G.NEWS 24 : गर्मी की दस्तक से पहले ही जल संकट की आहट शुरू !

अगले 7 सालों में जीडीपी को होगा बड़ा नुकसान...

गर्मी की दस्तक से पहले ही जल संकट की आहट शुरू !

नई दिल्ली। देश में अभी गर्मी की दस्तक भले ही नहीं हुई है, लेकिन जल संकट की आहट शुरू हो गई है। जबकि गर्मी आने में अभी एक महीना बाकी है। आशंका जताई जा रही है कि देश के कई राज्यों में गर्मी में भयंकर जलसंकट हो सकता है। मौसम विभाग के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून कमजोर होने के कारण दक्षिण भारत के राज्यों के साथ ही दिल्ली, मप्र, छग, राजस्थान, महाराष्ट्र में जल संकट का सबसे अधिक असर पड़ेगा। दरअसल, इन राज्यों में पोखर, तालाब, छोटी नदियां और झीलें तेजी से सूख रही है। जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून और उस पर निर्भर जल संसाधनों पर बुरा असर पड़ा है। पूरे भारत में कई बड़ी नदियों के सूखने के साथ भारत को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। इस तरह का गंभीर जल संकट कभी नहीं देखा गया है। भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि देश के पास सिर्फ 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं। ये भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले देशों में से एक बनाता है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में गर्मियों के आते ही पानी भारत में सोने की तरह कीमती चीज बनती जा रही है। 

नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में भारतीय जल संकट का सामना करते हैं। अपनी पानी की जरूरतों के लिए भारत की अनियमित मानसून पर निर्भरता इस चुनौती को और बढ़ा रही है। इससे लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में हैं। फिलहाल, 60 करोड़ भारतीयों पर गंभीर जल संकट मंडरा रहा है और पानी की कमी और उस तक पहुंचने में आने वाली मुश्किलों की वजह से हर साल लगभग दो लाख लोगों की मौत हो जाती है। 2030 तक देश की पानी की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है, जिससे लाखों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 6 प्रतिशत का नुकसान होने का अनुमान है। यदि पानी का सबसे ज्यादा उपभोग करने वाले देशों की बात करें तो उसमें भी भारत शामिल है, जोकि हर साल 40,000 करोड़ क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा पानी का उपभोग कर रहा है। जबकि हाल ही में एक्वाडक्ट वाटर रिस्क एटलस में भी जल संकट का सबसे ज्यादा सामना कर रहे 17 देशों की लिस्ट में भारत को 13वां स्थान दिया है। जो देश में बढ़ते जल संकट को दर्शाता है। 

वहीं नाइट्रोजन प्रदूषण के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने पाया है कि 2050 तक पानी की किल्लत और गुणवत्ता में आती गिरावट का सामना करने वाले इन नदी बेसिनों का यह आंकड़ा बढक़र 3,061 पर पहुंच जाएगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि नाइट्रोजन प्रदूषण और बढ़ते दबाव के चलते इन सबबेसिनों में या तो पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होगा और यदि होगा तो वो इतना दूषित होगा कि इंसानों और दूसरे जीवों के उपयोग के लायक नहीं रहेगा। इसका मतलब है कि पानी की कमी और उसकी गुणवत्ता में आती गिरावट से वैश्विक स्तर पर 680 से 780 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं, जो पिछले अनुमान से करीब 300 करोड़ ज्यादा है। भारत का सिलकॉन वैली यानी बेंगलुरु इस समय पानी की किल्लत से जूझ रहा है। पिछली साल बेंगलुरू में साउथवेस्ट मॉनसून कमजोर रहा है। इसकी वजह से कावेरी नदी के बेसिन में पानी का स्तर कम हो गया। 

