अब नहीं चलेगा पुलिस का कोई बहाना नहीं मतलब उपर बात करनी है बगैरा....
महिलाएं,बुजुर्ग और 15 वर्ष तक के टीन 1 जुलाई से करवा सकेंगे ऑन लाइन FIR !
भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था. इन विधेयकों के परीक्षण के दौरान समिति ने 12 बैठकें कीं. समिति ने 10 नवंबर 2023 को तीनों विधेयकों पर अपनी सिफारिशें दी थीं. संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद इन विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया और 25 दिसंबर 2023 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया.
1 जुलाई से तीन नए क्रिमिनल कानून लागू होंगे
नए आपराधिक कानून- भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, 1 जुलाई 2024 से लागू होंगे. इन विधेयकों को वर्ष 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था. इन विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दी और 25 दिसंबर 2023 को इन्हें भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया. केन्द्र सरकार ने इन तीनों कानूनों के प्रावधानों के लागू होने की तिथि एक जुलाई 2024 निर्धारित की है.
गृह मंत्रालय ने 25 दिसंबर 2023 को तीनों नए आपराधिक कानूनों की अधिसूचना के तुरंत बाद पुलिस कर्मियों, जेल कर्मियों, अभियोजकों, न्यायिक अधिकारियों, फॉरेंसिक कर्मियों के साथ-साथ आम जनता सहित सभी पक्षों के बीच विभिन्न पहल शुरू की है, ताकि तीनों नए कानूनों के बारे में व्यापक जागरूकता फैले और इन कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके.
कानून के जानकारों एवं मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नए आपराधिक कानून भारतीय नागरिकों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इन कानूनों का उद्देश्य सभी के लिए अधिक सुलभ, सहायक और प्रभावी न्याय प्रणाली बनाना है. नए आपराधिक कानूनों के प्रमुख प्रावधान ये हैं.
नए क्रिमिनल लॉ में महिलाओं के लिए क्या बदलेगा !
- तीन क्रिमिनल कानून 1 जुलाई से लागू हो रहे हैं ,तीन नए कानूनों में विधि आयोग ने सख्त प्रावधानों की सिफारिश की है
- विधि आयोग की सिफारिश, सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के बाद ही मिले आरोपी को जमानत
(1) घटनाओं की ऑनलाइन रिपोर्ट करना
अब कोई व्यक्ति संचार के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से घटनाओं की रिपोर्ट कर सकता है, इसके लिए उसे पुलिस स्टेशन जाने की जरूरत नहीं है. इससे रिपोर्टिंग आसान और त्वरित होगी, जिससे पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई सुगम होगी. (BNS की धारा 173)
(2) किसी भी पुलिस स्टेशन पर FIR दर्ज करना
जीरो FIR शुरू होने से कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन पर प्राथमिकी (FIR) दर्ज करा सकता है, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो. इससे कानूनी कार्यवाहियां शुरू करने में होने वाली देरी खत्म होगी और अपराध की तुरंत रिपोर्ट करना सुनिश्चित होगा. (BNS की धारा 173)
(3) FIR की निःशुल्क प्रति
पीड़ितों को FIR की निःशुल्क प्रति प्राप्त होगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी. (BNS की धारा 173)
(4) गिरफ़्तारी होने पर सूचना देने का अधिकार
गिरफ़्तारी की स्थिति में, व्यक्ति को उनकी इच्छा के व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है. इससे गिरफ़्तार व्यक्ति को तत्काल सहायता और सहयोग सुनिश्चित होगा. (BNS की धारा 36)
(5) गिरफ्तारी की जानकारी प्रदर्शित करना
गिरफ्तारी का विवरण अब पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्रों को महत्वपूर्ण जानकारी आसानी से मिल सकेगी. (BNS की धारा 37)
(6) फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी
केस और जांच को मजबूत करने के लिए फॉरेंसिक विशेषज्ञों का गंभीर अपराधों में अपराध स्थलों का दौरा करना और सबूत एकत्र करना अनिवार्य हो गया है. इसके अतिरिक्त सबूतों से छेड़छाड़ रोकने के लिए अपराध स्थल पर साक्ष्य संग्रह की प्रक्रिया की अनिवार्य रूप से वीडियोग्राफी की जाएगी. इस द्विआयामी नीति से जांच की गुणवत्ता और विश्वसनीयता काफी बढ़ जाएगी और निष्पक्ष रूप से न्याय दिलाने में योगदान मिलेगा. (BNS की धारा 176)
(7) त्वरित जांच
नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों की जांच को प्राथमिकता दी गई है, ताकि सूचना दर्ज होने के 2 महीने के भीतर जांच पूरी हो सके. (BNS की धारा क्ष193)
(8) पीड़ितों को केस की प्रगति का अपडेट देना
पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर अपने केस की प्रगति के बारे में नियमित अपडेट प्राप्त करने का अधिकार है. इस प्रावधान से पीड़ितों को सूचित रखा जा सकेगा और वे कानूनी प्रक्रिया में शामिल रहेंगे, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी और विश्वास बढ़ेगा. (BNS की धारा 193)
(9) पीड़ितों के लिए निःशुल्क चिकित्सा उपचार
नए कानून महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में निःशुल्क प्राथमिक उपचार या चिकित्सा उपचार की गारंटी देते हैं. यह प्रावधान चुनौतीपूर्ण समय में पीड़ितों की कुशलता और स्वास्थ्य लाभ को प्राथमिकता देते हुए आवश्यक चिकित्सा देखभाल तक तत्काल पहुंच सुनिश्चित करता है. (BNS की धारा 397)
(10) इलेक्ट्रॉनिक समन
अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से समन की तामील की जा सकती है, जिससे कानूनी प्रक्रियाओं में तेजी आएगी, कागजी कार्रवाई कम होगी और सभी संबंधित पक्षों के बीच समुचित संवाद सुनिश्चित होगा. (BNS की धारा 64, 70, 71)
(11) महिला मजिस्ट्रेट द्वारा बयान
महिलाओं के विरुद्ध कुछ अपराधों में पीड़िता के बयान, जहां तक संभव हो, महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए और अगर महिला मजिस्ट्रेट अनुपस्थित हों तो महिला की उपस्थिति में पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए, ताकि संवेदनशीलता और निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके तथा पीड़ितों के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके. (BNS की धारा 183)
(12) पुलिस रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराना
आरोपी और पीड़ित दोनों को 14 दिनों के भीतर FIR, पुलिस रिपोर्ट/चार्जशीट, बयान, स्वीकारोक्ति और अन्य दस्तावेजों की प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार है. (BNS की धारा 230)
(13) सीमित स्थगन
मामले की सुनवाई में अनावश्यक देरी से बचने के लिए न्यायालय अधिकतम दो स्टे प्रदान कर सकते हैं, जिससे समय पर न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. (BNS की धारा 346)
(14) गवाह सुरक्षा योजना
नए कानूनों में सभी राज्य सरकारों के लिए गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने, कानूनी कार्यवाही की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए गवाह सुरक्षा योजना को अनिवार्य किया गया है. (BNS की धारा 398)
(15) जेंडर समावेश
जेंडर की परिभाषा में अब ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जो समावेश और समानता को बढ़ावा देगा. (BNS की धारा 2(10))
(16) इलेक्ट्रॉनिक मोड में होंगी कार्यवाही
नए कानूनों में सभी कानूनी कार्यवाहियां इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित करके, पीड़ितों, गवाहों और अभियुक्तों को सुविधा प्रदान की गई है, जिससे पूरी कानूनी प्रक्रिया सुव्यवस्थित और त्वरित होगी. (BNS की धारा 530)
(17) बयानों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग
पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लाने के लिए पुलिस पीड़िता का बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से रिकॉर्ड करेगी. (BNS की धारा 176)
(18) पुलिस स्टेशन जाने से छूट
महिलाओं, 15 वर्ष से कम आयु के किशोर, 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों तथा विकलांग या गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन जाने से छूट दी गई है, वे अपने निवास स्थान पर पुलिस सहायता प्राप्त कर सकते हैं. (BNS की धारा 179)
(19) महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध
महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों पर कार्रवाई करने, उनकी सुरक्षा और उनके लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए BNS में एक नया अध्याय जोड़ा गया है. (BNS का अध्याय V)
(20) जेंडर-न्यूट्रल अपराध
महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध विभिन्न अपराधों को BNS में जेंडर-न्यूट्रल बना दिया गया है, जिसमें जेंडर का ध्यान रखे बिना सभी पीड़ितों और अपराधियों को शामिल किया गया है.
