बॉन्ड पर बवाल मचने से, नेता चुनाव पैसा नहीं खर्च कर रहे हैं,चुनाव ठंडा है,कोई रौनक ही नहीं..
देश का हित चाहनेवालों को पता है कि देश सुरक्षित है आगे भी मोदी सब संभाल लेगा
चुनावों में गर्मी पैसे से आती है और पैसा नेता एजेंसियों के डर से निकाल नहीं रहे हैं। चुनाव में अधिकतर नेता चुनाव इसीलिए नहीं लड़ रहे कि पैसा नहीं है,ऐसा बिल्कुल नहीं है पैसे की कोई कमी नहीं है लेकिन ये पैसा कहीं एजेंसीज की नज़र में ना आ जाये जो कि दो नंबर का है इसलिए उसे निकालकर खर्च नहीं कर रहे हैं इसीलिये चुनाव कहीं कोई रौनक ही नहीं है। वैसे भी मोदी जी ने कहा भी था कि बॉन्ड पर बवाल मचाने वाले ही सबसे ज्यादा रोयेंगे...
.उदाहरण के लिए सपा की हालत देख लो एक दौर था जब कन्नौज के चुनाव में नेताजी के एक इशारे पर 100 fortuner आ गई थी नोटों से भरी हुई और एक आज का दौर है कि ज़ब टीपू पर कोई 10 रूपल्ली लगाने को तैयार नहीं। बिजनेसमैन किसी के सगे नहीं होते वे तो जीतने वाले घोड़े पर ही पैसा लगाते हैं और इंडी वाले तो वैसे भी सारे लंगड़े घोड़े हैं।
दूसरी बात इंडी वालों का दुर्भाग्य ये है कि उनके पास निस्वार्थ भाव से सपोर्ट करने वालों की भयानक किल्लत है ! जबकि भाजपा के पास भर भर के ऐसे वोटर्स हैं। देश का हित चाहनेवाले सरकार से अपने लिए कोई अपेक्षा रखे बिना बस इस बात से मतलब रखते है कि देश सुरक्षित हाथों में रहे और इस समय उन्हें पता है कि मोदी सब संभाल लेगा। संभवत: वही भाजपा की कमाई है और इसीलिए भाजपा को जिताते भी हैं...
महंगाई का मुद्दा पब्लिक ने ठुकरा दिया क्योंकि उसने कांग्रेस का राज भी देखा है,समझदार वोटर्स का कहना है कि फूफाओं के कुतर्कों को लात मारो... वो ससुरे रोते ही रहेंगे... उनके अपने पर्सनल मसले हो सकते हैं... कांग्रेस के जमाने के मुकाबले कहीं नहीं टिकती आज की महंगाई... प्राइस कंपरिजन से महंगाई की तुलना नहीं होती... प्राइस डबल हो गई... ये बोलेंगे पर तनख्वाह तीन चार गुना हो गई ये नहीं बताते !
बेरोजगारी का मुद्दा इसलिए फुस्स है क्योंकि बेरोजगारी केवल उनके लिए ही है जिन्हें सरकारी नौकरी चाहिए। प्राइवेट में बेहिसाब नौकरियां हैं लेकिन अगर आपमें हुनर नहीं है तो फिर रोजगार कैसे मिलेगा। ये तो skilled लोगों के लिए है,मेहनती लोगों के लिए है, कंपनियों को काम के लिए ढंग आदमी नहीं मिल रहे और ये ये अपनी राजनीति चमकाने या नेताओं की खटपुतली बनकर बेरोजगारी का रोना रोयेंगे तो कौन विश्वास करेगा। ऐसे लोगों के लिए हमेशा से बेरोजगारी थी और हमेशा रहेगी।
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