर भी आयोजक समिति के ही हैं. इनमें से महेश चंद्र को भी बाबा का खास बताया जा रहा है. 4:35 के बाद बाबा का फोन ऑफ हो गया और फिर अभी तक फोन उठा नहीं है.
कुल 8 जगहों पर दबिश दी गई थी. इसके साथ ही अब बाबा को खोजने के लिए अलग से 40 पुलिसकर्मियों की टीम गठित की गई है. एक टीम में 8 मेंबर हैं. हरियाणा, दिल्ली भागने की गुंजाइश के चलते टोल प्लाजा से भी फुटेज खंगाले जा रहे हैं.
भोले बाबा के अनुयायी यूपी, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हैं. एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग में उसकी गहरी पैठ है. उसका पुराना सियासी कनेक्शन भी सामने आया है. एटा, मैनपुरी, आगरा, अलीगढ़ जैसे इलाकों में बाबा का इतना क्रेज है कि राजनीतिक दल के नेता उसके साथ मंच शेयर करते रहे हैं. बाबा के कहने पर उसके अनुनायी नेताओं को चुनाव में मदद भी करते रहे हैं. सियासी कद का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो अपने कार्यक्रम में लोकल पुलिस को अंदर आने की इजाज़त नहीं देता था.
8वीं यूपी पुलिस का सिपाही सूरजपाल,बना भोले बाबा उर्फ नारायण साकार विश्व हरि
वर्ष 1997 के दौरान यूपी पुलिस का सिपाही सूरजपाल पुलिस की नौकरी छोड़कर अपने पैतृक गांव बहादुरनगर आता है जो कासगंज जिले की तहसील पटियाली में स्थित है. 1999 से सूरजपाल एक मारुति 800 कार में अपनी पत्नी के साथ आस-पड़ोस के गांव में खुद को बाबा बताकर सत्संग चालू कर देता है और धीरे-धीरे वह सूरजपाल से भोले बाबा कहलाना लगता है. धीरे-धीरे भोले बाबा के अनुयायियों की संख्या बढ़ती जाती है और अब वह बाबा से सीधे नारायण का अवतार बन जाता है. बाबा ने अपने आश्रम के द्वार पर बनवा रखा था एक स्टेच्यू, जिसमें वह गरुड़ पर बैठा है और हाथ में चक्र धारण किए है. कुछ लोगों का मानना था कि उनके आश्रम में काला जादू जैसी तांत्रिक क्रियाएं भी होती थीं.
सूरजपाल से भोले बाबा और भोले बाबा से वह नारायण साकार विश्व हरि बन गया लेकिन वेशभूषा में कोई परिवर्तन नहीं किया. सूट-बूट कोट पैंट पहनकर ही सत्संग करता रहा. वर्ष 2014 तक भोले बाबा ने अपने पैतृक गांव बहादुरनगर के आश्रम में ही सत्संग किया. उसके बाद वह आश्रम को छोड़कर देशभर में अलग अलग स्थानों पर पंडाल लगाकर सत्संग करने लगा. भोले बाबा के सत्संग में लाखों की भीड़ जुटने लगी. जिस इलाके में उसका सत्संग होता वहां की सड़कें जाम हो जाया करती थीं.
2 जुलाई को सिकंदराराऊ में भी कुछ ऐसा ही हुआ. अनगिनत लोगों की भीड़ सत्संग में पहुंच गई. बाबा सत्संग खत्म कर अपनी कार की ओर जा रहा था तभी लोगों की भीड़ उसके चरणों की रज (पैरों की धूल) को उठाने के लिए दौड़ पड़ी. पैरों की धूल उठाने की होड़ में लोग एक के ऊपर एक चढ़ते गए. देखते ही देखते यह होड़ उनके जीवन की आखिरी दौड़ साबित हुई, और इस हादसे में 121 लोगों की जान चली गई.
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