2018 के फैसलेअनुसार सिविल या आपराधिक मुकदमों पर रोक का आदेश 6 महीने बाद स्वत्स: ही समाप्त हो जाता है !
अब जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 वाला फैसला रद्द होने से अब ज्ञानवापी केस नया मोड़ !
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिए गए तीन जजों की बेंच के फैसले को निरस्त कर दिया. तब SC ने कहा था कि सिविल या आपराधिक मुकदमों पर रोक का आदेश छह महीने बाद अपने आप समाप्त हो जाता है. SC का वह फैसला ट्रायल अदालतों और हाई कोर्ट्स के लिए था. अब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा है कि स्टे ऑर्डर अपने आप नहीं हट सकता. SC के 2018 वाले फैसले से ही दो दशक बाद, ज्ञानवापी मस्जिद मामले को संजीवनी मिली थी. हिंदू पक्ष ने ट्रायल कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट से रिवीजन ऑर्डर पर रोक के आदेश को चुनौती दी. निचली अदालत ने SC के फैसले को आधार बनाकर मुकदमा फिर शुरू कर दिया. अब जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 वाला फैसला रद्द कर दिया है तो ज्ञानवापी केस का क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के अपने ही फैसले को किया निरस्त
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दीवानी और आपराधिक मामलों के संबंध में फैसला दिया था- निचली अदालत या HC की ओर से लगी रोक अगर बढ़ाई नहीं जाती तो 6 महीने बाद खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगी. गुरुवार को वह फैसला रद्द करते हुए SC ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को सामान्य तौर पर किसी अदालत में लंबित मामलों के निस्तारण की समय-सीमा तय नहीं करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबंधित अदालतें जमीनी स्थिति को बेहतर ढंग से समझती हैं. 2018 का फैसला रद्द करने वाली 5 जजों की बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे.
ज्ञानवापी केस कब शुरू हुआ? 1991 वाला मुकदमा क्या है
अयोध्या मामले की तरह, ज्ञानवापी मामले का मूल वाद भी भगवान की ओर से दायर किया गया था. 1991 में आदि विश्वेश्वर विराजमान को वादी बनाते हुए हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में पूजा का अधिकार मांगा. ट्रायल कोर्ट ने शुरू में फैसला दिया कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत वर्जित था. हिंदू पक्ष ने रिवीजन एप्लीकेशन डाली और रिविजनल कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. निर्देश दिया कि मुकदमे का फैसला योग्यता के आधार पर किया जाना चाहिए. अपील पर, 1998 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रिवीजन ऑर्डर पर रोक लगा दी. यानी मुकदमे पर कार्यवाही वहीं पर रुक गईं.
2018 फैसले के आधार पर हुआ ASI सर्वे का आदेश
एशियन रिसर्फेसिंग केस में SC के फैसले के आधार पर, हिंदू पक्ष ने ट्रायल कोर्ट में याचिका डाली. कहा कि स्थगन अब प्रभावी नहीं है और मामले को फिर से सुना जाना चाहिए. हिंदू पक्ष ने परिसर के धार्मिक चरित्र का पता लगाने की खातिर ASI सर्वे का निर्देश मांगा. मुस्लिम पक्ष ने इस आधार पर विरोध किया था कि यह पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के खिलाफ है. ट्रायल कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार कर लिया. इस बात से रजामंदी जाहिर की कि SC के फैसले की वजह से रोक खुद-ब-खुद हट गई. निचली अदालत ने ASI सर्वेक्षण का निर्देश दिया जिसमें परिसर में खुदाई किया जाना भी शामिल था. हालांकि, अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे को गैर-आक्रामक तरीकों तक सीमित कर दिया था.
ज्ञानवापी मामले में अभी ट्रायल चल रहा है.
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने अब भले ही 2018 वाला फैसला रद्द कर दिया हो, ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को हो चुके नुकसान की भरपाई मुश्किल लगती है. SC ने गुरुवार को फैसले में साफ किया, "जिन मामलों में मुकदमे केवल एशियन रिसर्फेसिंग (2018 निर्णय) के मामले में फैसले के आधार पर समाप्त हो गए हैं, उनमें स्थगन के स्वत: मुक्ति के आदेश वैध रहेंगे. मुस्लिम पक्ष के लिए राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्थगन के स्वत: समाप्त होने का आदेश तभी वैध रहेगा जब मामले में ट्रायल पूरा हो चुका हो. ज्ञानवापी मामले में अभी ट्रायल चल रहा है.
1991 : पूजा स्थल अधिनियम
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 में कहा गया है कि किसी भी पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र, जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था, बनाए रखा जाना चाहिए. अधिनियम की धारा 3 किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से एक अलग धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल - या यहां तककि एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग खंड में बदलने पर रोक लगाती है.
अनुच्छेद 142 की शक्तियों के इस्तेमाल पर गाइडलाइन तय
बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी सर्वव्यापी शक्तियों के प्रयोग पर SC जजों के लिए गाइडलाइंस भी तय कर दीं. उसने कहा कि इस शक्ति का प्रयोग अदालत के सामने आए पक्षों के बीच पूर्ण न्याय करने के लिए किया जाता है. SC ने कहा, अनुच्छेद 142 इस न्यायालय को मूल अधिकारों की अनदेखी करने का अधिकार नहीं देता है. अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत, इस न्यायालय की शक्ति का प्रयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को हराने के लिए नहीं किया जा सकता है.
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