G.News 24 : चीन में कोरोना की तरह तेजी से 'रहस्यमयी निमोनिया' बच्चों को शिकार बना रहा है !

 चीन,एशिया-अफ्रीका में ही क्यों पैदा हो रहे हैं ऐसे खतरनाक वायरस !

चीन में कोरोना की तरह तेजी से 'रहस्यमयी निमोनिया' बच्चों को शिकार बना रहा है !

साल 2020 में चीन के वुहान से शुरू हुए कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था. इस वायरस ने ही दुनिया भर के करोड़ों लोगों को अपने-अपने घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया था. चाहे भारत हो या अमेरिका, चीन हो या नेपाल सभी मुल्कों को लॉकडाउन का सहारा लेना पड़ा था. अब इसी देश से एक और डराने वाले वायरस की खबर सामने आ रही है, जिसे लेकर डब्ल्यूएचओ ने भी चेतावनी जारी कर दी है. दरअसल चीनी मीडिया के मुताबिक चीन के उत्तर पूर्वी इलाके में स्थित लियाओनिंग प्रांत के बच्चे तेजी से बीमार पड़ रहे हैं.  

इस बीमारी के दौरान बच्चों के फेफड़ों में जलन, तेज बुखार, खांसी और जुकाम जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं. फिलहाल इसे रहस्यमयी निमोनिया (Mystery Pneumonia) कहा जा रहा है. वहीं इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए और बच्चों को बीमार होने से बचाने के लिए स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है. हालांकि कोरोना महामारी के बाद ये कोई पहला वायरस जनित बीमारी नहीं है जिसने भारत समेत अन्य देशों को चिंता में डाला है. पिछले कुछ सालों में मंकीपॉक्स, जीका, इबोला जैसी कई ऐसी बीमारियां हैं जो काफी चर्चा में रही. खास बात ये है कि इन सभी वायरस की एशिया-अफ्रीका से ही शुरू हुए.

ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि इस रहस्यमयी निमोनिया से कैसे बचा जा सकता है और पिछले कुछ सालों में एशिया-अफ्रीका से ही वायरस जनित बीमारियां क्यों पनप रही है. रहस्यमयी निमोनिया, यह वायरस चीन में तेजी से बच्चों को अपना शिकार बना रहा है. इस वायरस से संक्रमित होने पर बच्चों को फेफड़ों में दर्द और तेज बुखार जैसी परेशानी झेलनी पड़ती है. फेफड़े में दर्द होने की वजह से मरीज को सांस लेने में भी तकलीफ होती है. चीनी मीडिया के अनुसार बीजिंग के लियाओनिंग में फिलहाल पीडियाट्रिक हॉस्पिटल इस संक्रमण से संक्रमित बच्चों से भरा हुआ है. 

इस बीमारी को निमोनिया से अलग माना जा रहा है 

दरअसल निमोनिया के लक्षण की बात करें तो इसमें मरीज को बलगम और बिना बलगम वाली खांसी, बुखार, ठंड लगना और सांस लेने में दिक्कत होती है. वहीं दूसरी तरफ चीन में फैले इस वायरस, जिसे रहस्यमयी निमोनिया कहा जा रहा है, की बात करें तो इससे संक्रमित बच्चों में खांसी के लक्षण नहीं है, लेकिन उन्हें तेज बुखार होता है और फेफड़ों में सूजन भी होती है.  

डब्ल्यूएचओ ने कहा है...

फिलहाल स्वास्थ्य एजेंसी ने चीन से इस बीमारी, इससे जुड़े मामलों और लक्षणों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए कहा है. साथ ही डबल्यूएचओ ने इस वायरस से जुड़ी कुछ गाइडलाइन भी जारी की हैं. जिसमें लोगों को सावधान रहने की सलाह दी गई है. डबल्यूएचओ की गाइडलाइन में लोगों को अपने अपने घरों और आस पास के इलाकों में साफ-सफाई का खास ध्यान रखने के लिए कहा गया है. गाइडलाइन के अनुसार शरीर में कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की भी बात कही गई है. इसके अलावा सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का इस्तेमाल करने के लिए भी कहा गया है.

वायरस भी कोरोना की तरह महामारी है !

दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से अभी तक तो इस रहस्यमयी निमोनिया के महामारी घोषित नहीं किया गया है. वहीं, सर्विलांस प्लेटफॉर्म प्रो-मेड ने भी कहा कि इसे फिलहाल महामारी कहना गलत होगा और जल्दबाजी भी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी फिलहाल इस बीमारी की जांच के लिए चीन में हाल फिलहाल में फैले सभी तरह के वायरस की लिस्ट मांगी है. चीन में पिछले महीने H9N2 (एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस) का पहला मामला सामने आने का बाद इसकी तैयारियों को लेकर डीजीएचएस की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की थी, जिसकी रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ (WHO) को दी गई.

रहस्यमयी निमोनिया को लेकर भारत सावधान 

भारत के यूनियन हेल्थ मिनिस्ट्री ने हाल ही में अपने एक बयान में इस बीमारी का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में इस वायरस के फैलने का खतरा काफी कम है. लेकिन इसके बाद भी मंत्रालय इस स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए है. मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, 'चीन से रिपोर्ट किए गए एवियन इन्फ्लूएंजा मामले के साथ-साथ सांस संबंधी बीमारी के समूहों से भारत को कम जोखिम है.' इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत चीन में फैले इस खतरनाक वायरस से उत्पन्न होने वाली किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार है.

सबसे ज्यादा वायरस जनित खतरनाक बीमारियां अफ्रीका में पाए जाते हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'डिजीज़ आउटब्रेक न्यूज' के अनुसार, साल 2021 के जनवरी महीने से साल 2022 तक वायरस जनित बीमारियों के मरीज एशियाई या अफ्रीकी देशों में सामने आए है. डिजीज आउटब्रेक न्यूज डब्ल्यूएचओ की एक संगठन है जो वैश्विक स्तर पर पहचाने जाने वाले और अज्ञात रोगों के मामले सामने लाने का काम करती है. 

इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2001 से लेकर साल 2011 की तुलना में साल 2012 से लेकर 2022 के बीच अफ्रीका से जूनोटिक बीमारियों में 63 प्रतिशत का इजाफा देखा गया है. इसके अलावा साल 2016 में प्रकाशित 'द अमेरिकन नेचुरलिस्ट' की रिपोर्ट के हवाले से देखा जाए तो चमगादड़ से फैलने वाले वायरस के लिहाज से पश्चिमी अफ्रीका उच्चतम जोखिम वाला क्षेत्र है. साल 1900 और साल 2013 के डेटा के अनुसार सब-सहारा अफ्रीका क्षेत्र, दक्षिण-पूर्व एशिया भी ऐसी बीमारियों के लिहाज से जोखिम भरे इलाके हैं. 

ज्यादातर वायरस इसी क्षेत्र में मिलते हैं !

इसका एक सबसे बड़ा कारण है इन महाद्वीपों में जनसंख्या घनत्व. ज्यादा जनसंख्या होने के कारण यहां के लोगों के जानवरों के संपर्क में आने की संभावनाएं बढ़ जाती है. ऐसे में बीमारियों के फैलने का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है. वर्तमान में एशिया और पैसिफिक इलाकों में दुनिया के लगभग 60 प्रतिशत लोग रहते हैं. आबादी बढ़ने के कारण इंसान और जानवर सीधे संपर्क में आने लगे हैं. इन जंगली जानवरों में कई ऐसे खतरनाक वायरस होते हैं जिसके बारे में अब तक नहीं पता लगाया जा सका है. उदाहरण के तौर पर चमगादड़ को ही ले लीजिए, इस छोटे से जानवर की 100 से ज्यादा किस्में किसी भी समय मिल जाएंगी. एक से दूसरे तक होते हुए ये वायरस इंसानों तक पहुंच जाते हैं. 

इन क्षेत्रों में बदलावों से गुजरना भी एक बड़ा कारण है. शोधकर्ताओं की मानें तो 18वीं और 19वीं सदी में ब्रिटेन भी औद्योगीकरण के दौरान लगभग ऐसे ही बदलावों के दौर से गुजरा है. उस वक्त ब्रिटेन को टाइफाइड, हैजा जैसी कई बीमारियों को झेलना पड़ा था. अफ्रीका की बात करें तो यहां जानवरों के कारण फैले संक्रमण से इंसानों के संक्रमित होने की घटनाएं सदियों पुरानी हैं. लेकिन पुराने दौर में यातायात का साधन नहीं होने के कारण यह वायरस अफ्रीका के अंदर ही रह जाता था. इसके अलावा बद्दतर स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक उथल-पुथल भी एक बड़ा कारण है, जिन्हें भी इन बीमारियों के फैलाव के लिए दोष दिया जा सकता है.     

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