नागरिकता को प्रभावित करने वाला कोई प्रावधान नहीं...
देशभर में लागू हुआ नागरिकता संशोधन कानून "CAA"
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार (11 मार्च) को नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act 2019) यानी CAA का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. अब ये कानून देशभर में लागू हो गया है. CAA से पाकिस्तान, बांग्लादेश अफगानिस्तान से आए गैर- मुस्लिम शरणार्थियों (रिफ्यूज़ी) को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. संसद ने CAA पर 11 दिसंबर 2019 को मुहर लगाई थी. करीब 4 साल बाद ये लागू हुआ.
2016 में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 (CAA) पेश किया गया था. इसमें 1955 के कानून में कुछ बदलाव किया जाना था. ये बदलाव थे, भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देना. 1955 के कानून में बदलाव के बाद 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा गया. कमेटी ने 7 जनवरी 2019 को रिपोर्ट सौंपी थी. इसके बाद इस रिपोर्ट पर विचार हुआ. फिर जरूरी संशोधन के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने इस बिल को 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पेश किया. 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (CAB) के पक्ष में 125 और खिलाफ में 99 वोट पड़े थे. 12 दिसंबर 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई. लेकिन भारी विरोध के बीच इसे तब लागू नहीं किया जा सका.
CAA को देश में NRC यानी नेशनल सिटीजनशिप रजिस्टर बनने के जरिए के तौर पर देखा गया. लोगों को आशंका थी कि विदेशी घुसपैठिया बताकर बड़ी संख्या में लोगों को निकाल बाहर किया जाएगा. पड़ोसी देश बांग्लादेश में आशंका व्यक्त की गई कि CAA के बाद NRC लागू होने से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी उसके यहां लौट आएंगे. CAA से भारतीय मुसलमानों को किसी तरह की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इस कानून में उनकी नागरिकता को प्रभावित करने वाला कोई प्रावधान नहीं है. नागरिकता कानून का वर्तमान में 18 करोड़ भारतीय मुसलमानों (जिनके पास अपने समकक्ष हिंदू भारतीय नागरिकों के समान अधिकार हैं) से कोई लेना-देना नहीं है. इस कानून के बाद किसी भी भारतीय नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश करने के लिए नहीं कहा जाएगा.
भारत ने अवैध मुस्लिम प्रवासियों को वापस भेजने को लेकर बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्ता के साथ कोई समझौता नहीं किया है. यह नागरिकता अधिनियम अवैध अप्रवासियों के निर्वासन से संबंधित नहीं है. इसीलिए मुसलमानों और छात्रों सहित लोगों के एक वर्ग की चिंता अनुचित है. नागरिकता अधिनियम, 1955 की तरह CAA कानून अवैध प्रवासी को एक विदेशी के रूप में परिभाषित करता है, जिसने वैध दस्तावेजों के बिना भारत में एंट्री की है. उन तीन मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के कारण पूरी दुनिया में इस्लाम की छवि बुरी तरह खराब हुई है.
हालांकि, इस्लाम एक शांतिपूर्ण धर्म होने के नाते, कभी भी धार्मिक आधार पर घृणा/हिंसा/उत्पीड़न को बढ़ावा नहीं देता है. अत्याचार के प्रति संवेदना और क्षतिपूर्ति दर्शाने वाला यह कानून अत्याचार के नाम पर इस्लाम की छवि खराब होने से बचाता है. नागरिकता अधिनियम की धारा 6 (जो प्राकृतिक आधार पर नागरिकता से संबंधित है) के तहत दुनिया में कहीं से भी मुसलमानों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने पर कोई रोक नहीं है. उन तीन देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति दर्शाने के लिए यह अधिनियम, भारत की प्रचलित उदार संस्कृति के अनुसार उनके सुखी और समृद्ध भविष्य के लिए उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का अवसर देता है.
नागरिकता प्रणाली में ज़रूरत के अनुसार बदलाव लाने और अवैध प्रवासियों को नियंत्रित करने के लिए इस अधिनियम की जरूरत थी. CAA प्राकृतिक आधार पर कानूनों को रद्द नहीं करता है. इसीलिए किसी भी अन्य देश से आए मुस्लिम प्रवासियों सहित कोई भी व्यक्ति, जो भारतीय नागरिक बनना चाहता है, मौजूदा कानूनों के तहत इसके लिए आवेदन कर सकता है. यह अधिनियम किसी भी मुस्लिम को मौजूदा कानूनों के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है, जिसे इस्लाम के अपने तौर-तरीकों का पालन करने के लिए उन 3 इस्लामिक देशों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो.
CAA के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी. इन तीन देशों के लोग ही नागरिकता के लिए आवेदन करने के योग्य होंगे. आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन रहेगी. आवेदकों को बताना होगा कि वे भारत कब आए. पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेज नहीं होंगे, तब भी आवेदन कर पाएंगे. इसके तहत भारत में रहने की अवधि पांच साल से अधिक रखी गई है. अन्य विदेशियों (मुस्लिम) के लिए यह समय अवधि 11 साल से अधिक है. यह कानून संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को छूट देता है. इसमें असम में कार्बी आंगलोंग, मेघालय में गारो हिल्स, मिजोरम में चकमा जिले और त्रिपुरा में आदिवासी क्षेत्र के जिले शामिल हैं.
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