इस नदी से जिन जलस्रोतों में पानी भरता था, वो भी लगभग खाली हैं। बेंगलुरू के कुछ जलाशय तो सूख गए हैं। हजारों आईटी कंपनियों और स्टार्टअप्स वाले इस शहर में करीब 1.40 करोड़ लोग रहते हैं। गर्मियों के आने से पहले ही यहां के लोग पानी को दोगुने कीमत पर खरीदने को मजबूर हैं। कुछ लोगों ने अपने रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली पानी की मात्रा में कमी ला दी है। राशनिंग कर रहे हैं। बेंगलुरू के कुछ इलाकों में पानी टैंकर डीलर हर महीने का 2000 रुपए ले रहे हैं। जबकि एक महीने पहले यह मात्र 1200 रुपए था। इतने रुपयों में 12 हजार लीटर वाला पानी का टैंकर आता था। होरामावू इलाके में रहने वाले और पानी खरीदने वाले संतोष सीए ने बताया कि हमें दो दिन पहले पानी के टैंकर की बुकिंग करनी पड़ती है। पेड़-पौधे सूख रहे हैं। एक दिन छोडक़र नहा रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पानी बचा सकें। लोगों को इस बात की चिंता है कि पैसे देने के बाद भी टैंकर लाने वाले आते नहीं हैं। कहते हैं कि भूजल में कमी है। 

पानी कहां से लेकर आएं। कई बार पानी जिस दिन चाहिए उस दिन नहीं मिलता। उसके एक-दो दिन बाद मिलता है। बैंगलोर वाटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड शहर में पानी की सप्लाई के लिए जिम्मेदार संस्था है। यह संस्था पूरे शहर को ज्यादातर पानी कावेरी बेसिन से खींचकर देती हैं। कावेरी नदी का उद्गम स्थल तालाकावेरी है। यह नदी पड़ोसी राज्य तमिलनाडु से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। गर्मियों में भूजल निकाल कर पानी के टैंकरों से सप्लाई के लिए मजबूर हो जाती है। दक्षिण-पूर्व बेंगलुरु में रहने वाले शिरीष एन ने कहा कि पानी की सप्लाई करने वालों के लिए कोई नियम नहीं है। वो अपनी मर्जी से पानी की कीमतें बढ़ा देते हैं। इस साल भी उन्होंने पानी की कीमतें बढ़ाईं हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेस की स्टडी के मुताबिक एक समय था जब बेंगलुरु को बगीचों का शहर और पेंशन वालों का स्वर्ग कहते थे। वजह थी इसका मॉडरेट जलवायु। लेकिन अब पर्यावरण वैसा नहीं है। पिछले चार दशक यानी 40 सालों से बेंगलुरु ने अपना 79 फीसदी जलाशय और 88 फीसदी ग्रीन कवर को खो दिया है। इमारतों की संख्या 11 गुना तेजी से बढ़ी है। 

भारतीय नदियों को जलवायु संकट, बांधों के अंधाधुंध निर्माण, और जल विद्युत की ओर बढ़ते बदलाव के साथ-साथ रेत खनन जैसे स्थानीय कारकों से गंभीर खतरा हो रहा है। बांधों और विकास परियोजनाओं की वजह से अधिकांश सबसे लंबी नदियां तेजी से सूख रही हैं। आज हमारी 96 प्रतिशत नदियां 10 किमी से 100 किमी के दायरे में हैं। लंबी नदियां 500-1000 किमी रेंज में हैं। भारत में लंबी नदियों की जरूरत है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पानी की लगातार बढ़ती कमी की सबसे बड़ी वजह तालाबों को खोना है। 1.3 अरब से ज्यादा आबादी वाला देश जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, मानवजनित गतिविधियों, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों और लोगों के व्यवहार के कारण अपने तालाबों को खो रहा है। भूजल की कमी प्रमुख कारणों में से एक है और अति दोहन ने स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। पानी न केवल घरों के लिए एक समस्या है। बल्कि यह खेती और उद्योग के लिए जरूरी है। तमाम जल निकाय या तालाब और झील घरेलू और कृषि उद्देश्यों के लिए बहुत जरूरी हैं। ये जल भंडारण और पानी तक पहुंच उपलब्ध कराने में मदद करते हैं। बांधों से बनी झीलें बिजली पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

Reactions

Post a Comment

0 Comments