अन्न देवो भव संकल्प अभियान...
"उतना ही लो थाली में,व्यर्थ न जाए नाली में"
भारत सहित पूरे विश्व में हमारे ही करोड़ों बंधु भगिनी बच्चे परिपूर्ण भोजन के अभाव में भयंकर कुपोषण से त्रस्त हैं। उन्हें एक समय का भोजन भी ठीक से नहीं मिल पाता है। ऐसी स्थिति में जहां हमारी सनातन संस्कृति हमें अन्न देवो भव का पाठ पढ़ाती है वहां हम समाज के प्रति उत्तरदायित्व हीन होकर भोजन व्यर्थ फेंककर अन्न देवता के अपमान के भागीदार क्यों बन रहे हैं ।
समाज और मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निर्वहन करते हुए स्वयं और पूरे परिबार को अन्न देवो भव अभियान में जुड़कर थाली में अन्न का एक कण भी व्यर्थ न छोड़ने का संकल्प लेकर संस्कृति संम्वर्धन के इस दिव्य अभियान में सहभागिता कीजिए।
जब आप अपने खुद के पैसों से पानीपुरी तक खाते हो, तो प्लेट के पानी की आखरी बूंद भी पी जाते हो,मूँगफली खाने के बाद छिलके मे आखरी दाना तक ढूढ़ते हैं। तो फ़िर किसी के विवाह में भोजन करते हैं, तो अन्न जूठा क्यों छोड़ते हैं ? तब क्या हम मां अन्नपूर्णा का अनादर नहीं कर रहे हैं ?
एक पिता अपनी बेटी की शादी में अपने जीवन भर की पूंजी लगाकर आपके लिये अच्छे व स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था करता है। इस तरह भोजन को बर्बाद करके एक पिता के मेहनत की पूँजी का अपमान ना करें।
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