जब खुद गड्ढे में डूबे हो, तो दूसरो को कैसे निकालो...
राजनेता खुद ही कर्जे में डूबा हो, तो भला वो जनता की गरीबी दूर कर पायेगा !
मुरैना। बहुत पुरानी कहावत है, जब खुद गड्ढे में डूबे हो, तो दूसरो को कैसे निकालो। यह कहावत मुरैना की राजनीति में सौ-प्रतिशत सच साबित होती दिखाई दे रही है। मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट्स ने नामांकन पत्र दाखिल करते समय अपनी चल-अचल संपत्ति का जो ब्यौरा दिया है, उसमे बीएसपी कैंडिडेट सबसे धनी होने के बावजूद भी साढ़े तीन अरब के कर्जदार है। यह कर्जा उनकी कुल संपत्ति से करीब 20-25 गुना अधिक है। वहीं भाजपा प्रत्याशी पर भी साढ़े 33 लाख का कर्जा है। जो राजनेता खुद ही कर्जे में डूबा हो, वो भला जनता की गरीबी कैसे दूर करेंगे। यह सवाल जनता के मन मे उफान मार रहा है।
जानकारी के अनुसार मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे भाजपा-कांग्रेस व बसपा तीनो ही बड़ी पार्टियों के प्रत्याशियों ने शुभ मुहूर्त में अपने-अपने नामांकन फार्म दाखिल कर दिए है। नामांकन फार्म के साथ उन्होंने अपनी चल-अचल संपत्तियों का जो ब्यौरा प्रस्तुत किया है, वह बड़ा ही रोचक है। कांग्रेस प्रत्याशी नीटू उर्फ सत्यपाल सिंह सिंकरवार ने अपनी संपत्ति का खुलासा करते हुए बताया है कि, उनके पास 5 लाख नगदी के अलावा डेढ़ लाख बैंक वैलेंस है। इसके साथ ही उनकी पत्नी के पास 28 लाख के सोने के है। उन पर किसी वैंक का कोई लेनदेन नहीं है।
इसी प्रकार भाजपा प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर ने पौने पांच लाख नगदी तथा पौने दो लाख रुपये का वैंक बैलेंस बताया है। उन्होंने मकान व खेती के लिए करीब साढ़े 33 लाख रुपये बैंक से कर्जा भी लिया हुआ है। उधर बीएसपी प्रत्याशी व केएस ऑयल मिल ग्रुप के चेयरमेन रमेश गर्ग साढ़े 14 करोड़ के मालिक होते हुए भी करीब साढ़े तीन अरब के कर्जदार है। तीनो ही प्रत्याशियों के बैंक ब्यौरे हैरान करने वाले है। चूंकि बीएसपी कैंडिडेट का प्रमुख चुनावी एजेंडा ही जिले से बेरोजगारी दूर करना है, ऐसे में वे इतने बड़े कर्जदार होते हुए, कैसे अपने चुनावी एजेंडे को भुनाएंगे।
इधर बीजेपी व कांग्रेस कैंडिडेट की बात की जाए तो इनका संपत्ति ब्यौरा भी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लग रहा है। उन्होंने अपने शपथ पत्र में 5-5 लाख नगदी के अलावा 2-2 लाख रुपये बैंक बैलेंस बताया है। जबकि दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशी काफी धनाढ्य परिवार से बिलोंग करते है। नगदी व बैंक बैलेंस के हिसाब से आंकलन किया जाए तो वे इतनी छोटी पूंजी के साथ लोकसभा चुनाव को कैसे मैनेज करेंगे। यह बात हर किसी की समझ से परे है। ऐसे के शहर के एक ही चर्चा जोर पकड़ रही है, साढ़े तीन अरब के कर्जदार लोगों की गरीबी दूर कैसे करेंगे? क्या दोनों ही बड़ी पार्टियों के प्रत्याशी छोटी पूंजी के सहारे चुनावी रण जीत पाएंगे?
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