दल-बदलू नेता के लिए पार्टी के प्रति निष्ठा ,विचारधारा,देश हित जैसी बातों के कोई मायने नहीं रहते है !
जब नेता अपना स्व: हित देखता तब उसकी पार्टी व देश के प्रति 'निष्ठा' बदल जाती है !
लोकसभा चुनाव 2024 की तस्वीर साफ हो चुकी है. किसी भी पार्टी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है. बीजेपी भी 239 सीटों पर सिमट गई है. हालांकि एनडीए के पास बहुमत से कहीं ज्यादा 293 का आंकड़ा है, जो 5 साल सरकार चलाने के लिए काफी है. बहुमत का आंकड़ा भले ही एनडीए के पास हो.लेकिन इधर इंडिया गठबंधन भी 232 सीटें जीत चुका है. और उसने भी एनडीए की सहयोगी पार्टियों से संपर्क साधना शुरू कर दिया गया है. जानकारी के मुताबिक, नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन ने डिप्टी पीएम पद ऑफर किया है. ऐसे में नेताओं की निष्ठा बदलने की बातें उठने लगी हैं.
बुधवार को एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों की होनी है बैठक
खुद शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने किसी भी एनडीए के नेता को फोन नहीं मिलाया है. उन्होंने कहा, मैंने सिर्फ सीताराम येचुरी और मल्लिकार्जुन खड़गे से बात की है. पवार भले ही कुछ भी कहें लेकिन इंडिया गठबंधन इस फिराक में जरूर होगा कि वह मैजिक नंबर हासिल कर ले. ताकि उसकी सरकार बन जाए. लेकिन यह तो तभी मुमकिन है जब टीडीपी या जेडीयू के चुने हुए सांसद एनडीए छोड़कर उसका हाथ थाम लें. लेकिन उसमें एक पेच है.
एनडीए में कौन कितनी सीटें जीता
एनडीए में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा 16 सीटें आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम पार्टी को मिली हैं. इसके बाद नीतीश कुमार की जेडीयू के 12 नेता जीते हैं. वहीं शिवसेना से 6, एलजेपीआरबी को 5 सीटें मिली हैं. अन्य छोटे दलों को भी 1-1 सीट मिली है. अगर टीडीपी या जेडीयू के सांसद एनडीए का साथ छोड़कर जाते हैं तो दल बदल कानून लागू होगा. उस स्थिति में क्या होगा, चलिए समझते हैं.
भारत में दल-बदल का पुराना इतिहास है
भारतीय राजनीति के इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो आपको दल-बदल के कितने ही उदाहरण मिल जाएंगे. इस कारण से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है. उस वक्त सरकारें प्रशासन पर ध्यान देने की बजाय नेताओं को जाने से रोकने पर ध्यान देती हैं. इसी कारण से 'आया राम गया राम' का नारा भारतीय राजनीति में काफी फेमस हुआ था.
अकसर आपने देखा होगा कि चुनाव जीतने के बाद कई पार्टी विधायक पाला बदलकर दूसरी पार्टी का हाथ थाम लेते हैं, जिससे पुरानी सरकार गिर जाती है. उस वक्त ना तो पार्टी की विचारधारा मायने रखती है ना ही निष्ठा. तब नेता सिर्फ अपना भविष्य देखते हैं. इसी को दल-बदल कहा जाता है.
क्या कहता है दल-बदल कानून !
साल 1985 में संविधान में 52वां संशोधन किया गया और देश में दल-बदल कानून लागू हो गया. इसके तहत विभिन्न कारणों के तहत जनता के चुने जनप्रतिनिधि को अयोग्य ठहराया जा सकता है. यानी अगर कोई चुना हुआ सदस्य अपनी मर्जी से राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है, या फिर किसी अन्य दल में शामिल हो जाता है. अगर सदन में कोई सदस्य पार्टी के पक्ष के खिलाफ जाकर वोट देता है. अगर कोई निर्वाचित निर्दलीय किसी पॉलिटिकल पार्टी को जॉइन कर लेता है. या खुद को वोटिंग से अलग रखता है. तब यह कानून लागू होता है.
ऐसे में कानून के तहत, सदन के अध्यक्ष के पास यह अधिकार होता है कि वह इन सदस्यों को अयोग्य ठहरा सकता है. कोई भी दल अध्यक्ष के पास जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है.लेकिन इस कानून में यह भी प्रावधान है कि अगर कोई राजनीतिक दल ने दूसरे दल में विलय किया हो तब अयोग्य नहीं माना जाएगा. इसके लिए दोनों उस राजनीतिक पार्टी के दो-तिहाई विधायकों की विलय पर सहमति जरूरी होनी चाहिए.
0 Comments