आंदोलन नहीं एक राजनीतिक षड्यंत्र है...
पंजाब के किसान बने राजनीतिक पार्टियों के हाथ का खिलौना !
किसान आंदोलन का नाम सुनते ही देश और खासकर दिल्ली को एक अनजाना सा भय सताने लगता है आखिर किसी आंदोलन से भय किस बात का इसका जवाब चाहिए तो 3 साल पहले पहले के किसान आंदोलन को जरा याद कीजिए तब किसानों इन ट्रैक्टरों ने दिल्ली में कितना उत्पात मचाया था इस घटनाको देखते हुए दिल्ली वालों के बीच ऐसे आंदोलन को लेकर डर होना स्वाभाविक है। फिर आप कोई आंदोलन करने जा रहे हैं तो इतने मोडिफाइड ट्रैक्टर लेकर के आंदोलन में शामिल होने का क्या औचित्य है इससे तो यही जाहिर होता है कि आप सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रहे हैं। कानून के खिलाफ आंदोलन करने जा रहे। आंदोलन भी किस लिए कर्ज माफी, सब्सिडी, फसल मुआवजा, भैया ये सब चाहिए तो सब्सिडी क्यों ? और कर्जा लिया है तो कर्ज माफी क्यों ? कर्ज लिया है तो लौटाना ही पड़ेगा। आमजन भी तो लौटाता हैं। हर वर्ष यही होता है सरकारें बदलती है तो कर्ज माफी की मांग उठने लगती है। कृषि इतना ही घटेगा सौदा है तो फिर उसे पौधे को कर क्यों रहे हो भाई।
किसान स्वयं को आमजन से ऊपर सर्वश्रेष्ठ क्यों मानते समझता है। किसान अन्न पैदा करते हो तो उसमें उसके अकेले की नहीं तमाम लोगों की भूमिका होती है। उसमें कृषि उपकरण बनाने वाले,ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनियां उसके मजदूर, खाद बनाने वाली कंपनियां उसके मजदूर,मजदूर, व्यापारी आदि। इन सब के बिना किसान का क्या वजूद है। इसलिए सबसे पहले तो किसान ये कहना बंद करें उगाते हैं तव देश खाता है। सैनिक तो कभी नहीं कहता कि हम जागते हैं तब देश होता है। नहीं वह अपने आप को कभी सर्वश्रेष्ठ मानता है। यदि आपको आंदोलन आंदोलन ही करना है तो आप अपने प्रदेश में ही कीजिए ।आपकी प्रदेश सरकार आपकी बात केंद्र सरकार तक पहुंचाएगी यही आंदोलन का एक तरीका होता है।
लेकिन नहीं ऐसा होगा नहीं क्योंकि प्रदेश सरकार को तो राजनीति करनी है। यही कारण है की भोले वाले किसानों को तमाम तरह के डर दिखा कर इस प्रकार के आंदोलनों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ये सत्ता या फिर सत्ता में बने रहने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियां इन किसानों को इस तरह के आंदोलनों के लिए प्रोत्साहित करती है। और इन्हें लीड करने के लिए ऐसे लोग आगे आ जाते हैं जिन्हें आगे अपनी राजनीतिक राह बनानी है। फिर चाहे इस प्रकार के आंदोलन देश के लिए कानून व्यवस्था के लिए संकट खड़ा करें, देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाए या फिर लोगों की दैनिक दिनचर्या को प्रभावित हो इन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं है।
आंदोलन में शामिल यह तथा कथित किसान नेता ऊपर से सरकार आरोप लगाते हैं कि सरकार ने हमें रोकने के लिए युद्ध जैसे हालात बना दिए हैं बॉर्डर पर किले लगा दी है कंटेनरों से रास्ता जाम कर दिया है। तो अरे भाई जब सरकार आपसे एक बार सबक ले चुकी है अपने पिछले आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को दिल्ली में के ट्रैक्टरों ने क्या किया था तो इस बार सरकार आपको क्यों ना आपको बॉर्डर पर ही रोके। क्योंकि जिस तरह से आप ट्रैक्टर लेकर के आए हैं उसे तो साफ जाहिर होता है कि आप फिर से दिल्ली को डराने के लिए आए हैं।
आप खुद को किसान कहते हैं, किसान तो पूरे देश में है तो पूरे देश का किसान आपके साथ क्यों नहीं है ? पिछले आंदोलन में भी देश का किसान आपके साथ नहीं था । और फिर जिस समय आप जिन मांगों को लेकर ये आंदोलन कर रहे हैं। इस समय चाह कर भी सरकार आपकी मांगे पूरी नहीं कर सकती है क्योंकि संसद सत्र खत्म हो चुका है तो यह कानून कैसे बनेगा। इसलिए आप लोगों की जो मांगे हैं उन्हें लेकर एक प्रतिनिधिमंडल बना करके सरकार के साथ बैठें और अपनी मांगे उसके सामने रखें। जब नया संसद सत्र लागू होगा तब आपकी मांगे मानी जा सकती हैं। यूं राजनीतिक पार्टियों के भड़कावे में आकर के इस प्रकार के आंदोलनों से देश की अर्थव्यवस्था और कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ ना करें।
ये जितने नेता आपकी अगवाई करते हैं यह सिर्फ और सिर्फ किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक पहचान बढ़ाने के लिए आपके कंधे पर सवार होकर के नई ऊंचाइयां पाना चाहते हैं। इस समय सत्ता से बाहर तमाम पार्टियां किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहती है । चाहे फिर वह धर्म की नैया हो या किसानों के कंधे पर सवार होकर। यह आंदोलन पूरी तरह से राजनीतिक है। कभी-कभी तो यह सोचकर भी बहुत बुरा लगता है कि देश में यह किस प्रकार की राजनीति हो रही है जहां एक प्रदेश की सरकार केंद्र सरकार को लोग नहीं करती है। केंद्र सरकार प्रदेश सरकार को सहयोग नहीं करती यह क्या है। जिस तरह से आंदोलन में रोजाना मांगे बढ़ती जा रही है उससे यही साफ लगता है कि ये किसान आंदोलन है ही नहीं, यह तो एक राजनीतिक षड्यंत्र है। और फिर किसानों को बैलट या ईवीएम से क्या लेना देना । इस प्रकार की मांगे राजनीतिक लोग रखे तो समझ में आता है। किसान आंदोलन से इस प्रकार की मांगे उठाती है तो तुरंत समझ में आ जाता है कि यह आंदोलन नहीं एक राजनीतिक षड्यंत्र है।
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