G News 24 : AI फेक न्यूज फैलाकर आसानी से सेकेंडों में खड़ी कर सकता है हार-जीत के लिए समस्या !

 लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव निष्पक्ष करवाने में अब एक नई दिक्कत से हो सकता है सामना ...

AI फेक न्यूज फैलाकर आसानी से सेकेंडों में खड़ी कर सकता है हार-जीत के लिए समस्या !  

लोकसभा चुनाव 2024  के चुनाव प्रचार में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. नई टेक्नोलॉजी अपनाने के मामले में अभी तक भारतीय जनता पार्टी बाकी पार्टियों से आगे निकल चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी टेक्नोलॉजी के मामले में सबसे आगे हैं. बीजेपी पीएम मोदी के भाषणों को आठ अलग-अलग भाषाओं में बदलने के लिए AI का इस्तेमाल कर रही है. सोशल मीडया पर बंगाली, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, ओडिया और मलयालम जैसी भाषाओं में भी पीएम मोदी का भाषाण सुना जा सकता है. दिसंबर 2023 में उत्तर प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदी भाषण का तमिल में अनुवाद करने के लिए एक खास AI टूल का इस्तेमाल किया गया था. ये टूल असली समय में काम करता है, यानी भाषण होते वक्त ही अनुवाद कर देता है.

चुनाव में AI: वोटरों को लुभाने का नया हथियार !

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जिसे हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहते हैं. ये एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को सोचने और समझने की क्षमता देती है. चुनाव में एआई का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. राजनीतिक दल वोटर्स को लुभाने के लिए इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.

एआई राजनीतिक दलों को वोटरों को बेहतर तरीके से समझने और उन्हें आकर्षित करने में मदद करता है. चुनाव प्रचार अभियान को ज्यादा प्रभावी और असरदार बना सकता है. वोटों की गिनती को सीधे देखने (रियल-टाइम) जैसी चीजें भी एआई की मदद से हो सकती हैं. हालांकि नुकसान ये है कि एआई का इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने के लिए भी किया जा सकता है. जैसा कि फेक वीडियो बनाने वाली दीपफेक टेक्नॉलोजी से हो रहा है. 

चुनाव में AI का कहां-कहां हुआ इस्तेमाल

हाल ही में पाकिस्तान के आम चुनाव में एआई का इस्तेमाल देखने को भी मिला. इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने उनके नए भाषणों में उनकी आवाज की कॉपी करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया, जबकि खुद इमरान खान जेल में बंद थे. इसी साल जनवरी में बांग्लादेश के चुनाव में उल्टा हुआ. वहां विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार समर्थक लोगों ने गलत काम के लिए एआई का इस्तेमाल किया. विपक्ष को नीचा दिखाने के लिए बनावटी वीडियो (दीपफेक) बनाए.

चीन और रूस पर ये आरोप लगा है कि वो दूसरे देशों के चुनाव को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं, खासकर ताइवान में. जनवरी 2024 में ताइवान के चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर उम्मीदवार त्सई इंग-वेन के बारे में झूठे यौन आरोपों वाली एक 300 पन्नों की ई-बुक वायरल की जा रही थी.

पहले तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि आजकल सोशल मीडिया पर रिपोर्टिंग के जमाने में कोई फर्जी किताब क्यों छापेगा. फिर जल्द ही इंस्टाग्राम, यूट्यूब, टिकटॉक और दूसरे प्लेटफॉर्म पर ये देखने मिला कि AI की मदद से बनाए गए अवतार उस किताब के अलग-अलग हिस्से पढ़ रहे हैं. ताइवानी संस्था डबलथिंक लैब के प्रमुख शोधकर्ता टिम निवेन ने अपनी जांच में बताया कि ये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का काम है.

चुनाव प्रभावित कर सकता है AI

दुनियाभर के बड़े संगठन मानते हैं कि अगले दो सालों में सबसे बड़ा खतरा फेक न्यूज है जिन्हें बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये फेक न्यूज लोगों को आपस में लड़ा सकते हैं. इस टेक्नॉलजी से बड़े-बड़े लोग भी चिंतित हैं, जैसे गूगल के पूर्व CEO और OpenAI के फाउंडर. उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को रोकने के लिए काफी नहीं किया जा रहा है, जिससे आने वाले चुनाव काफी गड़बड़ हो सकते हैं.

पहले हम अखबारों और टीवी से खबरें पढ़ते-देखते थे. अब फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी चीजों पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लिया जाता है. इन पर फेक न्यूज यानी झूठी खबरें बहुत तेजी से फैलती हैं. एक सर्वे में 87 फीसदी लोगों ने माना है कि ये फेक न्यूज ही चुनाव को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं.

ये नई टेक्नॉलजी हमारी पसंद और नापसंद को समझकर ऐसी खबरें दिखा सकती है जिन्हें हम सच मान लेंगे. इसका इस्तेमाल किसी नेता की छवि खराब करने के लिए भी किया जा सकता है. उनके गलत बयान तैयार किए जा सकते हैं या उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा सकता है. 

इस टेक्नॉलजी की वजह से चार तरह की दिक्कतें ज्यादा हो गई हैं

ये फेक न्यूज सिर्फ लिखावट में ही नहीं बल्कि वीडियो और आवाज में भी हो सकती है, जिन्हें असली समझना बहुत मुश्किल है. इस टेक्नॉलजी की वजह से चार तरह की दिक्कतें ज्यादा हो गई हैं- पहले से कहीं ज्यादा फेक न्यूज फैलाई जा सकती हैं, ये फेक न्यूज इतनी अच्छी बनाई जा सकती हैं कि असली लगें, हर किसी को उनकी पसंद के मुताबिक फेक न्यूज दिखाई जा सकती हैं और ऐसे फेक वीडियो बन सकते हैं जो सच लगें, पर असल में हों ही नहीं.

