भ्रष्टाचार मिटे तो लोकतंत्र पर तानाशाही के दाग अच्छे हैं...
करप्शन के खिलाफ लड़ने का ढोल पीटने वाले अरविंद केजरीवाल निकले करप्शन किंग !
इंडिया अगेंस्ट करप्शन से उदित अरविंद केजरीवाल जो अन्ना आंदोलन के दौरान करप्शन के खिलाफ लड़ने का ढोल पीटकर-पीटकर नेता बने थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो निकले करप्शन किंग जो अब करप्शन के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं. समय कैसे बदलता है कि जिस कांग्रेस के करप्शन के खिलाफ लड़कर अरविंद केजरीवाल नेता बने हैं, आज वही कांग्रेस करप्शन के आरोपों पर उनके साथ खड़ी है. स्वराज से शराब तक का सफर केजरीवाल की पॉलिटिकल स्टोरी बनती दिखाई पड़ रही है. अल्कोहल वाली ड्रिंक का कॉकटेल रोजाना की पार्टियों में अगर पसंद किया जाता है तो करप्शन का कॉकटेल पॉलिटिकल पार्टियों की सबसे पहली पसंद है.
पॉलिटिकल नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार ईडी द्वारा किया जा रहा है वहीं लोकतंत्र का हत्यारा और तानाशाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया जा रहा है. जमानतें अदालतें नहीं दे रही हैं. जेल अदालत के आदेश के कारण जाना पड़ रहा है लेकिन गाली राजनीतिक विरोधियों को शायद इसलिए देना जरूरी है क्योंकि अपने वोटर्स और वर्कर्स में कंफ्यूजन पैदा करना है.
मंथन हर व्यवस्था और अस्तित्व की सतत प्रतिक्रिया होती है. अमृत मंथन में अमृत और जहर दोनों निकलते हैं. जहर को कंठ में धारण करने वाला कोई ना हो तो जहर के डर से अमृत मंथन ही रुक जाएगा. अमृतकाल में लोकतंत्र को अमृत की दिशा में ले जाने के लिए भ्रष्टाचार से लड़ाई के समुद्र मंथन ने राजनीति की चूलें हिला दी हैं. मोदी विरोधी हर राजनीतिक दल केवल एक ही बात कर रहा है कि नरेंद्र मोदी लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. डरा हुआ तानाशाह मरा हुआ लोकतंत्र बना रहा है. विरोधी नेताओं को टारगेट किया जा रहा है.
कोई भी दल या नेता यह जानने की कोशिश नहीं कर रहा है कि शराब घोटाले के मामले में आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह लम्बे समय से जेल में क्यों हैं? उन्हें जेल में ना तो ED ने रखा है और ना ही केंद्र की सरकार की इसमें कोई भूमिका है. इन आरोपियों को अदालतों से जमानतें नहीं मिलना क्या यह नहीं दर्शाता कि अदालतों ने सबूतों के पीछे कुछ सच्चाई झांकी है.
लोकसभा चुनाव के पहले अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर सारे नेता टाइमिंग को लेकर सवाल उठा रहे हैं. छह महीने से लगातार जब जांच एजेंसी पूछताछ के लिए अरविंद केजरीवाल को समन भेज रही थी तो क्या उन्हें पेश नहीं होना चाहिए था? चुनाव के मुहाने पर आते ही उन्होंने जिला अदालत और उच्च न्यायालय का दरवाजा क्या नहीं खटखटाया? अदालत से उन्होंने गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन का अनुरोध क्या नहीं किया? हाईकोर्ट ने तो जांच एजेंसी से सबूत देखने के बाद गिरफ्तारी से प्रोटक्शन देने से मना कर दिया. लोकसभा चुनाव के समय गिरफ्तारी की टाइमिंग तो एक तरीके से केजरीवाल ने खुद निर्मित की है. अगर समन पर पहले ही कानून का पालन कर लिया गया होता तो जो भी कार्रवाई होनी होती कई महीने पहले ही पूरी हो जाती.
भारत की राजनीति सहानुभूति पर चलती रही है. सहानुभूति के सहारे इस देश में राजनीतिक दलों ने 400 से ज्यादा लोकसभा की सीट भी जीती हैं. राजनीति की यही सोच शायद विरोधी दल के नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों में स्वयं को विक्टिम के रूप में दिखाकर चुनावी लाभ लेने की रणनीति होगी.
नरेंद्र मोदी और बीजेपी को इतना राजनीतिक नासमझ तो किसी को भी नहीं समझना चाहिए कि चुनावी मौके पर विरोधी नेताओं को सहानुभूति लेने का मौका उनके द्वारा जानबूझकर दिया जाएगा. जांच एजेंसियों को काम करने की स्वतंत्रता देना, लोकतंत्र पर लगे भ्रष्टाचार के दाग को मिटाने की गारंटी के रूप में देश देख रहा है. भ्रष्टाचार पहले भी होते थे लेकिन संविधान का संरक्षण प्राप्त करने वाले पदों पर बैठे लोग कभी यह सोचते भी नहीं थे कि उन्हें जेल जाना पड़ेगा. झारखंड के मुख्यमंत्री को भी जेल जाना पड़ा है. मुख्यमंत्री की जेल जाने की परम्परा लालू यादव से शुरू हुई थी. अब तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोग ही करप्शन में जेलों तक पहुंच रहे हैं.
