G News 24 : फर्मों का रजिस्ट्रेशन तक नहीं फिर भी कर दिया पांच करोड़ रुपये का भुगतान !

 रिश्तेदारों के नाम फर्म चलाने वाले निगम कर्मियों के खिलाफ होगी कार्रवाई...

फर्मों का रजिस्ट्रेशन तक नहीं फिर भी कर दिया पांच करोड़ रुपये का भुगतान !

इंदौर। नगर निगम में फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये के भुगतान के मामले में रोजाना नई-नई जानकारियां सामने आ रही हैं। जांच के दौरान तीन नई फर्मों के नाम सामने आए हैं। इन्हें भी सीवरेज के काम के नाम पर करोड़ों रुपये के भुगतान की आशंका है। तीनों ही फर्मों का बैंक ट्रांजेक्शन नहीं मिल सका है। यह भी पता चला है कि निगम के खाते से सीवरेज लाइन डालने के नाम पर आरएस इंफ्रास्ट्रक्चर नामक जिस फर्म को पांच करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है उसका रजिस्ट्रेशन तक नहीं है। बगैर रजिस्ट्रेशन ही जिम्मेदारों ने आंख मूंदकर पांच करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। अब तक हुई जांच में यह बात भी सामने आई है कि कम से कम आधा दर्जन निगम कर्मचारी-अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने अपने करीबी रिश्तेदारों के नाम पर फर्में बनाकर निगम को करोड़ों रुपये का चूना लगाया है।

अब ऐसे कर्मचारियों-अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी चल रही है। इधर बुधवार को कांग्रेस ने निगम के इस फर्जीवाड़े की जांच सीबीआइ से कराने की मांग करते हुए राष्ट्रपति के नाम संभागायुक्त को ज्ञापन सौंपा। इसमें आशंका जताई है कि ऐसा ही फर्जीवाड़ा निगम के अन्य विभागों में भी चल रहा है। निगम फर्जीवाड़े में पहली एफआईआर 16 अप्रैल को एमजी रोड पुलिस थाने में दर्ज हुई थी। इसके बाद से अब तक छह एफआईआर दर्ज हो चुकी है। मामले में पुलिस जांच के साथ-साथ निगमायुक्त ने भी एक टीम बनाकर जांच शुरू करवाई थी। मामले में अब तक 350 से ज्यादा फाइलें मिल चुकी हैं। इन सभी में फर्जी बिलों के जरिए भुगतान की आशंका है।

नगर निगम बगैर काम ही 140 करोड़ रुपये से ज्यादा का भुगतान इन फर्जी बिलों के लिए कर चुका है। हाल ही में नगर निगम के लेखा विभाग ने 75 फाइलें ड्रेनेज विभाग को जांच के लिए सौंपी हैं। इधर सुरभि, समर्पण और स्वामी नामक तीन नई फर्मों के नाम सामने आए हैं। इन तीनों का कोई बैंक ट्रांजेक्शन नहीं मिला है। इसके अलावा आरएस इंफ्रास्ट्रक्चर नामक एक फर्म मिली है जिसका रजिस्ट्रेशन नहीं है, बावजूद इसके निगम ने वर्ष 2021-22 में इसे सीवरेज लाइन बिछाने के नाम पर पांच करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया, जबकि काम हुआ ही नहीं था। टीम इस फर्म के संचालक के बारे में जानकारी जुटा रही है।

घर पर फाइलें होती थीं तैयार, सीधे लेखा विभाग में लगाते थे

इधर आरोपितों से यह जानकारी भी मिली है कि सभी फर्जी बिल की फाइलें घर पर तैयार की जाती थी। निगम के अधिकारी कर्मचारियों को पूरी प्रक्रिया की जानकारी होने की वजह से आरोपित उनसे संपर्क में रहते थे। फर्जीवाड़े में उनका एक निश्चित प्रतिशत होता था। आरोपित जानकारों की निगरानी में फाइलें तैयार कर सीधे लेखा विभाग में प्रस्तुत कर देते थे। इसके फाइल पर आवक नंबर भी दर्ज किया जाता था। चूंकि फाइलें जानकारों की निगरानी में तैयार होती थी इसलिए उनका फर्जीवाड़ा पकड़ पाना आसान नहीं था। बाद में लेखा विभाग के कर्मचारियों के साथ मिलकर इनका भुगतान फर्मों के खाते में पहुंच जाता था। फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए आरोपित बकायदा फर्जी दस्तावेज तैयार करते थे। टेंडर, कार्यादेश, नोटशीट भी फर्जी तैयार की जाती थी।

हस्ताक्षर की जांच रिपोर्ट कर सकती है नए खुलासे

एमजी रोड पुलिस द्वारा जब्त फाइलों में जिन अधिकारियों के हस्ताक्षर मिले थे उन अधिकारियों का कहना है कि हस्ताक्षर उनके हैं ही नहीं। किसी ने उनके फर्जी साइन किए हैं। इसके बाद अधिकारियों के हस्ताक्षर का नमूना लेकर जांच के लिए भेजा गया था। इसकी रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद फर्जीवाड़े में नए खुलासे होने की संभावना है।

जोन कार्यालयों पर नहीं मिल रही फाइलें

इधर पुलिस ने नगर निगम से फर्जीवाड़े की आशंका में 40 फाइलें मांगी हैं। निगम मुख्यालय ने संबंधित जोन कार्यालयों से इन फाइलों को बुलाने के लिए कह दिया है। बताया जा रहा है कि कई जोन कार्यालयों में ये फाइलें मिल ही नहीं रहीं। इससे इस बात की आशंका भी हो गई है कि फर्जीवाड़े का आंकड़ा वर्तमान में 140 करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा जा सकता है।

सीबीआई जांच की मांग

इधर कांग्रेस ने नगर निगम फर्जीवाड़े की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। कांग्रेस नेता देवेंद्रसिंह यादव के नेतृत्व में कांग्रेसियों ने इस संबंध में राष्ट्रपति के नाम संभागायुक्त को ज्ञापन भी सौंपा। इसमें कहा कि दो दशक ज्यादा समय से निगम में भाजपा की परिषद है। इस बात की आशंका भी है कि सिर्फ ड्रेनेज ही नहीं नगर निगम के अन्य विभागों में भी ऐसा ही फर्जीवाड़ा हुआ हो। वर्तमान में इस मामले की जांच पुलिस और निगम की आंतरिक कमेटी कर रही है। इसकी जांच अगर केंद्रीय एजेंसी से करवाई जाए तो कई खुलासे हो सकते हैं।

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