चुनाव के समय जनता को लुभाने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बाढ़ आ जाती है. ये एक गंभीर विषय है. जानकारों का कहना है कि इस तरह की चीजों का गलत इस्तेमाल चुनाव को गलत दिशा में ले जा सकता है. चुनाव में उम्मीदवार के हार-जीत के नतीजों पर बड़ा असर पड़ सकता है. अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है, पर चिंता है कि भविष्य में AI का इस्तेमाल मतगणना में गड़बड़ी करने के लिए भी किया जा सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निष्पक्ष चुनाव करा पाना संभव हो पाएगा ? AI के ये टूल इतने बढ़िया होते हैं कि ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि असल में ये गलत काम किसने किया. ये सबसे बड़ी चिंता है, क्योंकि एआई की वजह से सच और झूठ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है.

गूगल ने चुनाव आयोग से की पार्टनरशिप

चुनाव में लोगों को सही जानकारी मिले इसके लिए गूगल ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया है. अब यूट्यूब और गूगल सर्च पर चुनाव से जुड़ी जरूरी जानकारी (जैसे- वोटर रजिस्ट्रेशन और वोट कैसे डालें) आसानी से मिल सकेगी. साथ ही गलत जानकारियों को फैलने से रोकने के लिए गूगल खास तकनीक (AI) का इस्तेमाल कर रहा है. इसके अलावा चुनाव से जुड़े विज्ञापनों को दिखाने के लिए भी गूगल सख्त नियम लागू कर रहा है.

चुनाव में फर्जी खबरें रोकेगा गूगल 

गूगल ने चुनाव में फर्जी खबरों को फैलने से रोकने के लिए एक नया दल (कोलिशन) ज्वाइन किया है. इस दल का नाम है कोएलिशन फॉर कंटेंट प्रोवीनेंस एंड ऑथेंटिसिटी (सी2पीए). इससे पहले भी गूगल ने 'गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव ट्रेनिंग नेटवर्क' और 'फैक्ट चेक एक्सप्लोरर टूल' जैसी चीजें शुरू की थीं, ताकि पत्रकार सही खबरें लोगों तक पहुंचा सकें और गलत खबरों का पर्दाफाश कर सकें. जल्द ही यूट्यूब पर वीडियो बनाने वाले लोगों को ये बताना जरूरी होगा कि उन्होंने जो वीडियो बनाया है वो असल है या नहीं. साथ ही यूजर्स को भी ये पता चलेगा कि ये असली नहीं है क्योंकि यूट्यूब खुद ही वीडियो पर लेबल लगाएगा. यानी गूगल इस बात को पक्का करना चाहता है कि चुनाव के दौरान लोगों को सिर्फ सही जानकारी मिले, न कि कोई फर्जी वीडियो या फोटो उन्हें गुमराह कर दे.

चुनाव में AI के इस्तेमाल ने दुनिया की बढ़ा दी है चिंता 

साउथ एशिया के चुनाव में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल एक नया चलन है, मगर ये थोड़ा खतरनाक भी हो सकता है. पूरी दुनिया में एआई के गलत इस्तेमाल की चिंता बढ़ रही है, क्योंकि अभी तक कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं बना है जो ये बताए कि एआई का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, किस सीमा तक कर सकते हैं. 2024 में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, रूस, ताइवान और साउथ अफ्रीका समेत 50 से ज्यादा देशों में चुनाव होने हैं, जिनमें करीब 400 करोड़ लोग वोट डालने के लिए तैयार हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ को भी ये चिंता है कि चुनाव में एआई का गलत इस्तेमाल हो सकता है. अमेरिका में एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि वहां के 60% टीनएजर्स (युवा) चार या उससे ज्यादा गलत खबरों को सच मान लेते हैं. वहीं, बड़ों में ये संख्या 49% है. इसका मतलब है कि युवाओं को फेक न्यूज़ और गलत जानकारियों पर जल्दी यकीन हो जाता है.

फेक खबर फैलाने वालों के खिलाफ क्या है कानून !

अभी तक भारत में कोई खास कानून नहीं है जो सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डीपफेक टेक्नोलॉजी को ध्यान में रखकर बनाया गया हो और जो सीधे ऐसे फर्जी वीडियो बनाने वाले व्यक्ति को सजा दे सके. मौजूदा कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति पर तब तक कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक कि वो गलत सूचना देश की सुरक्षा, एकता या अखंडता के लिए खतरा न हो या किसी की बदनामी न करे.

अगर कोई व्यक्ति किसी नेता की नकली आवाज या वीडियो बनाकर झूठी खबर फैलाता है, तो उस पर पुराने कानून जैसे भारतीय दंड संहिता (1860) या आने वाले नए कानून भारतीय न्याय संहिता (2023), इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (2000) और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम, 2021 के तहत कार्रवाई हो सकती है. देश दुनिया में हर नई टेक्नॉलोजी आने पर ये सवाल हमेशा उठता है कि आखिर इसका इस्तेमाल अच्छा होगा या बुरा. कुछ लोग एआई से घबराते हैं, वहीं कुछ को लगता है ये बहुत फायदेमंद भी हो सकता है.


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