यह केवल राजनीतिक जगत में ही हो सकता है कि लोकतंत्र के अपराधी भ्रष्टाचार के आरोपियों द्वारा दूसरे दलों से हाथ मिलाकर लोकतंत्र को ही चुनौती देना शुरू कर दें. कोई भी मुख्यमंत्री अपने राज्य में राजा जैसा व्यवहार और जीवनयापन करता है. जब उसे भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार होना पड़ता है तो ना तो उसके समर्थक सहयोगी और ना ही परिवारजन इन परिस्थितियों की कल्पना करते हैं.
अरविंद केजरीवाल का शराब घोटाले का मामला कई वर्षों से जांच प्रक्रिया में चल रहा है. अभी-अभी गठबंधन में आम आदमी पार्टी के राजनीतिक दोस्त बने कांग्रेस के नेताओं के पुराने वीडियो सोशल मीडिया पर चिल्ला चिल्ला कर अरविंद केजरीवाल को भ्रष्टाचारी और शराब घोटाले में रिश्वत लेने का आरोपी बता रहे हैं. यही राजनीतिक चेहरे गिरफ्तारी के बाद चिल्ला-चिल्ला कर केजरीवाल का समर्थन कर रहे हैं. ऐसे राजनीतिक चेहरों का लोकतंत्र में सक्रिय राजनीति में रहना ही लोकतंत्र की हत्या है. लोकतंत्र के भविष्य को मौत के घाट उतारना है.
अरविंद केजरीवाल दोषी या निर्दोष ना तो किसी सरकार के कारण साबित होंगे ना किसी जांच एजेंसी के पुख्ता सबूतों के बिना साबित होंगे. उन्हें तो अदालतों का सामना कर अपने को निर्दोष साबित करना होगा. जब तक वह निर्दोष साबित नहीं होते हैं, तब तक उन्हें लोकतंत्र की नैतिकता का पालन करना होगा. चुनावी राजनीति के लिए लोकतंत्र की नैतिकता को बलिदान करने वाली राजनीति को भारत शायद अब बर्दाश्त नहीं कर पाएगा.
नया भारत बदल चुका है. सोने की चिड़िया भारत को लूटकर अंग्रेजों ने तो अपना पेट भरा ही था. आजादी के बाद राजनीतिक दल और नेताओं ने भी सोने की अपनी लंका बनाई है. यह लंका बहुत लंबे समय तक छिपी रही, अगर कहें तो पक्ष-विपक्ष की राजनीतिक सांठ-गाँठ से उसे दबाया और छुपाया गया. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कुछ भी छिपाना संभव नहीं है.
राजनीतिक भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन गया है. कोई राजनेता अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है, जिनके पास से करोड़ों रुपए बरामद हुए हैं वह भी अपना गुनाह स्वीकार नहीं करते. उसके लिए भी राजनीतिक आरोप लगाए जाते हैं. पूरी राजनीतिक व्यवस्था कालेधन और भ्रष्टाचार पर आधारित हो गई है. चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित खर्च सीमा के अंतर्गत एक भी विधायक या सांसद अपना चुनाव नहीं लड़ सकता. राजनीति के क्षेत्र में कालेधन का निवेश किसी की आंखों से छुपा नहीं है लेकिन एक दूसरे की पीठ सहलाते हुए भ्रष्टाचार के मामले में अब तक आंखें बंद रखी गईं.
भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन चुका है. तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की कदमताल चल रही है. सरकारी सिस्टम से लीकेज की संभावनाएं अगर समाप्त कर दी जाए तो तीसरी तो क्या इससे भी आगे भारत की अर्थव्यवस्था बिना समय गवाएं खड़ी हो सकती है. भ्रष्टाचार के मामले में निर्णायक फैसलों और निर्णायक नीतियों की देश को लंबे समय से प्रतीक्षा थी. किसी भी प्रधानमंत्री को गाली तो अच्छी नहीं लगती होगी. लोकतंत्र के जहर भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए लोकतंत्र के हत्यारे, तानाशाह और ना मालूम ऐसे कितने जहर का घूँट पीने की क्षमता रखने वाला नेतृत्व ही लोकतंत्र के अमृत को सही दिशा दे सकता है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को करप्शन के गठबंधन के कॉकटेल द्वारा लोकतंत्र विरोधी बताकर चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश में कोई कमी नहीं रखी जायेगी. करप्शन की शराब का नशा पहले से इतना चढ़ा हुआ है कि इसे उतार कर ऐसे लोगों को जमीन पर चलने के लिए मजबूर करना इतना आसान नहीं होगा. जो नेता इसके लिए नीलकंठ बन रहा है उसमें इतनी क्षमता, नैतिकता, नियत और साहस के साथ इतना जनविश्वास तो कम से कम है कि वह बिना डरे बिना झुके भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.
भारत अगर यह लड़ाई जीतेगा तो लोकतंत्र चमकेगा. लोकतंत्र की दीमक खत्म हो जाएगी. लोकतंत्र की ज्योति और उसका प्रकाश देश के हर घर तक प्रज्ज्वलित होगा. राजनीति के नए दौर को नई नजरों से देखने की जरूरत है. लोकतंत्र का इम्यून सिस्टम सुधारने की जरूरत है. इसके लिए लोकतांत्रिक तानाशाह के दाग भी भारत के लिए अच्छे ही होंगे.
0 Comments