ट्रांसपोर्ट माफ़िया द्वारा जिम्मेदार अधिकारीयों ने मिलकर बसों को ट्रक बना दिया है !
मुसाफिरों के साथ ऊपर छत-नीचे फर्स में टनों-माल रोज ढो रही हैं बसें !
हेलमेट न पहनने,सीट बेल्ट न लगाने पर पुलिस तुरंत चालानी कार्यवाही कर देती है। ऑटो रिक्शा वालो को वर्दी पहनाने औऱ नगर सेवा वालो को ओवरलोडिंग रोकने के भाषण देती पुलिस भी देखी होगी न? फिर इस पुलिस को अपने बगल से टनों माल लादकर गुज़र रही ट्रेवल्स की बसें क्यो नजर नही आती ? परिवहन महकमे औऱ वाणिज्यकर वालो की दृष्टि भी बाधित हो गई है क्या ? कलेक्टर, कमिश्नर के पास भी इसका जवाब है क्या कि ये बसें, ट्रक बनकर क्यो औऱ किसके आदेश से बेख़ौफ़ दौड़ रही हैं? कैसे ट्रेवल्स कम्पनियों ने माल बुकिंग के माल गोदाम खोल रखे हैं? हंस ट्रेवल्स को बीच शहर में बस अड्डा औऱ ट्रांसपोर्ट गोदाम संचालित करने की अनुमति क्या नगर निगम से जारी हुई है या जिला प्रशासन से? इंदौर को ये जवाब जिम्मेदारों से मांगना ही चाहिए सिर्फ हम ही क्यो नियम कायदों के लिए सताए जाते हैं?
बसें यात्रियों को लाने ले जाने के लिए होती हैं या माल ढोने के लिये? बस क्या ट्रक का काम कर सकती हैं? तो फिर इस प्रदेश में किसके आदेश से बसें, ट्रक बनी हुई हैं? जी हां ट्रक। उसी ट्रक में सवार हो शान से वे लोग सफर कर रहे है, जो "सो कॉल्ड" बहुत पढ़े लिखें हैं या जमानेभर के समझदार हैं। स्लीपर क्लास का सुसज्जित अपना केबिन देखकर खुश होकर सफर करने वालो को पता है कि वे उस बस में सफर कर रहे है जिसमे ट्रक जैसा टनों माल लदा हुआ हैं, जो जानलेवा साबित हो सकता हैं। अंदर केबिन में लेटने औऱ कान में ईयर फोन लगाने के बाद उनको पता है कि बाहर से बस कैसे "झोल" खाती चल रही हैं।
आप हम सब इन बसों को हिचकोले खाते चलते देखते है न? कारण है उसका यू हिचकोले खाते चलने का। क्योकि बस का डिज़ाइन मुसाफिरों के हिसाब से होता है। वैसे ही चेसिस पर बस तैयार होती हैं। लेकिन अब उसी बस के चेसिस को ट्रक बना दिया गया हैं। मुसाफिरों का वजन तो रत्तीभर भी नही, बस में जो माल लादा जा रहा है वो क्विंटलों-टनों में हैं। टैक्स बस का। कमाई ट्रांसपोर्ट की। असली ट्रांसपोर्ट वालो से पूछिए वे बताएंगे कि ट्रेवक्स के नाम पर चल रही ये बसे क्या क्या कारस्तानियां कर रही हैं। बगेर ड्यूटी स्टाम्प के किस प्रकार ये बसे तस्करी में लिप्त हैं, इसकी जानकारी उन सब महकमो को भी है जिनके जिम्मे टैक्स चोरी रोकने का कामकाज है।
बगेर बिल, टैक्स, ड्यूटी के माल की तस्करी का साधन भी ये बसें बनी हुई हैं। हाल ही में इंदौर में दो पुलिस वाले सस्पेंड किये गए। उन पर क्या आरोप था? ये ही था कि इन्होंने एक ट्रेवल्स की बस रुकवाई। बस से एक पार्सल जब्त क़िया। ड्राइवर कंडक्टर ने उसमे मिठाई होना बताया। बाद में ख़ुलासा हुआ उस पार्सल में 14 लाख थे। वो भी अवैध हवाला कारोबार के। हवाला की ऐसी ही मोटी रकम को इधर से उधर करने में ये बसे ही काम आ रही हैं। बसों में जा रहा सामान की जांच कौन कर रहा हैं? ये देश और प्रदेश की सुरक्षा के लिए भी बेहद चिंता का विषय हैं। याद है न मुम्बई हमले में अवैध हथियार ऐसे ही अवैध परिवहन कर पाकिस्तान से मुंबई में आये थे। ऐसे ही पान मसाला, सुपारी, नकली मावा से लेकर सोने चांदी की तस्करी भी ये बसें कर रही हैं। बेलगाम, बेख़ौफ़। क्योकि अधिकांश बसों के पीछे कोई न कोई नेताजी खड़े हैं, या अड़े हैं। इन बस वालो ने बड़े बड़े माल गोदाम बना रखे हैं और वो भी सरेराह। हंस ट्रेवक्स का माल गोदाम तो ऐसी जगह है जहां से हर बड़े अफसरों का नियमित गुजरना होता हैं। अवैध रूप से बने इस माल गोदाम पर एक नजर तो डालिये? लिफ्ट तक लगी है बसों पर माल लदाई के लिए।
हैरत की बात तो ये है कि जो बसे, बस से ट्रक बना दी गई है, उसमे सफर करने वाला तबका पढ़ा लिखा और समझदार कहा जाता हैं। महंगी टिकट देकर ये तबका अपनी जान का सौदा कर रहा है लेकिन सफर शान से कर रहा है। इन बसों में सफर करने वालो में नेता से लेकर अफसरों तक की जमात शामिल हैं। ये महंगा टिकट लेकर जिस बस को " सर्वसुविधायुक्त" मानकर सोते सोते आ-जा रहें हैं, वो बस तो साक्षात सड़क पर "लाक्षागृह"" बनकर दौड़ रही हैं। छत पर तो टनों माल लाद ही रही हैं, बस के फर्श को भी गोदाम बना रखा हैं। बस का बेसमेंट कहने को यात्री लगेज के नाम से जँचाया जाता है लेकिन उसमें भी अवैध रूप से बिना टेक्स ड्यूटी का माल ढोया जा रहा है। पड़े लिखे ये नासमझ जोखिमभरा सफर कर अपनी शान बगार रहे है कि हम तो फलाने ट्रेवल्स की बस से लेटे लेटे आराम से आ गए। ये तबका बात बात में देश दुनिया की समस्या पर ट्वीट-रीट्वीट करता हैं लेकिन अपनी सीट के नीचे पसरी अराजकता उसको नजर नही आती। अगर यात्री इस मामले में जागरूक हो जाये तो मज़ाक है बस वाला आपसे 2 हजार वसूलने के बाद भी आपको "ट्रक' में सफर करवा सके ?
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