ओडिशा हाई कोर्ट ने छह साल की बच्ची से बलात्कार और फिर उसकी हत्या के दोषी को दी राहत ?
पांच वक्त का नमाजी होने पर हाई कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदला !
देश की न्याय व्यवस्था किस दिशा में जा रही है, इसका अंदाज़ा जिम्मेदारों को नहीं है शायद ! अभी हाल ही में आये कुछ फैसलों से तो यही लगता है। न्याय की कुर्सी पर बैठे फैसला सुनाने वाले ये भूल जाते हैं की उनका सुनाया गया फैसला किसी की जिंदगी को कितना प्रभावित करेगा। अभी हाल ही में राउज एवन्यु कोर्ट दिल्ली की एक जज महोदया ने शराब घोटाला केस में ईडी द्वारा केस में सबूत के तौर पर प्रस्तुत दस्तावेजों को देखे वगैर ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत दे दी थी। हालाँकि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर तुरंत रोक भी लगा दी।
और अब ओडिशा हाई कोर्ट ने ऐसे अपराधी को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है. जो एक छह साल की मासूम बच्ची से बलात्कार और हत्या का दोषी है। लगातार आने वाले ऐसे फैसले लोगों की अदालतों एवं न्याय के प्रति आस्था-विश्वास पर प्रशन खड़ा करते हैं।
क्या किसी अपराधी की सजा इस आधार पर कम की जा सकती है कि वह दिन में कई बार नमाज पढ़ता है ? वह भी तब जब वह छह साल की मासूम बच्ची से बलात्कार और हत्या का दोषी हो ? यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि ओडिशा हाई कोर्ट ने ऐसे अपराधी को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है. ऐसे निर्णय देने वाले न्यायधीशों के बारे में बार काउंसिल और शीर्ष अदालतों को मंथन करना चाहिए कि वे उनके जज इस न्याय व्यवस्था के लिए कितने फिट बैठते है।
HC ने फैसले में मामले को इस आधार पर 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' नहीं माना कि 'वह (दोषी) दिन में कई बार भगवान से प्रार्थना करता है और वह सजा कबूल करने के लिए तैयार है, क्योंकि उसने खुदा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है'. केवल 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामलों में ही मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है.
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