(21) सामुदायिक सेवा
नए कानून में छोटे-मोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई है, जिससे व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलता है. सामुदायिक सेवा के तहत अपराधियों को समाज में सकारात्मक योगदान देने, अपनी गलतियों से सीखने और मजबूत सामुदायिक बंधन बनाने का मौका मिलता है. (BNS की धारा 4, 202, 209, 226, 303, 355, 356)
(22) अपराधों के लिए जुर्माना अपराध की गंभीरता के अनुरूप
नए कानूनों के तहत कुछ अपराधों के लिए लगाए गए जुर्माने को अपराध की गंभीरता के अनुरूप बनाया गया है, ताकि निष्पक्ष और आनुपातिक दंड सुनिश्चित हो सके, भविष्य में अपराध करने से रोका जा सके तथा कानूनी प्रणाली में जनता का विश्वास बना रहे.
(23) सरल कानूनी प्रक्रियाएं
कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है, ताकि उन्हें समझना और उनका पालन करना आसान हो सके, निष्पक्ष और सुलभ न्याय सुनिश्चित हो सके.
पुराने कानूनों की समीक्षा की गई
सुलभ और किफायती न्याय प्रदान करने और नागरिक केन्द्रित कानूनी ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से गृह मंत्रालय ने आपराधिक कानूनों अर्थात भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की व्यापक समीक्षा की थी. इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश, सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, बार काउंसिलों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों/प्रशासकों, सभी संसद सदस्यों (लोकसभा और राज्यसभा) और विधि विश्वविद्यालयों/संस्थानों से सुझाव आमंत्रित किए गए थे. आपराधिक कानूनों में सुधार के परीक्षण और सुझाव देने के लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की गई थी.
समिति ने आम जनता सहित विभिन्न वर्गों से भी सुझाव आमंत्रित किए थे. प्राप्त इनपुट/सुझावों के आधार पर तीन विधेयक- भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को 11 अगस्त 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था. इन विधेयकों के परीक्षण और फिर रिपोर्ट देने के लिए इन्हें विभाग से संबंधित गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया. संसद की स्थायी समिति ने विधेयकों के विभिन्न प्रावधानों पर व्यापक विचार-विमर्श किया. समिति ने विषय विशेषज्ञों, उच्च न्यायालयों, अनुसंधान केंद्रों, शिक्षाविदों, वकीलों, सिविल सोसाइटी, विधि विश्वविद्यालयों आदि के सुझाव प्राप्त किए और उन पर विचार किया
इन विधेयकों के परीक्षण के दौरान समिति ने 12 बैठकें कीं. समिति ने 10 नवंबर 2023 को तीनों विधेयकों पर अपनी सिफारिशें दी थीं. समिति की अधिकांश सिफारिशें सरकार द्वारा स्वीकार कर ली गईं. वर्ष 2023 में संसद द्वारा शीतकालीन सत्र में विधेयकों पर विचार किया गया. विधेयकों पर चर्चा में लोकसभा से कुल 37 सांसदों और राज्यसभा से 40 सांसदों ने भाग लिया. संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद इन विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया और 25 दिसंबर 2023 को भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया. केंद्र सरकार ने 1 जुलाई 2024 को इन तीनों कानूनों के प्रावधान लागू होने की तिथि निर्धारित की है.
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