गुरु रविदास के वो 10 दोहे जो जिंदगी के हर मोड़ पर राह दिखाते हैं...
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
माघ पूर्णिमा को हर साल रविदास जयंती मनाई जाती है. इस साल आज यानी 24 फरवरी को रविदास जयंती मनाई जा रही है. हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु रविदास का जन्म माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को हुआ था. हर साल माघ पूर्णिमा पर रविदास जयंती मनाई जाती है. रविदास जी के जन्म को लेकर एक दोहा भी प्रसिद्ध है जो है 'चौदस सो तैंसीस कि माघ सुदी पन्दरास. दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास'. इसका अर्थ है कि गुरु रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन 1433 को हुआ था. गुरु रविदास जी ने अपनी शिक्षाओं और उपदेशों से लोगों को मार्गदर्शन दिया था. इसी के चलते आज हम आपको रविदास जी के 10 दोहे बताने जा रहे हैं जो आपके जीवन में राह दिखाते हैं।
1. जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
अर्थ है: जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिसके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा उत्पत्ति हुई हो.
2. मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थ है: जिस व्यक्ति का मन पवित्र और शुद्ध होता है उसके द्वारा किया हर कार्य मां गंगा की तरह पवित्र होता है.
3. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
अर्थ है: हीरे से बहुमूल्य हरी यानि कि भगवान हैं. उनको छोड़कर अन्य चीजों की आशा करने वालों को निश्चिक ही नर्क प्राप्त होता है. इसलिए प्रभु की भक्ति को छोडकर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है.
4. कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
अर्थ है: राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही ईश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण सभी ग्रंथ एक ही ईश्वर का गुणगान करते हैं और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.
5. ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
अर्थ: किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो.
6. करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
अर्थ: आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य.
7. मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप
अर्थ: निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है. ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं.
8. रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
अर्थ: कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है.
9. रि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
अर्थ: हीरे से बहुमूल्य हरि यानि ईश्वर को छोड़कर लोग अन्य चीजों की आशा करते हैं. ऐसे लोगों को बाद में नर्क में जाना पड़ता है. इसका मतलब है कि भगवान की भक्ति को छोडकर कहीं और भटकना व्यर्थ है.
10. हिंदू तुरक नहीं, कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा
अर्थ: रविदास जी कहते हैं कि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग एक ही तरह के रक्त और मांस से बने हुए है। दोनों एक इंसान है। रविदास जी दोनों को समान समझते हैं।
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